राहुल गांधी ने करीब एक घंटे की प्रेस कान्फ्रेंस में वोटर सूची की विसंगतियों को सामने रखते हुए यह साबित करने की कोशिश की कि कैसे चुनावों में धांधलियां की जा रही हैं. लेकिन, असली विसंगति यह है कि जिसे वे धांधली बता रहे थे, उसी को दूर करने के लिए चुनाव आयोग द्वारा बिहार में करवाया जा रहा SIR उन्हें और उनके सहयोगी दलों को चुभ रहा है. यानी, जिस चुनाव धांधली के खुलासे को वे 'एटम बम' बता रहे थे, उसमें उनका अपना एजेंडा चोट खाता नजर आ रहा है.
राहुल गांधी वोटर आईडी की गड़बड़ियों का पुलिंदा लेकर बैठे थे. बता रहे थे कि कैसे डुप्लीकेट वोटर आईडी, गलत एड्रेस, गलत फोटो वोटर कार्ड पर लगाने की धांधली की गई है. लेकिन, उनकी प्रेस कान्फ्रेंस से पहले ही बिहार में SIR करवा रहे चुनाव आयोग ने तेजस्वी यादव के दो-दो वोटर आईडी कार्ड सामने रखकर साबित कर दिया है कि इस फर्जीवाड़े के लाभार्थी किसी एक दल के सदस्य नहीं हैं.
राहुल गांधी ने महाराष्ट्र और कर्नाटक की दो विधानसभाओं की मतदाता सूची का पार्टी स्तर पर स्क्रीनिंग कराने का दावा किया है. उन्होंने बेंगलुरु की एक विधानसभा महादेवपुरा की वोटर लिस्ट में गड़बड़ियों का विस्तार से खुलासा किया. पर उनकी बातों से ऐसा लगा कि वो एसआईआर के वास्तविक कार्यों को अब तक समझ नहीं पाए हैं. आइये देखते हैं कि कैसे वो खुद अपने ही तर्कों के जरिए एसआईआर की देशव्यापी जरूरत को समझा रहे है.
डुप्लीकेट वोटर्स की बात सही है, तेजस्वी यादव का उदाहरण सामने हैं
राहुल गांधी बेंगलुरू सेंट्रल विधानसभा सीट का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि यहां पर 11965 मतदाता ऐसे हैं, जो दो अलग-अलग क्षेत्रों और बूथों पर वोटिंग कर रहे हैं. इसे लेकर राहुल गांधी ने कई वोटर्स के उदाहारण भी दिए. मतदाता आदित्य श्रीवास्तव का नाम बेंगलुरु और उत्तर प्रदेश दोनों जगह दर्ज है.अब राहुल गांधी को कौन समझाए कि एसआईआर की पूरी कवायद ही इसी लिए है. राहुल गांधी को या तो एसआईआर की पूरी जानकारी नहीं है या वो जानबूझकर चुनाव आयोग के बहाने मोदी सरकार से खेल रहे हैं.
तेजस्वी यादव का डबल वोटर आईडी प्रकरण अभी हाल ही में उठा था. कम्युनिस्ट पार्टी के एक सांसद जिन्होंने एसआईआर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की है की पत्नी के नाम से भी 2 वोटर आईडी पता लगी है. दरअसल एसआईआर इसी लिए तो मतदाताओं का सघन परीक्षण कर रही है. दिल्ली -मुंबई -बेंगलुरू जैसे शहरों में रहने वाले तमाम लोगों के पास दो दो वोटर आईडी कार्ड हैं. इसलिए ही तो बीजेपी और जेडीयू जैसी पार्टियां भी परेशान हैं कि उनके लाखों वोटर्स बिहार में वोट देने से वंचित हो सकते हैं.
फेक और इनवैलिड एड्रेस को खत्म करने के लिए ही आधार को कर दिया निराधार
राहुल गांधी का दूसरा सबसे अधिक जोर फेक एड्रेस पर है. राहुल कहते हैं कि बेंगलुरू सेट्रल सीट पर 40 हजार वोटर्स ऐसे हैं, जिनके पते गलत हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है कि ऐसे फेक वोटर्स के जरिए चुनाव जीता जा जाता है. पर ये कैसे साबित होगा कि फेक वोटर्स किस पार्टी के पास नहीं है. बिहार में कई जिलों की जनसंख्या से ज्यादा वहां आधार कार्ड जारी हुए हैं. जाहिर है कि अगर आधार कार्ड को ही चुनाव आयोग वोटर आईडी बनाने का आधार मान लेता तो वही होता जो राहुल गांधी नहीं चाहते हैं.
शायद यही कारण है कि चुनाव आयोग ने वोटर आईडी के लिए केवल आधार कार्ड को ही आधार नहीं माना है. दरअसल एड्रेस प्रूफ के लिए आज भी आधार कार्ड को लीगल नहीं माना जाता है. आप अभी रेंट एग्रीमेंट बनवाकर घर बैठे आधार कार्ड पर एड्रेस चेंज कर सकते हैं. राहुल गांधी को अगर इतनी बातें समझ में आ गईं हैं तो उन्हें बिहार में चुनाव आयोग को एसआईआर में मदद करनी चाहिए. और डिमांड रखनी चाहिए कि देश व्यापी एसआईआर लागू हो.
एक ही पते पर बल्क वोटर्स का मुद्दा, इसीलिए चुनाव आयोग डोर टू डोर कैंपेन कर रहा
राहुल गांधी ने कहा कि 10 हजार के करीब मतदाता पाए गए हैं, जिनमें बल्क में एक ही एड्रेस है. राहुल ने कहा कि 50-60 मतदाताओं के एक ही पते पर वोट बने हुए हैं. इसके लिए राहुल ने बकायदा उन घरों की तस्वीर दिखाई, जिस पर 40, 50 और 60 की संख्या में वोटर के नाम दर्ज हैं. राहुल गांधी के इस आरोप में भी दम है.
पर शायद उन्हें यह पता नहीं है कि चुनाव आयोग इस काम को सभी पार्टियों के बीएलओ के जरिए डोर-टू-डोर सत्यापन का काम कर रही है. डोर टू डोर दस्तावेजों की जांच, और मतदाता सूची में गड़बड़ियों को दूर करने की व्यवस्था है. यदि एक ही पते पर असामान्य रूप से अधिक वोटर दर्ज हैं, तो सत्यापन के दौरान ऐसी विसंगतियों का पता लगाया जा सकता है. उदाहरण के लिए, एक छोटे से घर में 50-60 वोटरों का होना संदिग्ध है, और इसे सत्यापन के दौरान हटाया जा सकता है. राहुल गांधी को कुछ दिन बिहार में जाकर कांग्रेस पार्टी के बीएलओ के साथ घूमना चाहिए.
चुनाव आयोग को शपथ पत्र के साथ धांधली के सबूत क्यों नहीं दे रहे हैं राहुल गांधी
राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष के जिम्मेदारी भरे पद पर बैठे हैं. चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर यदि वे भाजपा से मिलीभगत करने का आरोप लगा रहे हैं, तो इससे ज्यादा गंभीर कुछ नहीं हो सकता. वे चुनाव आयोग से सवाल करते हैं कि वह उसे पिछले दस साल की वोटर सूची का डिजिटल आंकड़ा क्यों नहीं दे रहा है.
उन्हें सीसीटीवी के फुटेज क्यों नहीं मुहैया करवाए जा रहे हैं. उन्हें जिन दो विधानसभा सीटों का आंकड़ा पेपर मिला है, उसकी जांच करके राहुल ने हजारों वोटर आईडी में फर्जीवाड़े का दावा किया है. लेकिन, जिन दो सीटों के बारे में वे इतने दावे के साथ बोल रहे थे, उसी को लेकर कर्नाटक चुनाव आयोग ने उन्हें पत्र भेजा है कि वे जो सबूत पेश कर रहे हैं, उन्हें शपथ पत्र के साथ चुनाव आयोग को भेज दें.
आयोग द्वारा उन्हें यह भी सचेत किया गया है कि यदि उन्होंने झूठे सबूत पेश किये तो उन्हें रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट 1950 के सेक्शन 31 और भारतीय न्याय संहिता की धारा 227 के तहत सजा हो सकती है.जब राहुल गांधी से शपथ लेकर अपने सबूत चुनाव आयोग को देने का सवाल प्रेस कान्फ्रेंस में पूछा गया तो वे यह कहकर पीछे हट गए कि मैं एक जनप्रतिनिधि हूं. मेरा सार्वजनिक बयान ही मेरी शपथ है. जाहिर है, राहुल यह जानते हैं कि यदि वे जो फर्जीवाड़े के दस्तावेज पेश कर रहे हैं, यदि उसमें फर्जीवाड़ा निकला तो वे शपथ देकर फंस जाएंगे.
संयम श्रीवास्तव