अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 24 जून को 12 दिन चले ईरान-इजरायल युद्ध के अंत की घोषणा की. लगभग दो हफ्ते तक मिडिल ईस्ट युद्ध की दहलीज पर खड़ा रहा. ईरान और इजरायल ने एक-दूसरे पर फाइटर जेट्स, ड्रोन और हाइपरसोनिक बैलिस्टिक मिसाइलों से हमला किया. मध्य पूर्व, जो दुनिया का ऊर्जा से भरपूर क्षेत्र है, वहां युद्ध गैस स्टेशन में बंदूक चलाने जैसा होता है, यानी एक भी गोली सर्वनाश की चिंगारी बन सकती है.
मिडिल ईस्ट में इस जंग की चिंगारी 7 अक्टूबर 2023 को उस समय भड़की, जब हमास के उन्मादी सैन्य कमांडर याह्या सिनवार ने 1200 इजरायली नागरिकों के नरसंहार का आदेश दिया. इसके बाद क्षेत्र 1973 के योम किप्पुर युद्ध के बाद के सबसे भयानक संकट में डूब गया. योम किप्पुर युद्ध इजरायल और किसी अरब देश (मिस्र) के बीच हुआ आखिरी पारंपरिक युद्ध था.
2023 में इजरायल ने हमास के खिलाफ गाजा पट्टी में सैन्य अभियान शुरू कर युद्ध छेड़ा, लेकिन यह अब खत्म हुआ अमेरिका के हस्तक्षेप से, जिसमें 22 जून को अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर बमबारी की. यह 12 दिन चला युद्ध 1973 के योम किप्पुर युद्ध के बाद पश्चिम एशिया का सबसे घातक संघर्ष रहा और इसकी कहानी तीन व्यक्तित्वों के इर्द-गिर्द घूमती है- इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह अली खामेनेई.
ईरान और इजरायल के बीच युद्ध की सीमाएं भूगोल ने तय कीं
ऐसे युद्धों में जीत तय करना मुश्किल होता है जो बिना निर्णायक परिणाम के समाप्त होते हैं. इस 12 दिनी युद्ध में भी 'रेजिम चेंज' (शासन परिवर्तन) का वादा किया गया था, लेकिन यह साकार नहीं हुआ. 2003 में अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 1.6 लाख सैनिकों के साथ इराक पर हमला किया और सद्दाम हुसैन की सेना को हराकर पश्चिम समर्थित शासन स्थापित किया. लेकिन 2025 में कोई जमीनी कार्रवाई नहीं हुई. ईरान और इजरायल दोनों वहीं खड़े हैं, जहां वे अक्टूबर 2023 में थे, दोनों की सरकारें अब भी जस की तस हैं. इस युद्ध की सीमाएं भूगोल ने तय कीं.
ईरान और इजरायल के बीच 1000 किलोमीटर से अधिक की दूरी है. इसलिए, युद्ध इराक, जॉर्डन और सीरिया के हवाई क्षेत्र में लड़ा गया. इजरायली पायलटों ने दिल्ली-मुंबई रिटर्न उड़ान से लंबी दूरी तय कर ईरान में बमबारी की. दूसरी ओर ईरान के पास कोई प्रभावशाली वायुसेना नहीं है, उसने ड्रोन और बैलिस्टिक मिसाइलों से इजरायल पर हमला किया.
युद्ध के बाद दोनों देशों ने जीत का दावा किया
24 जून को नेतन्याहू ने कहा, "इजरायल ने ऐतिहासिक जीत हासिल की है जो पीढ़ियों तक याद रखी जाएगी, क्योंकि उसने दो तत्काल अस्तित्वगत खतरों को समाप्त कर दिया. परमाणु विनाश का खतरा और 20,000 बैलिस्टिक मिसाइलों से विनाश का खतरा".
वहीं, खामेनेई, जिन्होंने 1979 के बाद से अपने शासन पर सबसे गंभीर सैन्य खतरे को झेला, ने कहा कि ईरान वह राष्ट्र नहीं है जो समर्पण करे.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जिनका नोबेल शांति पुरस्कार पाने का सपना अब भी बरकरार है, उन्होंने पहले रणनीतिक बमवर्षक के रूप में और फिर शांतिदूत के रूप में पश्चिम एशिया के युद्ध में छलांग लगाई. अगर हम जमीनी हकीकत को ध्यान से देखें, तो एक स्पष्ट विजेता नजर आता है- बेंजामिन नेतन्याहू.
6 अक्टूबर 2023 को नेतन्याहू राजनीतिक रूप से मुश्किलों में घिरे थे. वे इजरायल के पहले प्रधानमंत्री थे जिन्हें धोखाधड़ी, फर्जीवाड़े और विश्वासघात के तीन मामलों में 2019 में आधिकारिक रूप से आरोपित किया गया. 2021 में उन्हें पद से हटा दिया गया था, लेकिन 2022 के चुनावों में बहुमत हासिल कर वे फिर लौटे.
हमास का हमला इजरायल की सबसे बड़ी सुरक्षा चूक
7 अक्टूबर के हमलों में हमास के 5,600 से अधिक लड़ाके इजरायल पर हमला करने को घुसे, 4,000 रॉकेट दागे और 1200 नागरिकों की हत्या कर दी. साथ ही 200 से अधिक नागरिकों को बंधक बना लिया. यह हमला उस समय हुआ जब इजरायल को हमास के इरादों की पुख्ता खुफिया जानकारी थी. यह इजरायल की सुरक्षा में 1973 के योम किप्पुर युद्ध के बाद की सबसे बड़ी चूक थी. इजरायल की प्रतिक्रिया 1967 के युद्ध की याद दिलाती थी, जब सीरिया, जॉर्डन और मिस्र ने एक साथ इजरायल पर हमला किया था.
यह हमला किसी भी अन्य नेता का करियर खत्म कर सकता था, लेकिन नेतन्याहू का नहीं. वे इजरायल स्पेशल फोर्सेज के पूर्व अधिकारी हैं और उनके भाई लेफ्टिनेंट कर्नल जोनाथन नेतन्याहू ने 1976 में युगांडा के एंटेबे में इजरायली यात्रियों को छुड़ाने का ऐतिहासिक अभियान चलाया था. नेतन्याहू ने गाज़ा में सेना भेजी ताकि हमास को खत्म किया जा सके और करीब 250 इजरायली बंधकों को छुड़ाया जा सके.
इसके जवाब में ईरान ने सीरिया, यमन, इराक और लेबनान में मौजूद अपने शिया प्रॉक्सी नेटवर्क को सक्रिय कर दिया. ईरान का यह 'एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस' पिछले दो दशकों में आईआरजीसी कमांडर मेजर जनरल कासिम सुलेमानी ने खड़ा किया था.
इनमें सबसे बड़ा समूह हिजबुल्ला था, जिसने अपनी मिसाइलों और रॉकेटों से इजरायल पर हमला किया, जिससे उत्तरी इजरायल से लोगों का पलायन शुरू हो गया. 2,000 किलोमीटर दूर यमन में स्थित शिया संगठन हूती ने इज़रायल पर मिसाइलें दागीं और रेड सी को पश्चिमी जहाजों के लिए बंद कर दिया. उन्होंने वाणिज्यिक जहाजों पर एंटी-शिप बैलिस्टिक मिसाइलों के बड़े पैमाने पर इस्तेमाल की शुरुआत की. इराक से कताइब हिजबुल्ला, एक इराकी शिया प्रॉक्सी ग्रुप, ने भी इजरायल पर मिसाइलें दागीं.
नेतन्याहू ने सैन्य सलाह का किया पालन
2023 में नेतन्याहू को दी गई सैन्य सलाह यह थी कि वह हमास से लड़ें और अन्य मोर्चों को संभाले रखें. वास्तव में, इजरायल युद्ध उस समय समाप्त कर सकता था जब आईडीएफ ने गाज़ा पट्टी के बड़े हिस्से पर नियंत्रण पा लिया था और 2024 में याह्या सिनवार को खत्म कर दिया था.
युद्ध सेनाएं लड़ती हैं लेकिन उन्हें दिशा राजनेता देते हैं. और यह निर्णय नेतन्याहू को लेना था. उन्होंने मौके को भांपते हुए War of Attrition का रास्ता चुना. एक लंबे और कष्टदायक सैन्य अभियान का रास्ता, जो 20 महीनों तक चला और तब जाकर समाप्त हुआ जब इजरायल ने इतिहास में पहली बार ईरान पर सीधा हमला किया. अक्टूबर 2024 में भी ईरान और इजरायल ने एक-दूसरे पर फाइटर जेट और बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं. लेकिन यह संघर्ष जून 2025 में कहीं अधिक बड़े पैमाने पर दोहराया गया.
ऑपरेशन राइजिंग लायन इजरायल की सबसे बड़ी सैन्य कार्रवाई
नेतन्याहू की किस्मत तब और चमकी जब 20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप व्हाइट हाउस में दोबारा लौटे. अपने पहले कार्यकाल की शुरुआत में 2016 में ट्रंप ने ईरान परमाणु समझौते को रद्द कर दिया, जो ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के बदले उस पर लगे वैश्विक प्रतिबंधों को कम करता था. 2020 में ट्रंप ने जनरल कासिम सुलेमानी की इराक में हत्या का आदेश दिया था. अपने दूसरे कार्यकाल में ट्रंप ने ईरान-इज़रायल युद्ध को समाप्त करने की शपथ ली, लेकिन नेतन्याहू के इरादे कुछ और ही थे.
13 जून को इजरायल ने 'ऑपरेशन राइजिंग लायन' लॉन्च कर दिया, जो लगभग दो दशकों में उसकी सबसे बड़ी सैन्य कार्रवाई थी. 200 से अधिक लड़ाकू विमान सैकड़ों मिशन में रवाना हुए और उन्होंने ईरानी सैन्य अड्डों को निशाना बनाया, परमाणु वैज्ञानिकों को मारा और सैन्य अधिकारियों की हत्याएं कीं. इस समय तक नेतन्याहू पहले ही ईरान के शिया प्रभाव के चक्रव्यूह में सेंध लगा चुके थे, जो लेबनान और सीरिया से होते हुए इराक और ईरान तक फैला हुआ था.
यह चक्र पिछले दिसंबर में तब टूट गया जब बशर अल-असद का शासन गिर गया और सीरिया एक पश्चिमी समर्थक सरकार के हाथों चला गया. इजरायली युद्धक विमानों ने सीरिया की शेष वायुसेना और नौसेना संपत्तियों को पहले ही प्री-एम्पटिव स्ट्राइक्स (पूर्व-खतरे के जवाब में) में नष्ट कर दिया था, जिससे सीरिया से इजरायल के लिए एक संभावित सैन्य खतरा समाप्त हो गया.
इजरायल का हिजबुल्ला पर पेजर अटैक
हिजबुल्ला को इजरायल की सीमित जमीनी घुसपैठ और उसके शीर्ष नेतृत्व पर लक्षित 'पेजर बम' हमलों के जरिए कुचल दिया गया, और उसके नेता हसन नसरल्ला को इजरायली वायु सेना ने मार गिराया. नेतन्याहू की यह 'राजनीतिक चाल' संभवतः अमेरिका और राष्ट्रपति ट्रंप को उस संघर्ष में खींच लाने का प्रयास था जिसमें वे शामिल होने से कतरा रहे थे.
जून 2025 में युद्ध के अंत और एक नाजुक युद्धविराम की शुरुआत के साथ, ईरान अकेला और उजागर खड़ा है. उसकी परमाणु संवर्धन सुविधाएं अब मलबे में बदल चुकी हैं, उसकी प्रॉक्सी सेनाएं बिखर चुकी हैं, आयतुल्लाह अली खामेनेई एक बंकर में छिपे हुए हैं, और उनका शासन सिर्फ अपनी जीवित बचने के लिए शुक्रगुज़ार है.
पूर्व पीएम गोल्डा मेयर से मिलती जुलती है नेतन्याहू की यात्रा
नेतन्याहू की 20 महीनों की यह यात्रा इजरायल की करिश्माई प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर की यात्रा से मिलती-जुलती है, जो 1973 के योम किप्पुर युद्ध के दौरान प्रधानमंत्री थीं. तब इजरायली खुफिया एजेंसियां मिस्र और सीरिया के चौंकाने वाले सैन्य हमले की भविष्यवाणी करने में विफल रहीं. इजरायल ने पलटवार किया और दोनों देशों को गतिरोध की स्थिति में ला खड़ा किया, जिससे उसकी कुछ इज्जत बच गई.
गोल्डा मेयर ने अप्रैल 1974 में इस्तीफा दे दिया, जब एग्रेनाट कमीशन ने 1973 के युद्ध की पूर्व संध्या पर उनकी सरकार को गंभीर खुफिया विफलताओं के लिए दोषी ठहराया. और यहीं पर गोल्डा मेयर और नेतन्याहू की समानताएं समाप्त हो जाती हैं.
2024 में एक इजरायली जांच ने हमास की तैयारियों को लेकर सैन्य और खुफिया समुदाय को दोषी ठहराया. इस जांच में पाया गया कि 7 अक्टूबर से पहले हमास की गतिविधियों को लेकर दी गई चेतावनियों को या तो नजरअंदाज किया गया या गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया. अब तक नेतन्याहू ऐसी किसी जांच की मांगों का विरोध करते रहे हैं, जो उनके राजनीतिक नेतृत्व की विफलताओं की जांच करे, जिससे हमले को रोका नहीं जा सका.
सबसे अधिक समय तक पीएम रहने वाले पीएम बने नेतन्याहू
2025 में, नेतन्याहू इजरायल के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले प्रधानमंत्री बन चुके हैं- 17 वर्षों में 6 कार्यकाल. यह संख्या उनके मित्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से 6 साल ज्यादा है, जो अब तक 11 वर्षों तक भारत के प्रधानमंत्री रहे हैं. नेतन्याहू और मोदी दोनों ने समान किस्म की लड़ाइयां लड़ी हैं.
नेतन्याहू ने ईरान और उसके प्रॉक्सी नेटवर्क को असहाय करने की कोशिश की, तो पीएम मोदी ने पाकिस्तान के परमाणु ब्लैकमेल को चुनौती दी, जिसे वह अपने आतंकवादियों की रक्षा के लिए इस्तेमाल करता रहा है. अगली बार जब ये दोनों नेता इजरायल के किसी समुद्रतट पर साथ टहलते नजर आएं, तो उनके पास केवल समुद्री जलशोधन संयंत्रों से कहीं अधिक गंभीर विषयों पर बात करने के लिए बहुत कुछ होगा.
(संदीप उन्नीथन लेखक और वरिष्ठ पत्रकार हैं. व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं.)
संदीप उन्नीथन