बिहार में महागठबंधन के लिए 'जंगलराज' के बाद गले पड़ी 'जंगली भाषा', राहुल से ज्‍यादा तेजस्वी का नुकसान

बिहार चुनावों में राहुल गांधी के लिए खोने को कुछ नहीं है. असली दांव पर तो तेजस्वी यादव हैं. राहुल गांधी जिन अपमानजनक शब्दों का प्रयोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए कर रहे हैं, वो महागठबंधन के लिए सेल्फ गोल करने जैसा है. जिसका सबसे ज्‍यादा नुकसान तो आरजेडी को ही होगा.

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वोटर अधिकार यात्रा के दौरान राहुल गांधी और तेजस्वी यादव.  (photo: ITG) वोटर अधिकार यात्रा के दौरान राहुल गांधी और तेजस्वी यादव. (photo: ITG)

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 29 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 5:05 PM IST

वोट अधिकार यात्रा से राहुल गांधी ने जो कमाया वो एक 'गाली' से गंवा दिया. प्रधानमंत्री मोदी की मां के लिए कांग्रेस के मंच से जो कहा गया, उसकी सफाई कांग्रेस नहीं दे पा रही है. उधर, तेजस्‍वी यादव और राजद ने भी इस विषय पर चुप्‍पी साध ली है. खास बात यह है कि कांग्रेस के मंच से ही मोदी के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल नहीं किया गया, बल्कि खुद राहुल गांधी आजकल मोदी के लिए तू-तड़ाक वाली भाषा का इस्तेमाल करने लगे हैं. जाहिर है कि आरजेडी नेता और प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के लिए राहुल की इस तरह की भाषा ने बहुत मुश्किल खड़ी कर दी है. तेजस्वी यादव पहले अपने पिता लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल को जंगलराज बताए जाने से लड़ रहे थे, अब अपनी सहयोगी पार्टी की आपत्तिजनक भाषा से उपजे रोष से भी उसी तरह लड़ना पड़ रहा है.

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'वोटर अधिकार यात्रा' कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की संयुक्त पहल है, जिसका उद्देश्य मतदाता सूची में कथित अनियमितताओं, 'वोट चोरी' और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाना है. 28 अगस्त को दरभंगा जिले में यात्रा के एक कार्यक्रम में मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी दिवंगत मां हीराबेन मोदी के खिलाफ बेहद अपमानजनक और अभद्र भाषा का उपयोग किया गया. एक वायरल वीडियो में कुछ अज्ञात व्यक्तियों ने गाली-गलौज की, जो सोशल मीडिया पर तेजी से फैली. भाजपा ने इसके लिए सीधे राहुल और तेजस्वी की जिम्मेदारी ठहराया. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि कांग्रेस की राजनीति सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है जबकि भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने राहुल गांधी से माफी की मांग की है. बिहार महिला आयोग ने राहुल और तेजस्वी को नोटिस जारी किया और पटना में राहुल के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई.एक व्यक्ति को गिरफ्तारी भी हुई है.

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1-राहुल गांधी कैसे बिहार चुनावों में तेजस्वी का खेल बिगाड़ रहे हैं

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनता दल और महागठबंधन करीब करीब सत्ता के नजदीक पहुंच चुका था. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में कुल 243 सीटों में बहुमत के लिए 122 सीटें चाहिए थीं. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने 125 सीटें जीतीं, जबकि महागठबंधन को 110 सीटें मिलीं. तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन को सत्ता से केवल 12 सीटें पीछे रह गया था.

आरजेडी ने 144 सीटों पर चुनाव लड़ा और 75 सीटों पर कब्जा जमाया. जो किसी भी दल के लिए सबसे अधिक सीट थी. राजद का वोट प्रतिशत 23.1% रहा, जो एनडीए के प्रमुख दल भाजपा (19.4%) से अधिक था. यह बिल्कुल साफ था कि तेजस्वी ने मतदाताओं के बीच मजबूत समर्थन हासिल किया था. नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा, 43 सीटें जीतीं, और वोट प्रतिशत 15.4% रहा.

कांग्रेस महागठबंधन के साथ 70 सीटों पर चुनाव लड़ी और 19 सीट ही जीत सकी थी. जाहिर है कि पिछली बार तेजस्वी के लिए कांग्रेस को 70 सीट देना काल बन गया. यह निश्चित था कि अगर इन 70 सीटों पर आरजेडी चुनाव लड़ी होती तो कम से 30 से 32 सीटों और मिल सकती थी और तेजस्वी मुख्यमंत्री बन सकते थे. 

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इस बार के बिहार चुनाव में एजेंडा सेट करने के लिए भी सबसे पहले राहुल गांधी ही पहुंचे हैं. वोटर अधिकार यात्रा के जरिये एक तरह से पूरे चुनावी माहौल की दिशा वे ही तय कर रहे हैं. मतदाता सूची की गड़बड़ी की बात उठाने तक तो सब ठीक था. लेकिन, उन्‍होंने यात्रा के दौरान अपनी बात पहचाने के लिए जो रणनीति अपनाई, वो उलटी पड़ती‍ दिखाई दे रही है. आलोचना तो इस बात की भी हुई कि आखिर बिहार की चुनावी सभा में तमिलनाडु के मुख्‍यमंत्री स्‍टालिन को लाने की क्‍या जरूरत थी? जो अपने सनातन विरोधी और हिंदी विरोधी रुख की वजह से उत्‍तर भारत में वैसे ही नापसंद किए जाते हैं. उनकी पार्टी डीएमके भी बिहार से तमिलनाडु जाने वाले प्रवासी लोगों के बारे में आपत्तिजनक बयान देती रही है.

हां, स्‍टालिन को अपने साथ रखना राहुल गांधी के राष्‍ट्रीय एजेंडे को तो सूट करता है, लेकिन इसका बिहार चुनाव से कोई लेना देना नहीं है. ऐसे में माना जा सकता है कि स्‍टालिन को बिहार बुलाने में तेजस्‍वी यादव या आरजेडी से सलाह न ली गई हो. सिर्फ इंडिया गठबंधन का साथी होने के नाते ही तेजस्‍वी को स्‍टालिन की अगुवाई करनी पड़ी हो.

लेकिन, स्‍टालिन के बिहार आने से ज्‍यादा परेशानी तेजस्‍वी को राहुल गांधी और कांग्रेस नेताओं की आपत्तिजनक भाषा से होने वाली है. दरअसल जिस तरह की भाषा राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं उसका सीधा प्रभाव कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर जा रहा है. जब राहुल गांधी पीएम को तू तड़ाक करेंगे तो जाहिर है कि नीचे वाले कार्यकर्ता तो गाली से कम पर बात ही नहीं करेंगे.

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2-राहुल के पास खोने के लिए कुछ नहीं, नुकसान तो तेजस्वी यादव का ही 

राहुल गांधी जिस तरह वोटर अधिकार यात्रा में बोल रहे हैं उसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं हैं. वे अच्छी तरह जानते हैं कि बिहार में पिछली बार 19 सीटें मिलीं थीं, इस बार कुछ कम या ज्यादा हो सकती है. कांग्रेस किसी भी सूरत में बिहार में अपने बूते सरकार तो नहीं ही बना सकती है.

तेजस्वी यादव से राहुल का कोई सीधा कांपिटिशन नहीं है, लेकिन, यह जरूर कहा जा सकता है कि बिहार में मुस्लिम, दलित और ओबीसी को अपने पाले में लाने के लिए दोनों ही दल जी तोड़ मेहनत करते रहे हैं. यह भी सही है कि आरजेडी ने बिहार में जितना भी फैलाव किया है, वो कांग्रेस की ही जमीन पर है. ऐसे में बिना आरजेडी के कमजोर हुए कांग्रेस अपने कोर वोटर्स से नहीं जुड सकती है. कांग्रेस का कोर वोटर्स मुसलमान आज पूरी तरह आरजेडी के साथ खड़ा है. आरजेडी अगर चुनावों में बर्बाद होती है तो राहुल गांधी को उतना ही मजा आने वाला है जितना उन्हें चुनाव जीतने में आता. क्योंकि कांग्रेस आज हर कीमत पर यही चाहती है कि आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल जैसे दलों के खत्म होने का रास्ता बने. ताकि उसका पुराना दौर वापस आ सके.

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3-गलत बयानबाजियों ने पहले भी कांग्रेस का बंटाधार किया है

कांग्रेस पार्टी ने जब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपमानजनक शब्दों का उपयोग किया है, उसके लिए उल्टा ही पड़ा है. नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियों का सिलसिला 2007 से शुरू हुआ, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे. उस समय, तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान मोदी को 'मौत का सौदागर' कहा था. गुजरात की जनता ने इसे व्यक्तिगत हमले के रूप में लिया, और भाजपा ने इस बयान को भुनाकर मोदी को एक मजबूत, क्षेत्रीय नेता के रूप में पेश किया. 
2017 में कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने मोदी को 'नीच आदमी' कहा, जिसे सामाजिक और व्यक्तिगत अपमान के रूप में देखा गया. इस टिप्पणी ने गुजरात चुनाव में भाजपा को भावनात्मक मुद्दा दे दिया. मोदी ने इसे अपनी साधारण पृष्ठभूमि से जोड़कर जनता में सहानुभूति बटोरी, और भाजपा ने फिर से गुजरात में जीत हासिल की. 

2019 का 'चौकीदार चोर है' अभियान राफेल डील में कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ था. यह नारा सीधे मोदी को निशाना बनाता था, जो खुद को देश का चौकीदार कहते थे. 2019 में कांग्रेस को केवल 52 सीटें मिलीं, जबकि भाजपा ने 303 सीटों के साथ प्रचंड बहुमत हासिल किया.

भारतीय मतदाता, विशेष रूप से ग्रामीण और छोटे शहरों में, व्यक्तिगत हमलों को पसंद नहीं करते. मोदी की साधारण पृष्ठभूमि और उनकी मां के प्रति सम्मान को अपमानित करने वाली टिप्पणियां जनता में सहानुभूति पैदा करती हैं. दूसरी बात यह भी है कि भाजपा इन टिप्पणियों को भुनाने में माहिर है. वे इसे कांग्रेस के अहंकार और वंशवादी मानसिकता के रूप में पेश करते हैं, जो उनकी हिंदुत्व और विकास की कहानी को मजबूत करता है.

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4-गाली कांड के बाद आरजेडी की चुप्पी यूं ही नहीं है 

पीएम मोदी की मां के बारे में अपमानजनक गाली कांड के बाद राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की चुप्पी एक संदेह पैदा करती है. आरजेडी के लिए यह एक रणनीतिक कदम भी हो सकता है. यह घटना 28 अगस्त 2025 को बिहार के दरभंगा में  वोटर अधिकार यात्रा के दौरान हुई, जब मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी स्वर्गीय मां हीराबेन मोदी के खिलाफ अपमानजनक भाषा का उपयोग किया गया. हालांकि एक कारण तो यही हो सकता है कि आरजेडी चुप रहकर इस विवाद को ठंडा करने की कोशिश कर रही हो, ताकि यह चुनावी मुद्दा न बन सके. पर इसमें भी कोई दो राय नहीं हो सकती कि पार्टी जानबूझकर राहुल गांधी को कठघरे में खड़ा करना चाहती हो.

क्योंकि वोट अधिकार यात्रा के दौरान कांग्रेस को जितनी लाइमलाइट मिली है उतनी आरजेडी को नहीं. चाहे राहुल गांधी का बुलेट अवतार हो या मखाना किसानों से उनकी चर्चा हो, तेजस्वी को कहीं महत्व नहीं मिल रहा है. यहां तक कि तेजस्वी राहुल गांधी को हर रोज पीएम कैंडिडेट बता रहे हैं पर कांग्रेस की ओर से एक बार भी तेजस्वी के लिए सीएम कैंडिडेट की बात नहीं की जा रही है.

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राजद इस विवाद को कांग्रेस की गलती के रूप में देख सकता है, क्योंकि मंच पर टिप्पणी स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ता से जुड़ी थी. तेजस्वी मंच पर मौजूद नहीं थे, इसलिए चुप्पी के जरिए वे जिम्मेदारी से बचना चाहते हों.

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