बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों में एनडीए ऐतिहासिक लैंडस्लाइड विक्ट्री की ओर बढ रही है. अभी तक आए रुझान बता रहे हैं कि एनडीए 243 सीटों में से 192 सीटों पर आगे चल रही है.जबकि महागठबंधन 46 सीटों पर सिमटती नजर आ रही है.जाहिर है कि यह जनादेश केवल विपक्ष की खामियों का नतीजा नहीं है बल्कि यह श्रेष्ठ कैंडिडेट , बेहतर नेतृत्व और शानदार स्ट्रैटजी का परिणाम है. फिलहाल इस लैंडस्लाइड विक्ट्री के 6 मुख्य पिलर रहे हैं.
1. नीतीश कुमार का निर्विवाद नेतृत्व
बिहार चुनाव में एनडीए की लैंडस्लाइड विक्ट्री के सबसे मजबूत पिलर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार साबित हुए. 74 वर्षीय नीतीश, जो बिहार के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले मुख्यमंत्री हैं, ने अपनी राजनीतिक चतुराई और सामाजिक इंजीनियरिंग से गठबंधन को मजबूत आधार दिया. उनकी छवि 'सुशासन बाबू' की है, जो 2005 से बिहार को 'जंगल राज' से बाहर निकालने का प्रतीक बनी. नीतीश का नेतृत्व ही है कि कुर्मी (3.5%) जाति के होते हुए भी बिहार के सर्वमान्य नेता बने हुए हैं. चाहे ईबीसी (अत्यंत पिछड़ा वर्ग, 36%) हो जिसे नीतीश ने आरक्षण और कल्याण योजनाओं से एकजुट रखा या अगड़ी जातियां हों सभी वर्गों में वो मान्य हैं. मुसलमान भी उन्हें अपना दुश्मन नहीं समझते हैं. बहुत से मुसलमानों ने भी उन्हें वोट दिया है. नीतीश की उम्र और स्वास्थ्य पर सवाल उठे, लेकिन उन्होंने अपने खिलाफ चले सभी नरेटिव को झुठला दिया.
2. चिराग पासवान का सपोर्ट मिट्टी को सोना बना दिया
चिराग पासवान के सपोर्ट को कहीं से भी कम करके नहीं आंका जा सकता है. एनडीए को उनका सपोर्ट ही है कि बिहार में जनता दल यूनाइटेड हो या बीजेपी दोनों ही पार्टियां अपना बेहतरीन प्रदर्शन कर रही है. 43 वर्षीय चिराग, रामविलास पासवान के पुत्र, ने अपनी युवा ऊर्जा और पासवान वोट बैंक (5-6%) को एकजुट कर गठबंधन को मजबूत किया.एनडीए की ओर से उनकी पार्टी एलजेपी (आरवी) को 29 सीटें मिलीं थीं.
चिराग के सपोर्ट को समझने के लिए हमें यह समझना होगा कि कैसे उनके एनडीए से बाहर होने के चलते 2020 में जेडीयू और बीजेपी को नुकसान हुआ था. 2020 में उन्होंने नीतीश को 40 सीटें गंवाने पर मजबूर किया. बीजेपी को भी कई सीटों पर नुकसान हुआ था. 2025 में वे एनडीए जॉइन कर 'भाई चिराग' बन गए, और मोदी ने उनकी तारीफ की.
उनकी 100 से अधिक रैलियां और सोशल मीडिया पर उनकी जबरदस्त उपस्थिति ने पासवान वोटों को एकजुट किया, जो दलित समुदाय (16%) का बड़ा हिस्सा है. पारस धड़े (आरएलजेपी) के बावजूद चिराग ने वोट स्प्लिट नहीं होने दिया. इतना ही नहीं आज की तारीख में वो एक मात्र ऐसे नेता बनकर उभरे हैं जो अपने वोटों को दूसरी पार्टियों में ट्रांसफर कराने की कूवत भी रखता है. नतीजों में साफ दिख रहा है कि चिराग के वोट जेडीयू और बीजेपी में सफलतापूर्क ट्रांसफर हुए हैं.
3- एनडीए गठबंधन में आपसी समन्वय
एनडीए में बिहार चुनावों के दौरान गजब का समन्वय देखने को मिला. बीजेपी और जेडीयू में आपसी प्रतिस्पर्धा के बावजूद कहीं से भी सीटों को लेकर अनबन होती नहीं दिखी. दोनों ही दलों ने खुद को 101 -101 सीटों पर खुद को समेट लिया. शुरू में एलजेपी और हम आदि में कुछ असंतोष दिखा पर जल्द ही मामला सुलझा लिया गया. सही समय पर सीटों के प्रत्याशी भी घोषित हो गए. दूसरी तरफ महागठबंधन अंतिम समय तक सीट शेयरिंग को लेकर जूझता रहा . यहां तक कि पर्चा वापस लेने का समय सीमा समाप्त होने के बाद भी महागठबंधन के दल आपस में लड़ते रहे. बिहार की जनता बेवकूफ नहीं है .वह सब देख रही थी.
4- मुख्यमंत्री चेहरे पर बीजेपी की स्ट्रेटजी
मुख्यमंत्री चेहरे पर सस्पेंस बनाने को बीजेपी की रणनीति को सबसे कमजोर कड़ी माना जा रहा था. पर यह उल्टा साबित हुआ है. बीजेपी ने नीतीश कुमार समर्थक और उनके विरोधी दोनों ही तरह के वोटर्स को साधने को लेकर यह रणनीति अपनाई जो सफल होती दिख रही है. दरअसल बीजेपी यह जानती थी कि बहुत से बीजेपी समर्थक राज्य में नीतीश को मुख्यमंत्री के रूप में देखने की बजाए किसी बीजेपी नेता को सीएम बनाना चाहते थे. दूसरी तरफ नीतीश कुमार बिहार में निर्विवाद छवि वाले नेता हैं. उनको हर वर्ग और समुदाय में एक समान सम्मान प्राप्त है. बीजेपी उन्हें नकार भी नहीं सकती थी. इसलिए पार्टी ने एक रणनीति के तरह उनके नाम पर कन्फ्यूजन बनाए रखा. यही रणनीति बीजेपी ने दिल्ली, महाराष्ट्र और हरियाणा आदि में भी किया था.
5- सुशासन और विकास
सुशासन और विकास एनडीए की विक्ट्री का तीसरा पिलर रहा, जो नीतीश के 20 वर्षों के शासन का प्रमाण है. बिहार, जो 1990 में 'बिमारू' राज्य था, अब सड़कें (1 लाख किमी), बिजली (95% कवरेज) और शिक्षा में प्रगति कर रहा है. नीतीश का सुशासन—कानून-व्यवस्था सुधार, अपराध दर 50% गिरावट ने मध्यम वर्ग को आकर्षित किया. विकास योजनाएं जैसे स्मार्ट सिटी और एक्सप्रेसवे ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति दी. एनडीए का 'संकल्प पत्र' फेज्ड नौकरियां और इंफ्रास्ट्रक्चर पर केंद्रित था, जो विश्वसनीय लगा.जीविका दीदी ने 1.2 करोड़ महिलाओं को जोड़ा, जिसका असर मतदान में दिखा. बेरोजगारी पर नीतीश ने स्किल डेवलपमेंट से जवाब दिया.
6. जमीनी लाभार्थी योजनाएं
जमीनी लाभार्थी योजनाओं ने बिहार के ग्रामीण और गरीबों के लिए जितना काम किया है उतना किसी और राज्य में नहीं दिखा. नीतीश की सात निश्चय और बीजेपी की केंद्रीय स्कीम्स ने 5 करोड़ लाभार्थियों को बेनिफिट पहुंचाया. पीएम आवास, उज्ज्वला और आयुष्मान ने ग्रामीण वोटरों को बांध के रखा. ये योजनाएं जातिगत रूप से संतुलित रहीं, ईबीसी और दलित वोटरों को सबसे अधिक फायदा पहुंचा. नीतीश की स्ट्रेटजी महिलाओं के कल्याण पर टिकी रही. महिलाओं को पंचायतों और सरकार नौकरियों में आरक्षण ने एनडीए को मजबूत आधार दिया.
संयम श्रीवास्तव