प्रशांत‍ किशोर बिहार में BJP, RJD और JDU में से किसके लिए ज्‍यादा चुनौतीपूर्ण होंगे | Opinion

प्रशांत किशोर बिहार में 'जन-सुराज' लाने के लिए लोगों को जागरुक कर रहे हैं. 2 अक्टूबर को अपना राजनीतिक दल लॉन्च करने के बाद वो मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स में सभी को चैलेंज करने जा रहे हैं - उनके निशाने पर तो सबसे ज्यादा तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार ही नजर आते हैं, बीजेपी को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं क्या?

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बिहार में प्रशांत किशोर की सक्रियता को लेकर सबसे बड़ा सवाल है कि जन सुराज अभियान से बीजेपी को नुकसान होगा या फायदा? बिहार में प्रशांत किशोर की सक्रियता को लेकर सबसे बड़ा सवाल है कि जन सुराज अभियान से बीजेपी को नुकसान होगा या फायदा?

मृगांक शेखर

  • नई दिल्ली,
  • 30 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 5:06 PM IST

2 अक्टूबर को राजनीतिक पार्टी लॉन्च करने से ठीक पहले प्रशांत किशोर को बड़ा अच्छा मुद्दा मिल गया है. पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में बिहार के छात्र की पिटाई की घटना वही मसला है, जिसका प्रशांत किशोर अपने जनसुराज अभियान के दौरान बार बार जिक्र कर रहे हैं. 

और पीके के नाम से सुपरिचित प्रशांत किशोर सिलीगुड़ी की घटना का जिक्र करते हुए बिहार के राजनीतिक दलों को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं. पीके का कहना है कि नेताओं की वजह से ही पूरे देश में बिहार के बच्चों को अपमानित किया जा रहा है. कहते हैं, आज पूरे देश में बिहार के लोगों का अपमान हो रहा है... बिहारी व्यक्ति को मूर्ख, अनपढ़ और मजदूर समझा जाता है... आज बिहारी शब्द गाली बन गया है.

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प्रशांत किशोर और अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक शैली की अक्सर तुलना की जाती है, लेकिन वो इस बात से साफ इनकार करते हैं. जैसे अभी हरियाणा की राजनीति में अरविंद केजरीवाल कूद पड़े हैं, बिहार के अगले चुनाव में प्रशांत किशोर भी वैसी ही भूमिका निभाने जा रहे हैं. कहने को तो अरविंद केजरीवाल और प्रशांत किशोर दोनो ही अपनी सरकार बनाने के दावे कर रहे हैं, लेकिन जैसे अरविंद केजरीवाल बीच बीच में खुद को हरियाणा में किंगमेकर बता रहे हैं, पीके भी कुछ कुछ वैसे ही बिहार में अपनी भूमिका की तरफ इशारा कर रहे हैं. 

जैसे अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस को नुकसान पहुंचाकर सत्ता हासिल कर ली, सवाल ये उठ रहा है कि आखिर प्रशांत किशोर बिहार में किस राजनीतिक दल के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनने जा रहे हैं?

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आरजेडी को पीके से कितना खतरा हो सकता है?

देखा जाये तो प्रशांत किशोर के टारगेट पर सबसे आगे आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ही नजर आते हैं, लेकिन ये तो उनकी कोशिश - मुद्दे की बात तो ये है कि प्रशांत किशोर की तमाम कोशिशों के बावजूद तेजस्वी यादव का वाकई कोई नुकसान हो पाएगा क्या?

तेजस्वी यादव घोर जातिवाद की राजनीति करते हैं. यादव के साथ मुस्लिम वोट का गठजोड़ कर लालू प्रसाद यादव लंबे अर्से से राजनीति करते आ रहे हैं, और तेजस्वी यादव उसी विरासत को बरकरार रखने की कोशिश कर रहे हैं. 

प्रशांत किशोर यादव वोट बैंक में सेंध लगा पाना असंभव तो नहीं है, लेकिन बेहद मुश्किल है. हो सकता है, रोजगार के वादे और कुछ कारगर लगने वाले लुभावने चुनावी वादों के जरिये प्रशांत किशोर युवाओं को अपनी तरफ खींच लें, लेकिन आरजेडी के कोर वोट बैंक को अपनी तरफ खींच पाना उनके लिए लोहे के चने चबाने जैसा ही है. 

जन सुराज के बैनर तले प्रशांत किशोर ने आने वाले बिहार चुनाव में 40 मुस्लिम उम्मीदवार उतारने की घोषणा जरूर किये हैं, लेकिन वो मुस्लिम वोट ले पाएंगे, संदेह है. क्योंकि वो असदुद्दीन ओवैसी नहीं हैं - और जिस तरह असदुद्दीन ओवैसी से बिहार के मुसलमानों को कुछ नहीं मिला, वे और भी सतर्क होंगे. हां, ये जरूर संभव है कि प्रशांत किशोर की वजह से मुस्लिम वोट बंट जाये, लेकिन उसका फायदा किसे मिलेगा?

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मुस्लिम वोट के बंट जाने का इतना तो फायदा नहीं ही होगा कि प्रशांत किशोर की पार्टी चुनाव जीत जाएगी. बस ये हो सकता है कि आरजेडी के विरोधी दलों को थोड़ा फायदा मिल जाये. 

जेडीयू के लिए पीके कितने खतरनाक होंगे?

तेजस्वी यादव की ही तरह प्रशांत किशोर के निशाने पर अक्सर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी होते हैं. किसी जमाने में नीतीश कुमार को डंके की चोट पर बीजेपी से लड़कर चुनाव जिता देने वाले प्रशांत किशोर अब उनकी मुखालफत करते हैं - और दलील ये है कि नीतीश कुमार बदल गये हैं. वो पहले वाले नीतीश कुमार नहीं रहे, मालूम नहीं नीतीश कुमार के बदल जाने के प्रशांत किशोर के आरोप से कितने लोग सहमत होंगे? 

प्रशांत किशोर ने जन सुराज की सरकार बनने पर बिहार में लागू शराबबंदी खत्म करने का ऐलान किया है - जिन लोगों को बिहार में शराबबंदी से फायदे की जगह नुकसान समझ आ रहा है, हो सकता है वे लोग प्रशांत किशोर की तरफ या नीतीश कुमार के विरोधी पाले में चले जायें.

बीजेपी को भी पीके से कोई खतरा है क्या?

प्रशांत किशोर खुद को बिहार में तीसरे विकल्प के तौर पर पेश कर रहे हैं. बिहार में तीन दशक से सिर्फ लालू परिवार और नीतीश कुमार का शासन है, और वो दोनो ही सरकारों की लगातार खामियां गिनाते रहे हैं. 

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ऐसे में ये समझना जरूरी हो जाता है कि प्रशांत किशोर की मुहिम से बीजेपी को भी नुकसान हो सकता है क्या? क्योंकि बीजेपी तो सत्ता में भागीदार भर है, नेतृत्व तो नीतीश कुमार के हाथों में है. बीजेपी की रणनीति यही है कि् नीतीश कुमार कि कमियों से वो पल्ला झाड़ ले, और उनके सुशासन की विरासत पर जैसे भी और जब भी मुमकिन हो काबिज हो जाये. 

अब अगर प्रशांत किशोर की वजह से नीतीश कुमार को वैसे ही नुकसान पहुंचता है जैसे चिराग पासवान से हुआ था, और तेजस्वी यादव को भी मुस्लिम वोट बैंक के चलते नुकसान होता है तो सीधा फायदा तो बीजेपी को ही मिलेगा - अगर प्रशांत किशोर खुद फायदे में नहीं होंगे, तो मानकर चलना चाहिये बीजेपी को नुकसान नहीं होगा, बल्कि वो फायदे में रहेगी. 

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