प्रवर्तन निदेशालय ने सुप्रीम कोर्ट में साफ साफ बोल दिया है कि दिल्ली शराब घोटाले में आम आदमी पार्टी को आरोपी बनाये जाने पर विचार किया जा रहा है. अब तक अलग अलग मामलों में मनीष सिसोदिया और संजय सिंह जैसे आम आदमी पार्टी के नेता ही आरोपी बनाये गये हैं.
सुप्रीम कोर्ट में ED की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा है कि आम आदमी पार्टी को आरोपी बनाने के लिए मनी लॉन्ड्रिंग कानून PMLA की धारा 70 लागू करने पर विचार किया जा रहा है. असल में, मनीष सिसोदिया की जमानत पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की तरफ से ही ऐसा सवाल उठाया गया था.
अब अगर आम आदमी पार्टी के खिलाफ मुकदमा चलाया जाता है, तो किसी राजनीतिक दल के खिलाफ इस तरह का ये पहला मामला होगा. हालांकि, आम आदमी पार्टी के खिलाफ PMLA की धारा 70 लागू करने को लेकर भी कई सवाल हैं जिनके जवाब खोजने होंगे.
ऐसे में जबकि आम आदमी पार्टी के ही कठघरे में खड़े होने की नौबत आ पड़ी है, सवाल उठता है कि अरविंद केजरीवाल का राजनीतिक भविष्य क्या होगा?
AAP नेताओं के खिलाफ जांच एजेंसियों के एक्शन होने पर अरविंद केजरीवाल साथियों को बेकसूर बता कर बचाव किया करते थे, अब तो सवाल ये भी है कि जब आम आदमी पार्टी ही आरोपी बना दी जाएगी तो AAP नेता क्या करेंगे?
AAP को शराब घोटाले में आरोपी बनाये जाने पर अरविंद केजरीवाल भी स्वाभाविक तौर पर घिर जाएंगे, क्योंकि संयोजक तो वही हैं. फिर तो ये भी देखना होगा कि आगे की लड़ाई अरविंद केजरीवाल कैसे लड़ेंगे?
AAP राजनीतिक दल है, कंपनी के लिए बना कानून कैसे लागू होगा
4 अक्टूबर को दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया की जमानत पर सुनवाई के दौरान जस्टिस संजीव खन्ना ने सवाल उठाया था, प्रवर्तन निदेशालय के केस के मुताबिक अपराध की आय हासिल करने वाला एक राजनीतिक दल था, न कि मनीष सिसोदिया.
और इसी बात को आगे बढ़ाते हुए कोर्ट का सवाल था, आम आदमी पार्टी को आरोपी क्यों नहीं बनाया गया?
जस्टिस संजीव खन्ना का कहना था, जहां तक PMLA का सवाल है, आपका पूरा मामला है कि पैसा एक राजनीतिक दल के पास गया है. वो राजनीतिक दल अब भी आरोपी नहीं है... आपका इसका जवाब कैसे देंगे?
ED की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा है, हम आम आदमी पार्टी को आरोपी बनाने और अतिरिक्त जांच करने के लिए PMLA की धारा 70 लागू करने पर विचार कर रहे हैं.
ईडी के जबाव पर आपत्ति जताते हुए मनीष सिसोदिया के वकील अभिषेक मनु सिंघवी का कहना था, ईडी की ओर से आये वाक्य का असर कल के अखबारों में दिखेगा... यही मकसद भी है.
सिंघवी की बात पर जस्टिस संजीव खन्ना ने समझाया कि ये ऐसा मामला नहीं है. और वो ये सवाल साफ साफ रखे थे कि क्या ये वही अपराध है या नया है?
प्रवर्तन निदेशालय का सुप्रीम कोर्ट में ये कहना कि वो आम आदमी पार्टी को आरोपी बनाने पर विचार कर रहा है, इस बात के भी खास मायने हैं. अगर कोई पेच नहीं होता तो ईडी की तरफ से विचार विमर्श की बात क्यों की जाती? सीधे केस दर्ज भी तो किया जा सकता था. या कम से कम यही बताया जा सकता था कि ईडी की तरफ से केस दर्ज किया जा रहा है.
दरअसल, PMLA यानी मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम कंपनियों से संबंधित है. किसी कंपनी द्वारा किये गये अपराधों के लिए है.
जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29ए के मुताबिक, आम आदमी पार्टी एक राजनीतिक दल है. इसलिए आम आदमी पार्टी को आरोपी बनाने के लिए ईडी को कोई और कानूनी रास्ता अख्तियार करना होगा, या फिर अलग से संबंधित सक्षम प्राधिकारी से अनुमति लेनी होगी.
फिलहाल बड़ा सवाल यही है कि क्या आम आदमी पार्टी के खिलाफ पीएमएलए की धारा 70 को लागू किया जा सकेगा?
कोई भी राजनीतिक दल किसी कंपनी की तरह परिभाषित तो नहीं किया जा सकता, लिहाजा धारा 70 के इस्तेमाल को लेकर भी ईडी को सुप्रीम कोर्ट की जिरह में जवाब के लिए तैयार रहना होगा.
चुनाव आयोग के पास एक्शन लेने का अधिकार है
चुनाव आयोग की किसी भी राजनीतिक दल को मान्यता प्रदान करता है. चुनाव आयोग के पास ही किसी भी राजनीतिक दल का रजिस्ट्रेशन तक रद्द करने का अधिकार है. किसी भी पार्टी में विवाद भी होता है तो मामला चुनाव आयोग के पास ही पहुंचता है.
जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 29ए में चुनाव आयोग को राजनीतिक दल को रजिस्टर करने का अधिकार दिया गया है. चुनाव आयोग रजिस्ट्रेशन की विशेष परिस्थितियों में ही समीक्षा कर सकता है.
सवाल है कि क्या ED की तरफ से आरोपी बनाये जाते ही आम आदमी पार्टी के खिलाफ चुनाव आयोग कोई एक्शन ले सकता है? पहली बात तो ये कि आरोपी बनाये जाने भर से कुछ नहीं होता, दोष सिद्ध होना जरूरी होता है.
चुनाव आयोग विशेष परिस्थितियों में ही राजनीतिक दल का रजिस्ट्रेशन रद्द कर सकता है. अगर किसी पार्टी ने फर्जीवाड़ा करके रजिस्टर करा लिया है. या, अगर पार्टी चुनाव आयोग को सूचित करती है कि वो भारतीय संविधान या समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के सिद्धांतों में उसकी आस्था नहीं है, या भारत की एकता और अखंडता का वो समर्थन नहीं करेगी, तो भी चुनाव आयोग कार्रवाई कर सकता है. या फिर, अगर सरकार द्वारा अवैध गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 या वैसे ही किसी कानून के प्रावधानों के तहत पार्टी को गैरकानूनी संगठन घोषित कर दिया गया हो.
मृगांक शेखर