देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का भूत हिंदुस्तान पर इस कदर हावी है कि उससे छुटकारा मिलना मुश्किल ही लगता है. बीजेपी भी लाख कोशिश कर ले, नेहरू का नाम आ ही जाता है. कभी कश्मीर के नाम पर तो कभी देश की इकोनॉमी के नाम पर नेहरू खलनायक बन ही जाते हैं. अब देखिए ना आज भी सोशल मीडिया साइट एक्स पर नेहरू ट्रेंड हो रहे हैं. जबकि आज न उनकी जयंती है और न ही पुण्यतिथि.
दरअसल गृहमंत्री अमित शाह की भी मजबूरी थी कि संसद में कश्मीर से संबंधित विधेयकों जम्मू-कश्मीर आरक्षण संशोधन अधिनियम 2023 और जम्मू कश्मीर पुनर्गठन संशोधन विधेयक पर बोल रहे थे. देश के गृहमंत्री हैं तो देशवासियों को सही सही जानकारी भी देनी है. पीओके के लिए नेहरु जिम्मेदार थे तो उनका नाम तो देश को बताना ही पड़ेगा. इसमें शाह की क्या गलती है? अब नेहरू से संबंधित बातों को कांग्रेस दिल पे ले लेती है तो इसमें बीजेपी का क्या दोष है? कांग्रेसी नेता अधीर रंजन को तो वैसे भी बीजेपी की हर बात बुरी लगती है. नेहरू पर आरोप लगने से अधीर दा इतने अधीर हो गए कि उन्होंने आव देखा न ताव सरकार को चुनौती ही दे डाली कि बीजेपी सरकार में हिम्मत है तो नेहरू पर एक दिन बहस ही करा ले. गृहमंत्री को तो जैसे मौका ही मिल गया कि चलो इसी बहाने एक बार फिर कांग्रेस को बेनकाब करेंगे और उन्होंने तुरंत चुनौती स्वीकार कर ली.
अब कल से ही सोशल मीडिया पर कोई नेहरू की गलतियों को गिना रहा है तो कोई नेहरू की उपलब्धियों को. जाहिर है कांग्रेसी और भाजपाई भिड़े पड़े हैं ट्वीटर पर. पर संसद में या आम जनता के बीच देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मुखालफत बीजेपी चाहे जितना कर ले पर तहेदिल से उनका सम्मान करती है.
अब आप ही ऊपर लगी तस्वीर को देख लीजिए. ये तस्वीर उत्तर प्रदेश के राजभवन की है. कल जब गृहमंत्री अमित शाह लोकसभा में नेहरू को पीओके की समस्या के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे थे यूपी के सीएम राजभवन में राज्यपाल आनंदीबेन से मिलने पहुंचे हुए थे. देख लीजिए नेहरू जी यहां किस तरह चौड़े से बैठे हुए हैं. जबकि सरदार वल्लभभाई पटेल जिनकी गुजरात में दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ति लगी हुई है उनकी फोटो को नेहरू के मुकाबले आधी जगह भी नहीं मिली है. वो भी तब है जब यूपी की राजभवन में एक गुजराती ही नहीं एक पटेल का सिक्का चलता है. यूपी की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और योगी आदित्यनाथ को साधुवाद है कि उन दोनों के मन में भारतीय राजनीति वाली गंदगी नहीं है. दोनों नेता जाति, क्षेत्र, विचारधारा आदि से परे हैं. नहीं तो अपने देश में तो यही चलता है कि जिस पार्टी की सरकार होती है उस पार्टी की धौंस चलती है. मायावती की सरकार थी तो बाबा साहब की मूर्तियां तो लगीं हीं प्रदेश भर के पार्कों में उन्होंने अपनी भी मूर्तियां लगवा ली. उधर देश की राजधानी पर काबिज केजरीवाल साहब हैं उन्होंने घोषित कर दिया है कि जहां आम आदमी पार्टी की सरकार होगी वहां के दफ्तरों में बाबा साहब होंगे और सरदार भगत सिंह होंगे. उनकी नजर में देश में केवल ये ही दोनों लोग महान हैं. भला हो राज्यपाल आनंदीबेन का और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कि उनकी नजरों में आज भी सभै धान बाइस पसेरी ही है. उनकी जगह कोई दूसरा नेता इतने बड़े बहुमत से जीतकर 7 साल से शासन में होता तो कब का नेहरू जी को प्रणाम कर चुका होता. नेहरू की फोटो अगर नहीं भी हटती तो कम से कम वल्लभभाई पटेल की फोटो को नेहरू के बराबर तो कर ही देते.
अब आप ही देख लीजिए कि बीजेपी वाले कितने चालाक हैं. अगर यही काम किसी और पार्टी ने किया होता तो कहते कि देख लो इन लोगों ने नेहरू की फोटो तो इतनी बड़ी लगाई है और 542 राज्यों को मिलाकर देश को एक राष्ट्र के रूप में खड़ा करने वाले पटेल की इन लोगों के नजर में कोई अहमियत ही नहीं है. इसलिए ही तो केजरीवाल साहब कहते हैं कि सब मिले हुए हैं जी.
संयम श्रीवास्तव