अहमद हुसैन अल-शरा, जिन्हें अबू मोहम्मद अल-जुलानी के नाम से भी जाना जाता है, जनवरी 2025 में बशर अल असद का तख्ता पलट करके सीरिया के राष्ट्रपति बन गए हैं. 85 करोड़ के इनामी आतंकी और कई सालों तक अमेरिकी कैद में रहने के बाद सीरिया के राष्ट्रपति बनने तक की यात्रा उनकी बेहद खास तब हो गई जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप के वे लाड़ले बनते देखे गए. उनका आपराधिक और आतंकी इतिहास किसी से छुपा नहीं है. वह पहले अल-कायदा से जुड़े थे और कई आतंकी हमलों में शामिल रहे हैं.
सवाल उठता है कि अगर अबू मोहम्मद अल जुनानी अमेरिका के इतने प्यारे हो सकते हैं तो क्या कुख्यात आतंकी और मुंबई हमले का मुख्य गुनहगार हाफिज सईद में क्या कमी है? कल को अमेरिकी राष्ट्रपति पाकिस्तान में सईद को गले लगाते दिखें इससे इनकार नहीं किया जा सकता है. क्योंकि जिन खूबियों के बल अल जुनानी ट्रंप के दुलारे बने हैं उन सारे पैमानों पर हाफिज सईद खरा उतरता है. इस तरह तो आतंकवाद के खिलाफ एक्शन लेने की बात तेल लेने गई दिखती है. अभी भी पूरी दुनिया खासकर अमेरिका और यूरोप इस्लामी आतंकवाद से त्रस्त है , इसके बावजूद अमेरिका को आतंकियों के प्रति जो हमदर्दी दिखा रहा है उससे यह कहना मुश्किल ही लगता है कि दुनिया में कुछ बदलाव देखने को मिलेगा.
1- सीरियाई राष्ट्रपति अल-शरा की जिहादी करतूतें
1982 में सऊदी अरब में जन्मे अल-शरा दमिश्क में पले. 9/11 के बाद 2003 में अमेरिका के इराक पर हमले के दौरान वे अल-कायदा में शामिल हुए. 2006 में अमेरिका ने उन्हें गिरफ्तार किया, और 2006-2011 तक कैंप बुका जेल में रखा, जहां उनकी मुलाकात ISIS के भावी नेता अबू बकर अल-बगदादी से हुई. जेल ने उनके कट्टरपंथी विचारों को और मजबूत किया.
2011 में रिहाई के बाद, अल-शरा ने अल-कायदा के समर्थन से 2012 में सीरिया में अल-नुसरा फ्रंट बनाया. यह संगठन बशर अल-असद के खिलाफ लड़ा, लेकिन आत्मघाती हमलों, अपहरण, और अलावी समुदाय के खिलाफ हिंसा (जैसे साहिल नरसंहार) के लिए कुख्यात हुआ. 2013 में, उन्होंने ISIS से दूरी बना ली, जिससे दोनों समूहों में टकराव हुआ. 2016 में, अल-शरा ने अल-नुसरा को अल-कायदा से अलग किया और 2017 में HTS बनाया, जो इदलिब में साल्वेशन सरकार चलाता है. HTS पर धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ दमन और युद्ध अपराधों के आरोप हैं.
2017 में अमेरिका ने अल-शरा को वैश्विक आतंकी घोषित कर 10 मिलियन डॉलर का इनाम रखा. दिसंबर 2024 में, HTS ने असद को सत्ता से हटाया, और अल-शरा अंतरिम राष्ट्रपति बने. हालांकि, उनकी सरकार पर अलावियों के खिलाफ हिंसा और सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने के आरोप हैं. अल-शरा अब उदारवादी छवि बनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनकी आतंकी पृष्ठभूमि और HTS की कट्टरपंथी नीतियां उनकी वैधता पर सवाल उठाती हैं. उनकी गतिविधियां सीरिया में अस्थिरता का कारण बनीं. अपनी इन्हीं करतूतों के बदले अब वो अमेरिका के दुलारे बन गए हैं.
2-अल-शरा से कम नहीं हाफिज सईद की करतूतें
लश्कर-ए-तैयबा (LeT) का सरगना हाफिज मोहम्मद सईद भारत में आतंक का पर्याय है. वह अपनी पहचान बदलने के लिए एक चैरिटी संस्था जमात-उद-दावा (JuD) भी चलाता है. दक्षिण एशिया में उसकी आतंकी गतिविधियों को देखते हुए उसे ग्लोबल आतंकियों की सूची में शामिल किया गया है. लेकिन, जिस तरह अमेरिका अपने स्वार्थ को देखते हुए अतीत में आतंकियों को गले लगाता रहा है, ऐसा संभव है कि अल-शरा की तरह वह भी ट्रंप की आंख की तारा बन जाए.
1950 में सरगोधा (पाकिस्तान) में जन्मे हाफिज सईद ने इस्लामिक स्टडीज में मास्टर्स किया और लाहौर में प्रोफेसर बना. 1980 के दशक में अफगान जिहाद से प्रेरित होकर कट्टरपंथ की ओर बढ़ा. सईद ने मार्कज-उद-दावा-वाल-इरशाद के तहत LeT बनाया, जिसका लक्ष्य कश्मीर में भारत के खिलाफ जिहाद करना था. LeT ने 1990 के दशक से कश्मीर में आतंकी हमले शुरू किए, जिसमें सैन्य और नागरिक ठिकानों को निशाना बनाया गया.
सईद को 26/11 मुंबई हमलों का मास्टरमाइंड माना जाता है, जिसमें 166 लोग मारे गए. LeT के 10 आतंकियों ने होटल ताज, नरीमन हाउस और अन्य जगहों पर हमला किया. अमेरिका और भारत ने इसके लिए सईद को जिम्मेदार ठहराया.
2008 में संयुक्त राष्ट्र ने सईद को वैश्विक आतंकी घोषित किया, और अमेरिका ने उनके सिर पर 10 मिलियन डॉलर का इनाम रखा. LeT और JuD पर भी प्रतिबंध लगा.सईद पर हवाला और चैरिटी के जरिए आतंकी गतिविधियों को फंड करने का आरोप है. JuD को सामाजिक कार्यों की आड़ में आतंकी प्रशिक्षण शिविर चलाने का दोषी पाया गया. 2019 और 2022 में पाकिस्तान ने उन्हें आतंकी वित्तपोषण के लिए 78 साल की सजा सुनाई.
2018 में सईद ने JuD के जरिए राजनीतिक पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा, लेकिन असफल रहा. उनके बेटे तल्हा सईद ने 2024 में चुनाव लड़ा, पर सफलता नहीं मिली. कहने को तो सईद जेल में हैं, लेकिन पाकिस्तान सरकार की रहमोकरम पर आजाद घूमता है, प्रेस कॉन्फ्रेंस करत है.
ट्रंप चालाक हैं. किसी दिन हाफिज सईद को वो पाकिस्तान का सदर घोषित कर सकते हैं. आखिरकार पाकिस्तान के पीएम और सेनाप्रमुख का काम आतंकवादियों को पालना और उन्हें सुरक्षा देना और मौका आने पर अमेरिका के लिए काम करना है. जाहिर है ये काम शहबाज शरीफ और आसिम मुनीर से बेहतर तो हाफिज सईद ही कर सकता है.
3-सीरियाई राष्ट्रपति अल-शरा और हाफिज सईद में समानता
अल-शरा ने अल-कायदा और हयात तहरीर अल-शाम (HTS) का नेतृत्व किया, जो पहले अल-नुसरा फ्रंट था. हाफिज सईद लश्कर-ए-तैयबा और जमात-उद-दावा का संस्थापक है, जो 2008 के मुंबई हमलों के लिए जिम्मेदार है. दोनों को उनके संगठनों के कारण वैश्विक आतंकवादी घोषित किया गया और अमेरिका ने दोनों पर 10 मिलियन डॉलर का इनाम रखा था.
दोनों को संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, और अन्य देशों ने आतंकी सूची में शामिल किया गया. अल-शरा को हाल में अमेरिका ने सूची से हटाया, जबकि हाफिज सईद पर प्रतिबंध बरकरार हैं. दोनों के संगठनों (HTS और लश्कर) पर आतंकी गतिविधियों के लिए प्रतिबंध लगे.
अल-शरा ने HTS को उदारवादी बनाकर और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का वादा करके राजनीतिक वैधता हासिल की, जिससे वह सीरिया का अंतरिम राष्ट्रपति बने. हाफिज सईद ने भी जमात-उद-दावा के जरिए सामाजिक कार्यों और राजनीतिक गतिविधियों (जैसे 2018 में पार्टी बनाकर) से छवि सुधारने की कोशिश की, लेकिन अभी तक ट्रंप की नजर नहीं पड़ी.
अल-शरा को तुर्की और सऊदी अरब का समर्थन मिला, जिसने उनकी सत्ता तक पहुँच आसान की. हाफिज सईद को पाकिस्तानी सेना और कुछ कट्टरपंथी समूहों का समर्थन माना जाता है.
4-ट्रंप और सीरियाई राष्ट्रपति की मुलाकात पर क्यों उठ रहे सवाल
डोनाल्ड ट्रंप और सीरिया के अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शरा (अबू मोहम्मद अल-जुलानी) की 14 मई 2025 को रियाद में हुई मुलाकात और अमेरिका द्वारा सीरिया पर प्रतिबंध हटाने के फैसले ने कई सवाल खड़े किए हैं. यह मुलाकात अल-शरा की आतंकी पृष्ठभूमि और इसके भू-राजनीतिक निहितार्थों के कारण विवादास्पद है.
अल-शरा की आत्मघाती हमलों और मानवाधिकार उल्लंघन की पृष्ठभूमि के बावजूद ट्रंप का उनसे मिलना और प्रतिबंध हटाना आतंकवाद-विरोधी नीति से उलट माना जा रहा है. सवाल उठता है कि क्या यह नैतिक सिद्धांतों से समझौता है? इजराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने इस मुलाकात और प्रतिबंध हटाने का विरोध किया, क्योंकि वे HTS को खतरा मानते हैं. इजराइल ने चेतावनी दी कि यह 7 अक्टूबर 2023 जैसे हमलों को बढ़ावा दे सकता है. ट्रंप का इजराइल की अनदेखी करना अमेरिका-इजराइल संबंधों में तनाव का संकेत देता है.
दरअसल ट्रंप चाहते हैं कि सीरियाई राष्ट्रपति इजराइल के साथ अब्राहम अकॉर्ड (समझौते) का हिस्सा बने. यह ईरान और रूस के प्रभाव को कम करने की रणनीति है, लेकिन क्या यह क्षेत्रीय स्थिरता लाएगा? इजरायल और अरब देशों के बीच दुश्मनी पॉलिटिकल नहीं, बल्कि मजहबी है.
5. अमेरिका के तात्कालिक समीकरणों ने एशिया को उथल-पुथल किया है
अमेरिका अपने तात्कालिक समीकरणों और अपना स्वार्थ साधने के लिए एशिया में हर तरह के प्रयोग करता रहा है. कभी इरान को सबक सिखाने के लिए उसने इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन पर हाथ रखा. जब सद्दाम ने अपनी महत्वाकांक्षा दर्शायी तो उसे मिटा दिया. उधर, सोवियत संघ के अफगानिस्तान पर बढ़ते प्रभाव को थामने के लिए अमेरिका ने पाकिस्तानी में जेहादी तैयार करवाए. जब उसी जेहादी तालिबान ने अपनी सत्ता में आगे बढ़ना शुरू किया, तो 9/11 के बैकग्राउंड पर तालिबान ही नहीं, अफगानिस्तान को खंडहर में बदल दिया. 20 साल बाद उसी अफगानिस्तान से उसका मन भर गया, तो वहां की चाबी अमेरिका तालिबान को ही सौंपकर चलता बना. ख्याल रहे, कि तालिबान से बातचीत करने का सिलसिला डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल में शुरू किया था. जिसे मुकम्मल किया, उनके राजनीतिक विरोधा जो बाइडेन ने. यानी, अमेरिका के लिए न कोई उसका स्थायी दोस्त है, और न ही दुश्मन.
संयम श्रीवास्तव