लोकसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर हो रही बहस के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने चीन और पाक अधिकृत कश्मीर के बहाने आज जमकर कांग्रेस को घेरा. इतिहास की घटनाओं का जिक्र करते हुए शाह ने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की गलतियों के किस्सों की ढेर लगा दी. उन्होंने पीओके और चीन को सुरक्षा परिषद में मिली जगह का कारण भी नेहरू की गलतियों को ही बताया. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने तीन सीजफायर किए और सभी में भारत को नुकसान उठाना पड़ा.
लोकसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि मैं इसी देश के इतिहास की कुछ घटनाएं आज आपको बताना चाहता हूं. 1948 को याद कर लीजिए, कश्मीर में हमारी सेना को निर्णायक बढ़त मिल चुकी थी, लेकिन नेहरू ने सरदार पटेल की एक नहीं सुनी और युद्ध विराम कर दिया. मैं एक इतिहास का छात्र हूं, पूरी जिम्मेदारी के साथ कहना चाहता हूं कि पीओके का अगर आज कोई भी अस्तित्व दिखाई दे रहा है तो वो नेहरू के कारण ही है. सरदार वल्लभभाई पटेल तो इसका विरोध करते रहे, गाड़ी लेकर गए थे, आकाशवाणी तक गए थे, लेकिन वहां दरवाजे ही बंद कर दिए गए और फिर युद्ध विराम का ऐलान हो गया.
दरअसल यह घटना अक्सर 1948 के कश्मीर युद्धविराम से जुड़ी है. 1947 के अंत तक भारतीय सेना ने कश्मीर में तेजी से बढ़त बना ली थी. बारामुला, उरी और कई अहम इलाकों पर भारत का नियंत्रण हो चुका था. तब का संयुक्त राष्ट्र आज की तरह नहीं था. दूसरे विश्व युद्ध के अंतरराष्ट्रीय सहमति के बाद संयुक्त राष्ट्र की अहमियत बढ़ चुकी थी.इसी समय संयुक्त राष्ट्र की ओर से युद्ध रोकने का दबाव बढ़ा. सरदार पटेल बिल्कुल भी नहीं चाहते थे कि युद्द विराम हो. पर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अंतरराष्ट्रीय दबाव और खुद की शांति का मसीहा वाले छवि बनाने के लिए युद्धविराम पर सहमति दे दी.
बताया जाता है कि सरदार वल्लभभाई पटेल को यह निर्णय अंतिम समय में पता चला. पटेल चाहते थे कि जब भारतीय सेना लगातार बढ़त बनाए हुए है तो युद्ध को रोकने की क्या जरूरत है. पटेल का मानना था कि इस समय युद्ध को रोकना भारत के लिए रणनीतिक भूल होगी. जाहिर था कि युद्ध विराम होने के बाद पाकिस्तान के कब्जे वाला इलाका भारत से हमेशा के लिए अलग हो जाता. कहा जाता है कि जैसे ही पटेल को सूचना मिली कि युद्धविराम की घोषणा आकाशवाणी (All India Radio) से होने वाली है, पटेल तुरंत अपनी गाड़ी में बैठकर दिल्ली के आकाशवाणी भवन पहुंच गए.
पर आकाशवाणी अधिकारियों ने पटेल की एक न सुनी. पटेल लगातार दबाव बनाते रहे कि इस घोषणा को रोक दो. पर पीएम के आदेश और प्रोटोकाल की दुहाई देकर आकाशवाणी अधिकारियों ने उनकी नहीं सुनी. फिलहाल युद्धविराम की घोषणा हो गई. 1 जनवरी 1949 से फायरिंग बंद हो गई. भारतीय सेना जिस स्थिति तक पहुंच चुकी थी, वहां तक का हिस्सा भारतीय कब्जे में आ गया.पाकिस्तान के कब्जे वाला हिस्सा अभी तक उसके पास ही है.
इस कहानी में कई झोल हैं. पहली बात की कोई भी फैसला आकाशवाणी से नहीं होता है. अगर आकाशवाणी से फैसला हो भी गया तो उसमें सुधार किया जा सकता है. आकाशवाणी बाद में यह खबर भी चला सकता था कि दोनों देश के नेता सीजफायर के लिए नहीं तैयार हुए. दूसरे वल्लभभाई पटेल जैसे नेता की बातों से इनकार करना आकाशवाणी के अधिकारियों के लिए संभव नहीं था. पटेल गृहमंत्री थे. गृहमंत्री के पास सरकार की पूरी मशीनरी होती है. पटेल ने कई बार इसका प्रयोग नेहरू की अनिच्छा के बाद भी किया. यह हंड्रेड परसेंट सही हो सकता है कि पटेल नहीं चाहते थे कि युद्ध विराम हो पर आकाशवाणी पहुंचने वाली कहानी का कोई स्पष्ट सबूत नहीं मिलता है. न ही किसी इतिहासकार ,पत्रकार या नेता ने इस घटना का कभी जिक्र किया है.
संयम श्रीवास्तव