मायावती ने आकाश आनंद को जो दिया है, वो स्थाई भाव है या अस्थाई?

आकाश आनंद की बीएसपी में वापसी मायावती के भरोसे का मजबूत इशारा है, लेकिन नई जिम्मेदारी उनके लिए अग्नि परीक्षा भी है. मायावती ने आकाश आनंद को बीएसपी के भविष्य की उम्मीदों के साथ जोड़ा है. सवाल अब भी यही है कि क्या आकाश आनंद परमानेंट हो गये हैं या प्रोबेशन पर ही हैं?

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आकाश आनंद का फिर से बीएसपी में नंबर 2 बन जाना मायावती के भरोसे का सबूत है, लेकिन बीती बातें बता रही हैं कि आगे की राह बहुत मुश्किल है. आकाश आनंद का फिर से बीएसपी में नंबर 2 बन जाना मायावती के भरोसे का सबूत है, लेकिन बीती बातें बता रही हैं कि आगे की राह बहुत मुश्किल है.

मृगांक शेखर

  • नई दिल्ली,
  • 19 मई 2025,
  • अपडेटेड 7:40 PM IST

आकाश आनंद की आखिरकार बीएसपी में वापसी हो ही गई. माफी मांग कर आकाश आनंद बीएसपी में एंट्री तो महीना भर पहले ही पा गये थे, लेकिन कोई पद या जिम्मेदारी न मिलने से उसका कोई खास मतलब नहीं लग रहा था. हां, जिस तरीके से मायावती ने माफी देते हुए फिर से मौका दिये जाने की बात की थी, उसमें संकेत बड़े मजबूत थे. 

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नंबर 2 तो वो पहले भी माने जाते थे, लेकिन नये रोल में हैसियत ज्यादा ऊंची लग रही है. कहने को तो उनके पिता आनंद कुमार भी बीएसपी के उपाध्यक्ष हैं, लेकिन सामने से ताकतवर आकाश आनंद ही नजर आते हैं. पहले आकाश आनंद खुद नेशनल कोऑर्डिनेटर हुआ करते थे, अब तीन नेशनल कोऑर्डिनेटर उनको रिपोर्ट करेंगे और वो सिर्फ मायावती को. 

देखा जाये तो मायावती ने एक चेतावनी भी दी है, अब गलती नहीं होनी चाहिये. कुछ दिन पहले जब मायावती ने आकाश आनंद की गलतियों के लिए माफ कर दिया था, तो बीएसपी नेताओं से सहयोग करने की भी सलाह दी थी. बाहर जो हाल हो, लेकिन बीएसपी में वैसे भी आकाश आनंद के समर्थक काफी हैं. खासकर युवाओं में वो ज्यादा लोकप्रिय हैं. 

अगर आकाश आनंद की ताजा वापसी को धमाकेदार माना जाये, तो ये भी समझ लेना होगा कि नई जिम्मेदारी कांटों भरे ताज जैसी ही है - और अग्नि परीक्षा तो नहीं लेकिन स्कूलों के मंथली टेस्ट जैसा बिहार विधानसभा का चुनाव तो है ही. 

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आकाश आनंद के सामने पहली चुनौती तो मायावती की कसौटी पर खरा उतर पाने की है. ये सही है कि बार बार बीएसपी से निकालकर मायावती ने भी परख ही लिया है, अगर अब आकाश आनंद में किसी बात की कमी बची है तो राजनीतिक हुनर और अनुभव की. 

मायावती का दुलार तो आकाश आनंद को बचपन से मिलता आया है, बुआ की बात को वो कभी काटते भी नहीं हैं. जहां शादी तय कर दी, चुपचाप तैयार हो गये और शादी कर ली. मायावती ने शादी भी कराई और गुस्सा भी आकाश आनंद के ससुर पर ही हुईं. बीएसपी से एक साथ ही दोनो को बाहर भी कर दिया, लेकिन आकाश आनंद के माफी मांगने पर पार्टी में ले भी लिया, और पहले से बड़ा पद दे दिया. मुख्य नेशनल कोऑर्डिनेटर का पद भी आकाश आनंद के लिए ही बनाया गया है. 

आकाश आनंद परमानेंट हो गये क्या?

आकाश आनंद को भी मायावती ने बीएसपी से वैसे ही निकाला जैसे बाकी नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया करती हैं. लेकिन, आकाश आनंद ने पलट कर वैसा कुछ नहीं कहा, जैसा बीएसपी से पहले निकाले गये नेताओं के मुंह से सुनने को मिलता रहा है. ऐसे सारे ही नेता मायावती पर पैसे लेकर टिकट देने से लेकर कई तरह के आरोप लगाते रहे हैं, लेकिन आकाश आनंद तो अपना सब कुछ ही बताते हैं. राजनीतिक गुरू, आदर्श और नेता. 

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आकाश आनंद के मुंह से मायावती जैसी तारीफ तो कभी बीएसपी के संस्थापक कांशीराम के लिए भी नहीं सुनने को मिली है. बीएसपी की बैठकों में जो भी कहते रहे हों, लेकिन सार्वजनिक सभाओं में वो कांशीराम को भी बीआर आंबेडकर जैसा ही बताते रहे हैं. 

नई जिम्मेदारी मिलने पर भी आकाश आनंद वैसी ही बातें कर रहे हैं, मैं आदरणीय बहन जी का तहेदिल से आभार प्रकट करता हूं... मेरी गलतियों को माफ किया, और एक अवसर दिया है कि मैं बहुजन मिशन और मूवमेंट को मजबूत करने में अपना योगदान दूं.

असल बात तो ये है कि न तो आकाश आनंद को कोई और मिलने वाला है, न मायावती को दूसरा आकाश आनंद - और ये बात दोनो की मजबूरी भी है, और एक दूसरे के लिए फायदेमंद भी. 

आकाश आनंद के सामने चुनौतियां बहुत ज्यादा हैं

बीएसपी का सबसे बड़ा जनाधार यूपी में ही है, लेकिन मुश्किल ये है कि वोट बैंक सिकुड़ता ही जा रहा है - और आलम ये है कि वोट शेयर घटते घटते 9,3 फीसदी पर पहुंच गया है.

बीएसपी के संस्थापक कांशीराम के साये में मायावती पार्टी को सत्ता दिलाई. कांशीराम के जाने के बाद मायावती ने उनका उत्तराधिकार तो अच्छे से संभाला ही 2007 में सोशल इंजीनियरिंग करके अकेले दम पर बहुमत की सरकार भी बना ली थी - लेकिन पांच साल सरकार चलाने के बाद मायावती सत्ता में बीएसपी की वापसी नहीं करा पाईं. तब से संघर्ष जारी है, और वो बढ़ता ही जा रहा है. 
कहने को तो आकाश आनंद को भी मायावती का वैसे ही सपोर्ट मिल रहा है, जैसे मायावती को कभी कांशीराम का मिला था. लेकिन, वक्त बदल चुका है. अब मायावती भी उस स्थिति में नहीं रह गई हैं, जैसा दबदबा दलित समाज में कांशीराम का हुआ करता था. 

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मायावती के साथ अब दलितों में भी सिर्फ उनकी जाटव बिरादरी के वोटर बच गये हैं - और उसमें भी भीम आर्मी वाले चंद्रशेखर आजाद हिस्सेदार होने का दावा करने लगे हैं, जिन्हें मायावती के राजनीतिक विरोधियों का समर्थन हासिल है.  

लोकसभा चुनाव में मायावती ने आकाश आनंद को उसी मोर्चे पर लगाया था. आकाश आनंद ने चंद्रशेखर आजाद के खिलाफ ही चुनाव कैंपेन की शुरुआत की थी - लेकिन न तो चंद्रशेखर आजाद को चुनाव जीतने से रोक पाये, न बीएसपी उम्मीदवार की जमानत ही बचा पाये. 

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