मध्य प्रदेश के एक पुलिस उपाधीक्षक (DSP) की सोशल मीडिया पोस्ट चर्चा में हैं. मानवीय संवेदनाओं को छूने वाली और 'सिस्टम' की खामी को उजागर करने वाली पोस्ट में सलाह दी गई है कि सरकार को ट्रेनों में जनरल डिब्बों की संख्या बढ़ानी चाहिए ताकि रिजर्वेशन टिकट न ले पाने वाले यात्रियों को कुछ राहत मिल सके.
दरअसल, भोपाल में पदस्थ लोकायुक्त DSP वीरेंद्र सिंह सूरत-ताप्ती गंगा एक्सप्रेस (19046) में 10 दिसंबर यानी आज सुबह 4 बजे सफर कर रहे थे. उन्होंने AC कोच और जनरल डिब्बे के बीच लगे पारदर्शी दरवाजे की तस्वीर शेयर की, जिसमें बड़ी जंजीर के साथ ताला लगा था. पारदर्शी दरवाजे से जनरल डिब्बे में खड़े और नींद में ऊंघते हुए यात्री साफ दिख रहे थे.
इसको लेकर पुलिस अफसर ने लिखा, ''मैं अपनी सीट से कंबल से निकलकर वॉशरूम के लिए गया तो एक क्षण ठहरकर उनकी तरफ देखा, लेकिन पारदर्शी दरवाजे के दूसरी तरफ खड़े लोगों का कष्ट देखकर उनसे आंख मिलाने की हिम्मत नहीं हुई.
उस तरफ खड़े यात्रियों में संभवतः कुछ तो छपरा (बिहार) स्टेशन के भी होंगे जो कल सुबह 9 बजे से खड़े हों. उनके लिए उस डिब्बे में बैठने के लिए सीट का 10 इंच कोना मिल जाना भी खुशकिश्मती है.
AC नहीं, बस बैठने के लिए ट्रेनें बढ़ाई जाएं
DSP ने आगे लिखा, सरकार से मेरा विनम्र निवेदन है कि आज इन सामान्य वर्ग को हाई स्पीड लग्जरी ट्रेन के स्थान पर केवल बैठकर जाने के लिए ही ट्रेन और सीटों की संख्या बढ़ा दी जाए तो इनको बहुत राहत मिल जाएगी. कम से कम घंटों के सफर में बैठ तो सकते हैं. उनको AC की भी जरूरत नहीं है, वे अपने साथ कंबल लेकर चलते हैं.
आज की भागती दौड़ती दुनिया में व्यक्ति को केवल कुछ ही सुविधा मिल जाए तो वह परिवार के साथ निश्चिन्त होकर यात्रा कर सकेगा.''
एमपी सरकार के पुलिस अफसर ने अपनी पोस्ट का अंत इस विचार से किया कि सुविधाओं में यह 180 डिग्री का अंतर जितना कम होगा, उतना ही देश उन्नत कहलाने के पात्र होगा. यह पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है, जिसने आम यात्रियों की मुश्किलों पर गंभीर बहस छेड़ दी है.
aajtak.in से बातचीत में पुलिस अफसर वीरेंद्र सिंह ने कहा, ''जनरल कोच में सफर करने वालों के लिए कम से कम बैठने की सुविधा मिल जाए, इसके लिए संबंधित रूट पर ट्रेनों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए या ट्रेनों में जनरल डिब्बे बढ़ाए जाने चाहिए.''
यूजर्स के कमेंट्स
एक यूजर ने कमेंट में लिखा, ''आपकी संवेदना उचित है, दुखी होना भी ठीक है, समस्या तो है. लेकिन क्या आपको लगता है कि कुछ ट्रेनों में जनरल श्रेणी के कोच बढ़ाने से या ट्रेनों की संख्या बढ़ाने से समस्या खत्म हो जाएगी? हमारे देश की जनसंख्या को देखते हुए, कुछ भी कहना...''
एक अन्य ने कमेंट किया, ''हमने वो समय देखा है जब रिजर्वेशन बर्थ पर भी लोग पैर सिकोड़कर लोगों को बैठा देते हैं.''
नीरज चौधरी