वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के बाद अब सरकार के पास क्या रास्ते हैं?

वक्फ कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद सरकार के सामने इसे बचाने की चुनौती खड़ी हो गई है. एडवोकेट्स की राय में सरकार को मजबूत दलीलों के साथ कोर्ट में पेश होना होगा. वहीं, कुछ वकीलों को भविष्य में न्यायपालिका और सरकार के बीच टकराव की आशंका भी दिख रही है.

Advertisement
इस मामले में मुख्य मुद्दा होगा कि वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन धार्मिक गतिविधि है या धर्मनिरपेक्ष. इस मामले में मुख्य मुद्दा होगा कि वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन धार्मिक गतिविधि है या धर्मनिरपेक्ष.

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 18 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 10:54 AM IST

वक्फ एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के बाद अब सरकार के सामने कई अहम सवाल खड़े हो गए हैं. क्या सरकार इस कानून का बचाव कर पाएगी? क्या सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच टकराव की स्थिति बन सकती है? इस मुद्दे पर कई वरिष्ठ वकीलों ने अपनी राय रखी है.

सरकार ने खुद सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि वह इस कानून को सही ठहराने के लिए विस्तृत जवाब दाखिल करेगी. सरकार को यह साबित करना होगा कि संसद को इस विषय पर कानून बनाने का अधिकार है क्योंकि यह विषय समवर्ती सूची में आता है.  

Advertisement

एडवोकेट ज्ञानंत सिंह की राय

एडवोकेट ज्ञानंत सिंह के अनुसार, सरकार ने स्वयं कहा है कि वह कानून की वैधता का बचाव करने के लिए अपना जवाब दाखिल करेगी. उसे यह दिखाना होगा कि संसद इस विषय पर कानून बनाने के लिए सक्षम है, क्योंकि यह विषय समवर्ती सूची (Concurrent List) में आता है. साथ ही, कानून बनाने का अधिकार संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है, और न्यायालय तभी हस्तक्षेप कर सकता है जब याचिकाकर्ता यह सिद्ध कर सकें कि संशोधित प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन करते हैं.'

ज्ञानंत सिंह आगे बताते हैं, 'केंद्र सरकार को यह भी साबित करना होगा कि उक्त अधिनियम के प्रावधान धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार और संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप का उल्लंघन नहीं करते. जहां अनुच्छेद 25(1) धर्म की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, वहीं अनुच्छेद 25(2) संसद को यह अधिकार देता है कि वह किसी भी धार्मिक प्रथा से जुड़ी आर्थिक, राजनीतिक या अन्य धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों को नियंत्रित या प्रतिबंधित करने के लिए कानून बना सके.दोनों पक्षों के लिए मुख्य और निर्णायक प्रश्न यह होगा कि वक्फ संपत्ति का प्रबंधन धर्मनिरपेक्ष गतिविधि है या धार्मिक गतिविधि...जहाँ तक "वक्फ बाय यूज़र" (waqf by user) का सवाल है, वहां मुख्य मुद्दा यह होगा कि क्या यह कानून पहले से वक्फ घोषित संपत्तियों पर पश्चदृष्टि से (retrospectively) लागू किया जा सकता है.'

Advertisement

एडवोकेट नवल किशोर झा की राय

एडवोकेट नवल किशोर झा का कहना है कि सरकार को वक्फ अमेंडमेंट एक्ट का मजबूती से बचाव करना चाहिए. उनके मुताबिक, इसमें कोई सीधा टकराव नहीं दिखता. सरकार को सुप्रीम कोर्ट में प्रभावी जवाब देना चाहिए और यह समझाना चाहिए कि यह कानून देशहित में है. वह कहते हैं, 'सरकार को कोर्ट को यह सलीके से समझाना होगा कि वक्फ प्रॉपर्टी के रजिस्ट्रेशन और गैर मुस्लिम सदस्य को शामिल करने से जुड़ा यह संशोधन समाज के लिए फायदेमंद है. संसद के दोनों सदनों से यह विधेयक बहुमत से पारित हुआ है और इसे लागू भी किया जा चुका है. कोर्ट को बस कुछ सवालों के जवाब चाहिए.'

एडवोकेट फ़ुज़ैल खान की राय

वहीं एडवोकेट फ़ुज़ैल खान का मानना है कि वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाए गए अंतरिम स्टे को देखते हुए आने वाले समय में सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच टकराव की स्थिति बन सकती है. उन्होंने कहा, 'केंद्र सरकार इस कानून के जरिए वक्फ व्यवस्था में बड़ा बदलाव लाना चाहती है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट इसकी संवैधानिक वैधता की जांच करेगा.'

फ़ुज़ैल खान ने जस्टिस यशवंत वर्मा केस का जिक्र करते हुए कहा कि इसके बाद ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी बिल को फिर से संसद में लाया जा सकता है और उसे जल्द ही राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल सकती है. उन्होंने कहा, 'जजों के खिलाफ इन-हाउस जांच का जो सिस्टम है, उसमें लोगों का भरोसा कम हो रहा है. एक पारदर्शी व्यवस्था लाने के लिए ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी एक्ट जरूरी है.'

Advertisement

उपराष्ट्रपति धनखड़ के बयान का मतलब क्या है?

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में कहा कि सुप्रीम कोर्ट 'सुपर पार्लियामेंट' बन गया है. अनुच्छेद 142 की भी समीक्षा होनी चाहिए. इस बयान को लेकर भी बहस छिड़ गई है. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह बयान सार्वजनिक रूप से नहीं दिया जाना चाहिए था, खासकर तब जब सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला अटॉर्नी जनरल की दलीलें सुनने के बाद सुनाया था.

कानूनी जानकारों का कहना है कि यह फैसला पुनर्विचार के योग्य है क्योंकि संविधान निर्माताओं ने जानबूझकर राष्ट्रपति के फैसलों के लिए कोई समय सीमा नहीं तय की थी. 'पॉकेट वीटो' एक स्वीकृत सिद्धांत है जिसे भारतीय संवैधानिक ढांचे में महत्वपूर्ण माना गया है.

न्यायपालिका और विधायिका के बीच क्या टकराव है?

इस पूरे विवाद पर विशेषज्ञ साफ कहते हैं कि सीधे टकराव की कोई स्थिति नहीं है. कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है, जबकि न्यायपालिका उसके न्यायिक परीक्षण का अधिकार रखती है. लोगों और संगठनों ने वक्फ एक्ट की वैधता को चुनौती दी है, जिससे न्यायपालिका को इसे संविधान की कसौटी पर परखने का मौका मिला है. कोर्ट किसी पक्ष का विरोधी नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र निर्णायक की भूमिका निभा रहा है.

कुल मिलाकर वक्फ कानून को लेकर सरकार और सुप्रीम कोर्ट दोनों अपने-अपने तरीके से आगे बढ़ रहे हैं. एक ओर सरकार इसे देशहित में मानती है, वहीं कोर्ट इसकी संवैधानिक वैधता की जांच कर रहा है. आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि वक्फ एक्ट पर देश की सर्वोच्च अदालत क्या रुख अपनाती है और सरकार किस रणनीति से इसका बचाव करती है.

Advertisement

कानून विशेषज्ञ आरके सिंह क्या बोले...

इस मामले पर कानून विशेषज्ञ और सुप्रीम कोर्ट के वकील आरके सिंह का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस का कहना था कि हम इन तीन ग्राउंड पर वक्फ (संशोधन) कानून को स्टे कर देंगे तो अगर वो तीनों ग्राउंड पर स्टे कर दिया जाता तो आप मान के चलिए कि इस बिल की आत्मा मर जाती. 

तभी एसजी ने बोला कि थोड़ी मोहलत दें, ताकि हम अपने तरीके से आपको कन्विंस कर सकें कि बिना तफसील से दूसरे पक्ष को सुने हुए अंतरिम आदेश पारित करने के नुकसान क्या हैं. कभी-कभी ये कानून में कहा भी जाता है. हम वकीलों के बीच में ये बहुत प्रसिद्ध है कि समटाइम्स सीकिंग एन एडजॉर्नमेंट इज ऑल्सो अ गुड आर्गुमेंट. कभी-कभी सुनवाई टालने की गुहार भी अच्छी दलील होती है.

अब क्या है रास्ता? 

उन्होंने कहा, यहां के बाद से वही एक रास्ता बचता है जो सब कानूनों में होता है. इस मुल्क में कोई पहली बार तो पार्लियामेंट द्वारा पारित किसी कानून की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी गई है, बहुत पहले भी हुआ है और अमूमन ये देखा गया है कि सुप्रीम कोर्ट दोनों पक्षों को तफसील से सुनता है. उसके बाद अपना फैसला देता है, क्योंकि आनन-फानन में विधायिका ने पास कानून को आप अगर रोक देंगे तो फिर पार्लियामेंट के पावर्स ही बंद हो जाएंगे. पार्लियामेंट को ही आप बंद कर देंगे. 

Advertisement

यहां के बाद ऐसी कोई स्थिति मेरे ख्याल से खराब नहीं होने वाली है, क्योंकि ज्यूडिशियरी और पार्लियामेंट बहुत बार इतिहास के पन्नों में टकराव के रास्ते पर आए थे, लेकिन हर बार एक समन्वय का रास्ता निकल जाता है.  संवैधानिक संस्थाओं का आपस में टकराव हमेशा घातक नहीं होता है. इन टकरावों से एक सामंजस्य यानी हारमनी का रास्ता भी निकलता है. हमारी संस्थाएं बहुत सुदृढ़ हैं. उनकी बुनियाद बहुत तगड़ी है. इस टाइप के वाक्यों से वो पहले भी निकली है और इस बार भी निकलेंगी.

महीने भर से जस्टिस यशवंत वर्मा जी के केस ने बहुत बड़ी बहस को जन्म दिया है. ये बहस अमूमन उस रास्ते पर जाकर खत्म हो रही है कि जहां पर इस मुल्क में एक बहस बहुत बरसों से चल रही थी कि जज अपॉइंटमेंट प्रक्रिया कितनी पारदर्शी है.

जस्टिस यशवंत वर्मा का केस लिटमस टेस्ट बन गया है उस पारदर्शिता के मुद्दे पर इस घटना से ज्यूडिशियरी की साख जो है आम आवाम के बीच में कम हुई है या कहें बेहद खराब हुई है और स्थिति बेहद नाजुक है.

सुप्रीम कोर्ट कांस्टीट्यूशन का कस्टोडियन है और गवर्नमेंट आवाम की कस्टोडियन. ये सरकारों का ये काम है कि अवाम संतुष्ट रहे. संस्थाओं पर उनका विश्वास कायम रहेगा.

Advertisement

'कोर्ट नहीं चाहता ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी बिल आए'
 
वकील आरके सिंह का कहना था कि अब कोर्ट का जो रवैया रहा है वो तो सबको पता है.  कोर्ट नहीं चाहता है कि ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी बिल (judicial accountability bill) या ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट बिल आए,  लेकिन हमारे नीति निर्धारक लेजिस्लेटर्स और सरकारों का कहना है कि इस प्रकरण में अब आइडियल समय आ गया है कि अब इस बिल को हम दोबारा से लेके आए. इसमें सरकार की मंशा ये है कि इस बार सुप्रीम कोर्ट परिस्थिति के हिसाब से अपनी सहमति दे, क्योंकि जब जज को इम्यूनिटी दी गई थी हमारे संविधान सभा में तो ये नहीं समझ सोचा गया था कि एक दिन समाज इतना करप्ट हो जाएगा कि वो जज को भी करप्ट कर देगा. लेकिन वक्त के साथ चीज़ें बदलती चली गई. साल 1993 से लेकर अब तक जस्टिस के रामास्वामी इम्पीचमेंट किट से लेकर के जस्टिस यशवंत वर्मा तक बहुत सारा पानी गंगा-यमुना में बह चुका है. आए दिन जजों के चरित्र पर बहुत गंभीर प्रश्न खड़े हुए हैं. अभी तक तो हमने कॉलेजियम के अपॉइंटमेंट देख लिए तो अब इस मुल्क को नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट बिल के माध्यम से भी अपॉइंटमेंट को देखने का एक मौका देना चाहिए.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement