Uttarakhand: लैंसडाउन से लेकर नैनीताल तक, जानें किन जगहों के बदले जाएंगे नाम

सीएम पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड में लैंसडाउन, मसूरी, रानीखेत और नैनीताल के नाम बदले जाने का ऐलान किया है. इसके बाद से राज्य में सियासत गर्मा गई है. पूर्व सीएम हरीश रावत ने धामी पर निशाना साधते हुए कहा, ''जब सरकार के पास जनता को जवाब देने के लिए कुछ नहीं होता है, तो इस तरह के प्रपंच दोहराए जाते हैं.''

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मसूरी (फाइल फोटो) मसूरी (फाइल फोटो)

विकास वर्मा

  • देहरादून,
  • 31 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 3:51 PM IST

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हाल ही में ऐलान किया था राज्य में उपनिवेशवाद यानी गुलामी के सभी प्रतीकों के नाम बदले जाएंगे. इसे लेकर राज्य में सियासत गर्मा गई है. पूर्व सीएम हरीश रावत ने धामी पर निशाना साधा है.

रावत ने कहा, ''जब सरकार के पास जनता को जवाब देने के लिए कुछ नहीं होता है, तो इस तरह के प्रपंच दोहराए जाते हैं. लैंसडाउन, मसूरी, रानीखेत और नैनीताल अपने आप में विश्व प्रसिद्ध हैं. इनके नाम को बदलकर सरकार क्या करना चाहती है?.''

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वहीं, कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का धन्यवाद किया. उन्होंने कहा कि जो हमारे गुलामी के प्रतीक चिह्न हैं, उन्हें हटना चाहिए. स्वाभाविक तौर से इससे प्रदेश के जो वीर और महापुरुष हैं, उनके नाम पर इन जगहों के नाम रखे जाने चाहिए.

लैंसडाउन के नाम होगा 'कालौं का डांडा'

बता दें, रक्षा मंत्रालय ने 132 साल पुराने लैंसडाउन के नाम को 'कालौं का डांडा' रखने के लिए प्रस्ताव मांगा है. अगर प्रस्ताव पर अमल हुआ, तो पौड़ी जिले में स्थित सैन्य छावनी क्षेत्र लैंसडाउन का नाम फिर से 'कालौं का डांडा' यानी "काले बादलों से घिरा पहाड़" हो जाएगा.

तत्कालीन वायसराय के नाम पर बदला था नाम

उल्लेखनीय है कि साल 1886 में गढ़वाल रेजिमेंट की स्थापना हुई थी. 5 मई 1887 को लेफ्टिनेंट कर्नल मेरविग के नेतृत्व में अल्मोड़ा में बनी पहली गढ़वाल रेजीमेंट की पलटन 4 नवंबर 1887  को लैंसडाउन पहुंची. उस समय लैंसडाउन को कालौ का डांडा कहते थे. 21 सितंबर 1890  तत्कालीन वायसराय लार्ड लैंसडाउन के नाम पर इस जगह का नाम बदला गया था. 

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(इनपुट: राहुल अंकित)

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