73 साल की हरजीत कौर, जो तीन दशकों से अमेरिका में रह रही थीं, पिछले सप्ताह अमेरिकी ट्रम्प प्रशासन द्वारा भारत वापस भेज दिया गया. अपने कष्टकारी अनुभव को साझा करते हुए, हरजीत कौर ने बताया कि उन्हें बिना किसी स्पष्ट कारण के डिपोर्ट कर दिया गया.
हरजीत कौर की अमेरिकी यात्रा 1991 में शुरू हुई थी जब वे अपने परिवार के साथ एक स्थायी जीवन बनाने की उम्मीद में वहां गई थीं. उनका सपना सरल लेकिन गहरा था - एक स्थिर घर बनाना और अपने तथा अपने प्रियजनों के लिए बेहतर भविष्य का निर्माण करना.
बुजुर्ग महिला ने आजतक से बताया कि उन्होंने अमेरिका में शरण के लिए आवेदन दिया था, लेकिन उनका मामला सालों तक कानूनी अधर में फंसा रहा और आखिर खारिज कर दिया गया. 8 सितंबर को जब पुलिस अधिकारी उनके निर्धारित डिपोर्टेशन की तारीख पर उनके दरवाजे पर पहुंचे तो उनका सबसे बड़ा डर सच हो गया.
इसके बाद जो हुआ वह एक दर्दनाक अनुभव था जिसे किसी भी बुजुर्ग को नहीं झेलना चाहिए. 'पुलिस ने मुझे एक हॉल में दो लंबे घंटे तक इंतजार कराया और फिर एक ठंडे, एक कमरे में बंद कर दिया,' उन्होंने अपनी आवाज में स्पष्ट दर्द के साथ याद किया.
उनके साथ जो व्यवहार हुआ वह मानवीय नहीं था. हरजीत कौर को हथकड़ी लगाकर एक बर्फीले कमरे में बंद कर दिया गया जहां सही भोजन नहीं दिया गया, जबकि वे शाकाहारी हैं. उनकी भोजन संबंधी जरूरतों की अनदेखी ने उनकी पहले से ही बढ़ती परेशानी को और बढ़ा दिया.
'उन्होंने मुझे अलविदा कहने के लिए अपने परिवार के सदस्यों से मिलने तक नहीं दिया. मुझे पूरी रात कड़ाके की ठंड में बिना उचित बिस्तर या आरामदायक गद्दे के बैठना पड़ा. उन्होंने बस एक पतला एल्युमिनियम कंबल दिया था जिससे बैठना भी बेहद असहज था' उन्होंने भावुक होकर साझा किया.
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पारिवारिक अलगाव और भावनात्मक आघात
हरजीत कौर की कहानी का सबसे दिल तोड़ने वाला पहलू वह परिवार है जिसे वे पीछे छोड़ने पर मजबूर हुईं. उनके बच्चे, पोते-पोतियां और पूरा परिवार अमेरिका में ही रह गया है, जिससे यह अलगाव विशेष रूप से विनाशकारी है.
30 साल तक अमेरिका को अपना घर मानने के बाद, अचानक हुई इस डिपोर्टेशन ने गहरे भावनात्मक घाव छोड़े हैं. 'तीन दशकों तक मैंने ईमानदारी से अपना टैक्स भरा, ईमानदारी से काम किया और अमेरिकी समाज में योगदान दिया. इस तरह से व्यवहार किया जाना और इतनी कठोरता से डिपोर्ट किया जाना बेहद दुखदायी है. यह सब कुछ डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद से हो रहा है.' उन्होंने आंसू रोकने की कोशिश करते हुए कहा.
यह विडंबना उनसे छुपी नहीं थी कि वैध वर्क परमिट होने के बावजूद भी उन्हें उस देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया जिसे वे अपने वयस्क जीवन के अधिकांश समय तक घर मानती रही थीं.
आगे की कानूनी लड़ाई
अपने परिवार और कानूनी प्रतिनिधित्व से शारीरिक रूप से अलग होने के बावजूद, हरजीत कौर ने उम्मीद नहीं छोड़ी है. उनके वकील अमेरिका में ही हैं और उनकी ओर से कानूनी उपायों को आगे बढ़ाते रहेंगे. उन्होंने अमेरिकी प्रशासन द्वारा अपने मामले को संभालने के तरीके पर गुस्सा और निराशा व्यक्त की, पूरे अनुभव को 'अत्यधिक कठोर और दर्दनाक' बताया.
असीम बस्सी