गुटबाजी की बात राहुल गांधी ऐसे ही नहीं कह रहे... जान लीजिए मध्य प्रदेश में पार्टी के जमीनी हालात

राहुल गांधी ने भोपाल में कांग्रेस नेताओं को गुटबाजी खत्म करने की नसीहत दी और कहा कि बीजेपी की मदद करने वाले नेताओं की पहचान की जाए. मध्य प्रदेश में कांग्रेस के जमीनी हालात कैसे हैं और राहुल गांधी को गुटबाजी की बात क्यों कहनी पड़ी?

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भोपाल में कांग्रेस नेताओं को संबोधित करते राहुल गांधी भोपाल में कांग्रेस नेताओं को संबोधित करते राहुल गांधी

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 04 जून 2025,
  • अपडेटेड 11:32 AM IST

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी 3 जून को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में थे. राहुल गांधी करीब पांच घंटे भोपाल में रहे और पांच कार्यक्रमों में हिस्सा लिया. उन्होंने पार्टी के 'संगठन सृजन अभियान' की शुरुआत की और नेताओं को गुटबाजी खत्म करने, एकजुट होकर काम करने और संगठन के ढांचे को सशक्त बनाने का दो टूक निर्देश दिया. राहुल गांधी ने कहा कि कोई भी फैसला ऊपर से नहीं थोपा जाएगा. आप सब मिलकर फैसले लें और अगर बदलाव की जरूरत लगी, तो हम वह करेंगे.

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उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी की मदद करने वालों की पहचान की जाए, संगठन में सही व्यक्ति को सही स्थान दिया जाए. हमें रेस के घोड़े, बारात के घोड़े और लंगड़े घोड़े को अलग-अलग करना होगा. राहुल गांधी ने संगठन को सशक्त बनाने के लिए लोकसभा, विधानसभा, निकाय चुनाव के लिए उम्मीदवार चय में जिला कांग्रेस कमेटियों की भूमिका को महत्वपूर्ण बनाने, जिम्मेदारी और जवाबदेही तय करने की भी बात कही. राहुल गांधी को गुटबाजी खत्म करने, बीजेपी की मदद करने वाले नेताओं की पहचान करने की बात क्यों कहनी पड़ी? इसे समझने के लिए मध्य प्रदेश में कांग्रेस की जमीनी हालत की चर्चा जरूरी है.

मध्य प्रदेश में कांग्रेस की जमीनी हालत क्या

मध्य प्रदेश में कांग्रेस की जमीनी हालत की बात करें तो यह खस्ताहाल नजर आती है. 2018 के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस ने कमलनाथ की अगुवाई में 15 साल बाद सरकार बनाई और विधायकों की बगावत से पहले, 15 महीने सत्ता में रही. 2023 के चुनाव में जीत के विश्वास के साथ मैदान में उतरी ग्रैंड ओल्ड पार्टी करीब 41 फीसदी वोट शेयर के साथ 230 में से 66 सीटें ही जीत सकी थी.

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साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 41.5 फीसदी वोट शेयर के साथ 114 सीटें जीती थीं. कांग्रेस के वोट शेयर में पिछले चुनाव के मुकाबले एक फीसदी से भी कम की कमी आई, लेकिन सीटें 48 कम हो गईं. पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन और भी निराशाजनक रहा. 2024 के चुनाम में कांग्रेस खाता खोलने में भी विफल रही. हालांकि, पार्टी को 32.9 फीसदी वोट मिले थे.

संगठन पर गुटबाजी हावी

मध्य प्रदेश कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या गुटबाजी रही है. कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और सुरेश पचौरी से लेकर अजय सिंह राहुल तक, मध्य प्रदेश कांग्रेस कई गुटों में बंटी रही है. मध्य प्रदेश चुनाव में करारी हार के बाद पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष बदला, प्रभारी बदला लेकिन आम चुनाव में नतीजा ये रहा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जीती अपनी इकलौती सीट छिंदवाड़ा भी कांग्रेस हार गई. लोकसभा चुनाव में अजय सिंह और गोविंद सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं ने चुनाव लड़ने में असमर्थता जता दी थी.

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कमलनाथ अपने बेटे की उम्मीदवारी वाले छिंदवाड़ा में भी उतने एक्टिव नहीं दिखे. लोकसभा चुनाव से पहले मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी का भी एक वीडियो सामने आया था, जिसमें वह गुटबाजी को कैंसर बताते हुए कहते नजर आ रहे थे कि पार्टी को उबारने के लिए पहले आंतरिक स्तर पर गुटबाजी को खत्म करना ही होगा. मध्य प्रदेश में कांग्रेस की खस्ता हालत के लिए पार्टी के अन्य नेता भी गुटबाजी को जिम्मेदार बताते रहे हैं.

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राहुल गांधी के भोपाल दौरे से ठीक पहले पूर्व मंत्री पीसी शर्मा ने कहा था कि कांग्रेस में कुछ स्लीपर सेल हैं, हमारी सारी जानकारियां बीजेपी तक पहुंचाते हैं. राहुल गांधी का दौरा स्लीपर सेल की पहचान करने का मौका होगा. यह सब कांग्रेस का ही नुकसान कर रहे हैं. अब यह सब उजागर होंगे. राहुल गांधी खुद फीडबैक लेंगे और उसके आधार पर बहुत बड़े परिवर्तन होंगे. कांग्रेस जमीन पर काम कर रही है और अब संगठन की मजबूती पर फोकस है. खुद राहुल गांधी ने भी ऐसे नेताओं की पहचान करने की बात कही है, जो कांग्रेस में रहकर बीजेपी के लिए काम करते हैं.

नेतृत्व का संकट

मध्य प्रदेश कांग्रेस को पिछले विधानसभा चुनाव से अब तक करीब सात साल में छह प्रभारी मिल चुके हैं. इसे भी गुटबाजी से ही जोड़कर देखा जाता है. कांग्रेस की प्रदेश इकाई में गुटबाजी इस कदर हावी है कि कोई प्रभारी जब तक प्रदेश की राजनीति समझ पाता है, उसे हटा दिया जाता है. 2018 के विधानसभा चुनाव के समय दीपक बाबरिया प्रभारी थे और तब से अब तक मुकुल वासनिक, जेपी अग्रवाल, रणदीप सिंह सुरजेवाला, भंवर जितेंद्र सिंह के बाद अब हरीश चौधरी प्रभारी हैं.

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हरीश चौधरी को इसी साल महु में कांग्रेस की रैली के दौरान गुटबाजी खुलकर सामने आने के बाद प्रभारी बनाया गया था. वह गांधी परिवार के करीबी माने जाते हैं. स्थानीय नेतृत्व की बात करें तो कमलनाथ उतने सक्रिय नजर नहीं आ रहे. ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में जा चुके हैं. जीतू पटवारी को पार्टी में ही उतना सहयोग नहीं मिलने की बातें आती रही हैं, जितना सहयोग उन्हें मिलना चाहिए. ऐसे में लोकल लीडरशिप भी पार्टी के लिए चुनौती बना हुआ है.

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