कांग्रेस सांसद और पूर्व राजनयिक शशि थरूर ने मिस्र में आयोजित ग़ाज़ा शांति सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शामिल न होने पर सवाल उठाया है. थरूर ने इसे भारत की वैश्विक भूमिका से जुड़ा अहम संकेत बताते हुए कहा- “क्या यह रणनीतिक संयम था या एक खोया हुआ अवसर?”
प्रधानमंत्री मोदी को इस शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी ने व्यक्तिगत रूप से आमंत्रित किया था, लेकिन भारत की ओर से विदेश राज्यमंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने प्रतिनिधित्व किया.
सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और मिस्र के राष्ट्रपति अल-सीसी सह-अध्यक्ष के रूप में मौजूद रहे. गाजा में शांति और पुनर्निर्माण को लेकर हुए इस उच्चस्तरीय सम्मेलन में 20 से अधिक देशों के राष्ट्राध्यक्ष शामिल हुए.
'बयानों से मेल नहीं खाती है गैर मौजूदगी'
थरूर ने कहा कि, “इतने बड़े वैश्विक नेताओं की मौजूदगी में भारत की ओर से राज्य मंत्री का प्रतिनिधित्व करना संकेत देता है कि हमने शायद दूरी बनाए रखने की रणनीति चुनी है- जो हमारे सार्वजनिक बयानों से मेल नहीं खाती.” उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह टिप्पणी कीर्ति वर्धन सिंह की योग्यता पर सवाल नहीं है, बल्कि भारत की कूटनीतिक प्राथमिकता पर विचार का विषय है.
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थरूर ने चेताया कि इससे भारत की प्रोटोकॉल एक्सेस और प्रभाव दोनों पर असर पड़ सकता है. उन्होंने कहा- “जब क्षेत्र खुद को नया आकार दे रहा है, तब हमारी सीमित मौजूदगी हैरान करती है.”
इस वजह से भारत नहीं हुआ शामिल?
जानकारों के मुताबिक, इस निर्णय के पीछे दो कारण माने जा रहे हैं- पहला, सम्मेलन में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की मौजूदगी, और दूसरा, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मेजबानी भूमिका. भारत हाल ही में पहलगाम आतंकी हमले और उसके बाद की ‘ऑपरेशन सिंदूर’ एयरस्ट्राइक के कारण पाकिस्तान से दूरी बनाए हुए है.
वहीं, ट्रंप के “भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम कराने” के दोहराए गए दावे ने भी नई दिल्ली को सतर्क कर दिया है. गाजा शांति सम्मेलन का उद्देश्य अमेरिकी मध्यस्थता से उस संघर्ष को समाप्त करना है जो 7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमले से शुरू हुआ था. दो साल चले युद्ध के बाद सोमवार को हमास ने अपने 20 जीवित बंधकों को रिहा कर दिया जो एक निर्णायक मानवीय संकेत माना जा रहा है.
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