'भारत का विश्वगुरु बनना हमारी महत्वकांक्षा नहीं, दुनिया की जरूरत', बोले RSS चीफ मोहन भागवत

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि दुनिया उपभोक्तावाद में डूब गई है. दुनिया में हिंदू आध्यात्मिकता का अभाव है जिससे वैश्विक स्तर पर उग्रवाद बढ़ रहा है. उन्होंने कहा कि भारत को आर्थिक या सैन्य शक्ति नहीं, बल्कि सद्भावना और मूल्यों के आधार पर ‘विश्वगुरु’ की भूमिका निभानी होगी.

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत. (Photo: PTI) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत. (Photo: PTI)

aajtak.in

  • हैदराबाद,
  • 28 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 9:14 PM IST

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने रविवार को हिंदुओं से एकजुट होकर सनातन धर्म को और ऊंचाइयों पर ले जाने की अपील की. तेलंगाना के रंगारेड्डी जिले में आयोजित 'विश्व संघ शिविर' के समापन समारोह को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि भारत का उद्देश्य शक्ति प्रदर्शन नहीं, बल्कि विश्व को दिशा देना है. 

इसी संदर्भ में उन्होंने ‘विश्वगुरु’ की अवधारणा पर बात करते हुए कहा कि भारत का विश्वगुरु बनना कोई उसकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा नहीं, बल्कि विश्व को इसकी आवश्यकता है. हालांकि यह स्वतः नहीं होता, इसके लिए निरंतर और कठोर परिश्रम की जरूरत है, जो विभिन्न धाराओं के माध्यम से चल रहा है, जिसमें संघ भी एक महत्वपूर्ण धारा है. संघ इस लक्ष्य की दिशा में सामाजिक और सांस्कृतिक प्रयासों से निरंतर कार्य कर रहा है.

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उन्होंने बीसवीं शताब्दी के आध्यात्मिक नेता योगी अरविंद का उल्लेख करते हुए कहा कि सनातन धर्म के पुनरुत्थान का विचार बहुत पहले ही व्यक्त किया गया था. उन्होंने कहा कि एक सदी पहले शुरू हुई यह प्रक्रिया अब संकल्प और सामूहिक प्रयास से आगे बढ़ानी है. आरएसएस प्रमुख ने कहा, 'वह समय अब आ गया है. 100 वर्ष पहले जब योगी अरविंद ने घोषणा की थी कि सनातन धर्म का पुनरुत्थान ईश्वर की इच्छा है और हिंदू राष्ट्र का उदय सनातन धर्म के पुनरुत्थान के लिए है. भारत, हिंदू राष्ट्र, सनातन धर्म और हिंदुत्व एकदूसरे के पर्यायवाची हैं. योगी अरविंद ने एक शताब्दी पहले संकेत दिया था कि यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. अब हमें उस प्रक्रिया को आगे बढ़ाना है. अब समय आ गया है कि सभी हिंदू एकजुट होकर सनातन धर्म का उत्थान करें.'

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आरएसएस प्रमुख ने कहा कि भारत और विदेशों में संघ से जुड़े संगठन एक ही उद्देश्य साझा करते हैं- हिंदू समाज को संगठित करना और मूल्य आधारित, अनुशासित जीवन का उदाहरण विश्व के सामने प्रस्तुत करना. भारत की वैश्विक भूमिका पर बोलते हुए मोहन भागवत ने जोर दिया कि विश्वगुरु बनने के लिए कई क्षेत्रों में निरंतर प्रयास की जरूरत है. उन्होंने कहा कि संघ व्यक्तित्व निर्माण पर विशेष जोर देकर और स्वयंसेवकों को समाज के विभिन्न क्षेत्रों में भेजकर सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में कार्य कर रहा है. उन्होंने दावा किया कि आज संघ से जुड़े लोगों के कार्यों की हर जगह सराहना हो रही है और समाज का उन पर विश्वास बढ़ा है.

तकनीक और भविष्य को लेकर बोलते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि आने वाले समय में तकनीक, सोशल मीडिया और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का प्रभाव और बढ़ेगा, लेकिन यह जरूरी है कि तकनीक मानवता की मालिक न बने. उन्होंने कहा कि मानवता को तकनीक का स्वामी बने रहना होगा और मानव बुद्धि का उपयोग विश्व कल्याण के लिए होना चाहिए, न कि नकारात्मक या विनाशकारी प्रवृत्तियों के लिए. मोहन भागवत ने जोर देते हुए कहा कि तकनीक का इस्तेमाल दैवीय प्रवृत्तियों की ओर होना चाहिए, न कि आसुरी प्रवृत्तियों की ओर. इसके लिए सिर्फ भाषण नहीं, बल्कि आचरण और जीवन में इसे उतारकर दिखाना होगा. उन्होंने कहा कि जब हम अपने आचरण से उदाहरण पेश करेंगे, तभी दुनिया भारत के विचार और जीवन मूल्यों को स्वीकार करेगी.

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