ग्लोबल वार्मिंग और अनियंत्रित विकास के चलते हिमालयी क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही हैं. उत्तराखंड के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश में भी मॉनसून का कहर जारी है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, नदियों के किनारे कॉन्स्ट्रक्शन और वनों की कटाई ने इस क्षेत्र की संवेदनशीलता को काफी बढ़ा दिया है, जिससे जान-माल का भारी नुकसान हो रहा है.
हिमाचल प्रदेश में जारी मॉनसून की तबाही के पीछे ग्लोबल वार्मिंग, कमजोर हिमालयी भूभाग और अनियंत्रित विकास बड़ी वजहें हैं. यह जानकारी विशेषज्ञों और स्थानीय संगठनों की रिपोर्ट से सामने आई है.
6 अगस्त 2025 को किन्नर कैलाश यात्रा के 413 तीर्थयात्रियों को ITBP और NDRF की टीमों ने एक बह गए पुल के बाद सुरक्षित निकाला. यह बचाव अभियान मंडी, कांगड़ा और शिमला जैसे जिलों में हो रहे भारी नुकसान के बीच हुआ है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि नदियों के किनारों पर निर्माण, वनों की कटाई और अनियमित विकास ने हिमालयी क्षेत्र की संवेदनशीलता को बहुत बढ़ा दिया है.
बार-बार आती आपदाएं...
हिमालय नीति अभियान के संयोजक घुमन सिंह के मुताबिक, 1980 के दशक से पहले बड़े पैमाने पर वनों की कटाई हुई, और इसके बाद अनियोजित निर्माण ने आपदाओं को न्यौता दिया. जून के अंत में सेराज विधानसभा क्षेत्र में हुए भूस्खलन और बाढ़ ने करीब 50 हजार लोगों को प्रभावित किया. इस त्रासदी में सात लोगों की मौत हुई और 21 लोग लापता हो गए.
इस घटना में ₹500 करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ, जिसमें घर, दुकानें, और बुनियादी ढांचा पूरी तरह खत्म हो गए. थुनाग बाजार का आधा हिस्सा बह गया, और पटिकरी जलविद्युत परियोजना भी बर्बाद हो गई.
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क्या हैं आपदा के कारण और समाधान?
HIMCOST के पूर्व प्रिंसिपल साइंटिफक ऑफिसर डॉ. एस.एस. रंधावा ने बताया कि क्लाइमेट चेंज से बादल फटने और भारी बारिश जैसी चरम मौसमी घटनाएं बढ़ रही हैं. उन्होंने उत्तराखंड के उत्तरकाशी में हुई हाल की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि वहां की तबाही सिर्फ बारिश से नहीं हुई, बल्कि एक ग्लेशियल झील के फटने या भूस्खलन से बनी अस्थाई झील के कारण हो सकती है.
उन्होंने बताया कि विकास की योजना बनाते समय पहाड़ी क्षेत्रों की पारिस्थितिक संवेदनशीलता और भूकंपीय जोखिमों को ध्यान में रखना चाहिए और नदियों के पुराने किनारों पर निर्माण की अनुमति नहीं देनी चाहिए. राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने कहा कि ₹1,600 करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ है. उन्होंने कहा कि नदियों और नालों के पास हो रहे निर्माण पर फिर से विचार करना होगा.
कमलजीत संधू