तनाव के बीच कूटनीति, पूर्व PM खालिदा जिया के जनाजे में शामिल होने ढाका जाएंगे विदेश मंत्री जयशंकर

भारत-बांग्लादेश रिश्तों में तनाव के बीच विदेश मंत्री एस. जयशंकर ढाका में खालिदा जिया के अंतिम संस्कार में शामिल होंगे. इसे नई दिल्ली की कूटनीतिक पहल माना जा रहा है. खालिदा के बेटे तारीक रहमान की वापसी और उनके बयान भारत के लिए नई संभावनाएं खोलते दिख रहे हैं.

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खालिदा जिया का मंगलवार सुबह ढाका में निधन हो गया था (Photo-ITG) खालिदा जिया का मंगलवार सुबह ढाका में निधन हो गया था (Photo-ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 30 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 7:19 PM IST

बांग्लादेश के साथ संबंधों में आई कड़वाहट को कम करने की दिशा में नई दिल्ली ने एक बड़ा कदम उठाया है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर बुधवार 31 दिसंबर को बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और बीएनपी (BNP) अध्यक्ष खालिदा जिया के राजकीय अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए ढाका जाएंगे. 

बांग्लादेश की राजनीति की मजबूत पहचान और देश की पहली महिला प्रधानमंत्री रहीं खालिदा जिया का मंगलवार तड़के ढाका में निधन हो गया था. वह 80 वर्ष की थीं. खालिदा जिया का निधन ऐसे समय में हुआ है जब उनके बेटे और बीएनपी के प्रभावी प्रमुख तारिक रहमान 17 साल का निर्वासन खत्म कर स्वदेश लौटे हैं.

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भारत का यह कदम ढाका के साथ संबंधों को फिर से संतुलित करने की एक कोशिश माना जा रहा है. वह भी ऐसे समय में, जब पिछले साल छात्र विद्रोह में शेख हसीना को सत्ता से हटाए जाने के बाद से भारत के अपने दक्षिण एशियाई सहयोगी के साथ संबंध काफी खराब हो गए हैं.

खालिदा जिया के कार्यकाल (1991-96 और 2001-06) के दौरान बांग्लादेश का झुकाव चीन और पाकिस्तान की ओर बढ़ा था, जिसने हमेशा नई दिल्ली की चिंताएं बढ़ाई थीं. मोहम्मद यूनुस की सरकार द्वारा दूरी बनाए रखने के कारण, भारत बांग्लादेश के पाकिस्तान और चीन दोनों के खतरनाक रूप से करीब आने को लेकर चिंतित है. 

यह भी पढ़ें: अशांति, उथल-पुथल, ट्रॉमा... बांग्लादेश की तरह ही ट्रेजडी बनकर रह गया खालिदा जिया का जीवन

तारिक रहमान के हालिया बयानों ने नई दिल्ली को बातचीत का मौका दिया है. रहमान ने स्पष्ट किया है कि वे "न दिल्ली, न पिंडी (रावलपिंडी)" बल्कि "बांग्लादेश पहले" की नीति पर चलेंगे. साथ ही, उन्होंने कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी से भी दूरी बनाई है, जो कभी बीएनपी की सहयोगी थी.

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भारत इस बदलते घटनाक्रम को एक अवसर के रूप में देख रहा है ताकि बांग्लादेश को चीन और पाकिस्तान के प्रभाव में पूरी तरह जाने से रोका जा सके. जयशंकर की यह यात्रा इसी रणनीतिक 'आउटरीच' का हिस्सा है.

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