रडार जैमिंग... वो 1380 सेकेंड जिसमें PAK हुआ 'डिजिटल डार्कनेस' का शिकार, इंडियन एयरफोर्स की सुपर ब्रिलिएंस की कहानी

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान का रडार सिस्टम 23 मिनट तक डिजिटल डार्कनेस में रहा. यानी कि उसे कुछ पता नहीं था कि हो क्या रहा है. इस दौरान उसका डिफेंस सिस्टम गुमराह हो गया और फर्जी टारगेट ट्रैक करने लगा. ये संभव हुआ भारत की ओर से किए गए रडार जैमिंग की वजह से. रडार को को जाम करने का मतलब है इसके इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सिग्नल को दबाना या धोखा देकर किसी वस्तु को डिटैक्ट, ट्रैक करने या निशाना बनाने की इसकी क्षमता को बाधित करना.

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रडार जैमिंग ने इलेक्ट्रानिक वॉरफेयर का परिदृश्य बदल दिया है. (सांकेतिक फोटो- getty image) रडार जैमिंग ने इलेक्ट्रानिक वॉरफेयर का परिदृश्य बदल दिया है. (सांकेतिक फोटो- getty image)

पन्ना लाल

  • नई दिल्ली,
  • 19 मई 2025,
  • अपडेटेड 1:05 PM IST

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पूरे 23 मिनट तक पाकिस्तान का रडार सिस्टम जाम रहा. ये 23 मिनट वो पल थे जब इंडियन एयरफोर्स ने चीन की ओर से पाकिस्तान को सप्लाई किए गए एयर डिफेंस सिस्टम को न सिर्फ बाइपास किया बल्कि इसके रडार सिस्टम को जाम कर दिया. भारत सरकार ने कहा है कि इन 23x60= 1380 सेकेंड में भारत का मिशन पूरा हो गया. भारत ने ऑपरेशन सिंदूर 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के जवाब में शुरू किया गया था, जिसमें 26 लोग मारे गए थे.

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प्रश्न है कि भारत पूरे 23 मिनट तक पाकिस्तान के रडार सिस्टम को जाम कैसे कर पाया? आखिर रडार जाम किया कैसे जाता है? इसके पीछे का विज्ञान क्या है? कैसे इलेक्ट्रानिक्स, मैग्नेटिक्स, रेडियो इमेजिंग, तरंग, ध्वनि और गति युद्ध की डिक्श्नरी के घातक हथियार बन जाते हैं. 

ये समझना साइंस फिक्शन को समझने जैसा है? लेकिन आइए इसे आसान भाषा में समझते हैं. 

रडार यानी कि (Radar- Radio Detection and Ranging). रडार एक ऐसी तकनीक है जो रेडियो तरंगों का उपयोग करके वस्तुओं की दूरी, दिशा, गति और अन्य विशेषताओं का पता लगाती है.  इसमें रेडियो सिग्नल भेजे जाते हैं, जो किसी वस्तु से टकराकर वापस लौटते हैं, और इस आधार पर उस वस्तु की जानकारी प्राप्त की जाती है. ट्रैफिक कंट्रोल, इलेक्ट्रानिक वॉरफेयर, मौसम निगरानी और नेविगेशन में इसका इस्तेमाल होता है.

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रडार सिस्टम को जाम करने का मतलब है इसके इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सिग्नल को दबाना या धोखा देकर किसी वस्तु को डिटैक्ट, ट्रैक करने या निशाना बनाने की इसकी क्षमता को बाधित करना.  ऑपरेशन सिंदूर में रडार जैमिंग ने संभवतः एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, खासकर 7 और 9-10 मई, 2025 को पाकिस्तानी हवाई ठिकानों पर भारत के सफल हवाई हमलों के दौरान. जब उच्च अलर्ट की स्थिति के बावजूद भारत के मिसाइलों ने पाकिस्तानी एयर स्पेस का उल्लंघन किया और आतंक के अड्डे ध्वस्त कर दिए. 

रडार इलेक्ट्रोमैग्नेटिक (EM) तरंगें पैदा करता है. सैन्य रडार  2-18 गीगाहर्ट्ज पैदा करती हैं. ये तरंगें वस्तुओं से टकराकर रडार रिसीवर पर वापस लौटती हैं. रिसीवर इन वापस लौटी तरंगों को प्रोसेस करते वस्तु की सीमा, गति और दिशा तय करते हैं. 

रडार जैमिंग इस प्रक्रिया को बाधित करता है. दरअसल ये वस्तु से टकराकर लौटे संकेतों को सटीक रूप से व्याख्या करने की रडार की क्षमता को कम करता है. 

मिलिट्री रडार की मदद से ही ये पता लगाया जाता है कि कोई भी मिसाइल या ड्रोन किस दिशा से, कितनी स्पीड से आ रहा है और वो टारगेट तक कितने सेकेंड में पहुंच सकता है. ये पता लगाने के बाद फिर डिफेंसिव रुख अपनाते हुए उस Incoming मिसाइल या ड्रोन को टारगेट हिट करने से पहले गिराने के लिए अपना मिसाइल भेजा जाता है. 

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प्योर मैथेमैटिक्स, सुपर फास्ट प्रोसेसर

यहां सेकेंडों में भयंकर गुणा गणित होता है. ये प्योर मैथेमैटिक्स है, आप सबसे पहले दुश्मन के मिसाइल की गति का आकलन करते हैं, फिर ये पता लगाते हैं कि ये मिसाइल कितनी देर में टारगेट हिट करने वाला है, और फिर ये तय करते हैं कि आप अपने मिसाइल को कितनी जल्दी भेजे ताकि उसके टारगेट हिट करने से पहले ही उसे हवा में नष्ट कर दिया जाए. 

7, 9-10 मई को चीनी से खरीदे गए पाकिस्तान के HQ-9 एयर डिफेंस सिस्टम यही काम करने में फेल रहे. इसे नाकाम बनाया भारत के सुपीरियर रडार जैमिंग सिस्टम ने.

गौरतलब है कि इस पूरे काम में स्पीड का बेहद अहम रोल होता है. ये सभी बिजली की रफ्तार से होते हैं. इसके लिए बेहद तेज प्रोसेसर का इस्तेमाल किया जाता है. 

रडार जैमिंग ने युद्ध का डायनामिक बदल दिया है. फोटो- getty

संदर्भ के लिए आपको बता दें कि भारत के ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल की स्पीड लगभग 1 सेकेंड में 1 किलोमीटर है. यानी कि इस स्थिति में 10 सेकेंड का भी मिसकैलकुलेशन आपके टारगेट को आपसे 10 किलोमीटर दूर कर देगा और इसे नष्ट करने के लिए दागा गया दुश्मन का हथियार बेकार हो जाएगा.

रडार के काम करने का फंडा क्या है?

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रडार का एंटीना एक हाई फ्रीक्वेंसी वाला इलेक्ट्रो मैग्नेटिक पल्स उत्सर्जित करता है, जो प्रकाश की गति से सफर करता है. रडार शोर को फ़िल्टर करता है और लक्ष्य की जानकारी बताने के लिए रिटर्न सिग्नल को प्रोसेस करता है.

यहां जिक्र आता है Signal-to-Noise Ratio का. सिग्नल-टू-नॉइज़ रेशियो बताता है कि किसी संचार प्रणाली में उपयोगी सिग्नल (जो जानकारी देता है) की ताकत कितनी है, और नॉइज़ (अनचाहा शोर) कितना है. 

एक हाई SNR बताता है कि डिटेक्शन स्पष्ट है, जबकि लो SNR बताता है कि डिटेक्शन धुंधला है.

रडार जैमिंग कैसे होता है?

रडार जैमिंग एसएनआर को कम कर देता है या इेल्क्ट्रो मैग्नेटिक वातावरण में हेरफेर करके रडार को गुमराह करता है. 

जैमिंग दो तरह से किया जाता है-

नॉइज जैमिंग (Noise jamming): दुश्मन के रडार को जाम करने के दौरान जैमर बेहद शक्तिशाली इेल्क्ट्रो मैग्नेटिक तरंगें दुश्मन के फ़्रीक्वेंसी बैंड में पैदा करता है. इससे 'शोर'पैदा होता है. इससे टारगेट से टकराकर लौटने वाला सिग्नल गड़बड़ हो जाता है. इस वजह से SNR कम हो जाता है. इसका नतीजा यह होता है कि दुश्मन का रडार टारगेट को सही ढंग से पकड़ नहीं पाता है और वो जैमर से पैदा किए गए ब्रैकग्राउंड शोर से कंफ्यूज हो जाता है. 

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इसका असर ये होगा कि रडार स्क्रीन गलत या फॉल्स टारगेट दिखा सकती है, इससे रडार Incoming मिसाइल को लॉक करने में फेल हो जाता है. 

धोखे से जाम करना (Deception Jamming): ये मजेदार कहानी है. इसमें जैमर झूठे सिग्नल पैदा करते हैं, ये सिग्नल रडार रिटर्निंग सिग्नल जैसे ही होते हैं. इसकी वजह से रडार गलत टारगेट या रेंज को लॉक कर लेता है. इस में रडार के सिग्नल प्रोसेसिंग अल्गोरिद्म में कमजोरी का फायदा उठाया जाता है. 

इसके अलावा रडार जैमिंग के और भी तकनीक हैं. जैसे- डिजिटल रेडियो फ़्रीक्वेंसी मेमोरी (DRFM). इसमें रडार से निकलने वाले तरंगों को ही डिजिटली बदल दिया जाता है. इसके बाद डिसेप्शन जैमिंग के लिए इसे फिर से भेजा जाता है. 

मूल रूप से जैमिंग में साइंस की सहायता से दुश्मन के साफ्टवेयर को धोखा देना, या छल करना शामिल है. ये सारा विज्ञान का कमाल है. जैमिंग की सबसे बड़ी शक्ति और खासियत यह है कि इसमें किसी व्यक्ति को दुश्मन के ठिकाने पर जाना नहीं होता है. सारा काम इलेक्ट्रानिक और काउंटर इलेक्ट्रानिक वारफेयर का है. इसलिए इन्हें इलेक्ट्रानिक काउंटर मेजर कहते हैं. 

भारत ने पाकिस्तान के रडार कैसे जाम किया?

7, 9 और 10 मई को भारत ने पाकिस्तान के रडार को कैसे जाम किया? कैसे पूरे 23 मिनट तक पाकिस्तानी रडार सिस्टम चकमा खा गया और डिजिटल डार्कनेस में रहा. ये कहानी इंडियन एयरफोर्स इंडियन डिफेंस सिस्टम के सुपर ब्रिलिएंस की कहानी. इसकी पूरी डिटेल सिर्फ भारतीय सेना के पास ही है. 

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लेकिन इलेक्ट्रानिक वारफेयर (EW) इलेक्ट्रानिक काउंटरमेजर की दुनिया में प्रचलित तकनीक के आधार पर हम कह सकते हैं भारत ने भी इन्हीं तकनीक का इस्तेमाल किया होगा. 

राफेल और SPECTRA: फ्रांस से खरीदे गए राफेल जेल SPECTRA electronic warfare सिस्टम से लैस हैं. इन्हें दुश्मन की SEAD सिस्टम को नष्ट करने के लिए बनाया गया है. SEAD मतलब suppression of enemy air defenses. यानी कि दुश्मन की वायु रक्षा प्रणाली को नष्ट करना. SPECTRA इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली है. यह राफेल की survivability को हवाई और जमीनी खतरों, जैसे रडार, इन्फ्रारेड मिसाइलों और लेजर खतरों, के खिलाफ बढ़ाने का काम करती है. 

एविएशन क्षेत्र की प्रमुख पत्रिका एसपी एविएशन के अनुसार SPECTRA राफेल का एक स्मार्ट "रक्षा कवच" है, जो दुश्मन के रडार, मिसाइलों और लेजर को देखता, समझता और भटकाता है. यह विमान को छुपाने, बचाने और जवाबी हमला करने में मदद करता है, ताकि पायलट सुरक्षित रहकर मिशन पूरा कर सके. यह प्रणाली राफेल को आधुनिक हवाई युद्ध में एक "अदृश्य ढाल" प्रदान करती है, जिससे यह हाई टेक्नलॉलजी हवाई रक्षा नेटवर्क में भी सुरक्षित रहता है.

यह रडार ट्रैकिंग को बाधित करने के लिए शोर और धोखे की जैमिंग का भी उपयोग करता है. 

अनुमान लगाया जा सकता है कि 9-10 मई के हमलों के दौरान, राफेल ने संभवतः SEAD मिशन का नेतृत्व किया. इसने ब्रह्मोस मिसाइलों या अन्य विमानों के लिए रास्ता साफ करने के लिए पाकिस्तानी रडार को जाम कर दिया. 

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ब्रह्मोस मिसाइल: राफेल के अलावा ब्रह्मोस ने तो ऑपरेशन सिंदूर में कमाल कर दिया. ब्रह्मोस मिसाइल लो एलटीट्यूड टैरेन हगिंग (Low Altitude Terrain Hugging) क्षमता से लैस है. इसक का मतलब है कि यह मिसाइल जमीन के बहुत करीब, 10 से 15 मीटर की ऊंचाई पर उड़ान भर सकती है, ताकि दुश्मन के रडार और हवाई रक्षा प्रणालियों से बचा जा सके. यह कॉन्सेप्ट मिसाइल को "भू-स्तर पर चिपककर" उड़ने में सक्षम बनाता है, जिससे यह रडार की नजर में आने से बचती है और लक्ष्य तक सटीकता से पहुंचती है. 

यही वजह रही है कि चीन का HQ-9 डिफेंस सिस्टम एक भी ब्रह्मोस सुपर सोनिक मिसाइल को इंटरसेप्ट नहीं कर सका. जमीन से सटकर उड़ान भरने का नतीजा ये होता है कि रडार को जमीनी स्तर पर हो रहे सामान्य भारी शोर का सामना करना पड़ता है. इस वजह से ये मिसाइल डिफेंस सिस्टम की पकड़ में नहीं आता है. 

इसके अलावा ब्रह्मोस की अदभुत गति भी इसे अभेद्य बनाता है. गौरतलब है कि ब्रह्मोस की गति 2.8 मैक है. इसका मतलब यह हुआ कि यह ध्वनि की गति से 2.8 गुणा ज्यादा तेजी से उड़ता है. ध्वनि की गति 343 मीटर प्रति सेकेंड है. इस तरह से ब्रह्मोस की स्पीड 960 मीटर प्रति सेकेंड होती है. यानी कि एक सेकेंड  में लगभग 1 किलोमीटर. इतनी तेज गति के मिसाइल के सामने चीन में बना HQ-9 डिफेंस सिस्टम पाकिस्तान की कोई मदद नहीं कर पाया और ब्रह्मोस ने अपने सारे टारगेट हिट किए. इसके अलावा ब्रह्मोस का अपना जैमिंग सिस्टम है जो इसे और भी घातक बनाता है. 

डिसेप्शन जैमिंग: माना जा रहा है कि राफेल और सुखोई- 30 पर लगे DRFM जैमर ने पाकिस्तान सिस्टम को फाल्स टारगेट दे दिए. इससे पाकिस्तान डिजिटल डार्कनेस में चला गया. यानि की पाकिस्तानी मिसाइल डिफेंस सिस्टम को उसके एयर स्पेस में हो रहे किसी गतिविधि की जानकारी नहीं थी. इससे पाकिस्तानी डिफेंस सिस्टम गुमराह हो गया और फर्जी टारगेट ट्रैक करने लगा. यह बताता है कि कैसे भारत ने पाकिस्तान की अलर्ट स्थिति के बावजूद उसके हवाई क्षेत्र में बुलंदी से घुस गया और फॉल्स सिग्नल देकर मिसाइल डिफेंस को डायवर्ट कर दिया. 

SEAD: भारत के हमलों में संभवतः रडार साइटों पर फिजिकल के साथ-साथ जैमिंग भी शामिल थी. सैटेलाइट इमेजरी से पता चलता है कि सुक्कुर में एक रडार इंस्टॉलेशन नष्ट हो गया, जिससे पता चलता है कि भारत ने पाकिस्तान के डिटेक्शन इंफ्रास्ट्रक्चर को निशाना बनाया ताकि ब्रह्मोस मिसाइलों को समय मिल सके. इस टाइम गैप की वजह से ब्रह्मोस मिसाइलों ने संभवत: बिना किसी विरोध के पाकिस्तान में हमला किया. 

बता दें कि 7 मई की रात से लेकर 10 मई शाम पांच बजे तक चले ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने 100 पाकिस्तानी आतंकियों को मार गिराया. 40 से 50 पाकिस्तानी सेना के जवान और अफसर मारे गए. इसके अलावा भारत ने पाकिस्तान के 11 एयरबेस पर प्रहार किया, जिसमें रफिकी, मुरीदके (चकवाल), नूर खान (रावलपिंडी), रहीम यार खान, सुक्कुर और चुनियां (कसूर) शामिल थे. 
 

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