SC-ST आरक्षण में नहीं होगा क्रीमी लेयर, सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर केंद्र सरकार ने साफ किया रुख

सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने मीडिया से बात करते हुए कहा, 'केंद्रीय मंत्रिमंडल का यह सुविचारित दृष्टिकोण है कि एनडीए सरकार डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर द्वारा दिए गए संविधान के प्रावधानों के प्रति दृढ़ता से प्रतिबद्ध है.'

Advertisement
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर केंद्रीय मंत्रिमंडल ने साफ किया रुख (फाइल फोटो) सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर केंद्रीय मंत्रिमंडल ने साफ किया रुख (फाइल फोटो)

हिमांशु मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 10 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 7:32 AM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में शुक्रवार को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में संविधान में दिए गए एससी और एसटी के लिए आरक्षण के उप-वर्गीकरण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विस्तृत चर्चा हुई. बैठक में स्पष्ट किया कि डॉ. बीआर अंबेडकर द्वारा तैयार संविधान में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षण प्रणाली में “क्रीमी लेयर” का प्रावधान नहीं है. ऐसे में अंबेडकर के संविधान के मुताबिक ही आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए.

Advertisement

दरअसल कैबिनेट में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चर्चा हुआ हुई. कैबिनेट का मत था कि एनडीए सरकार अंबेडकर के बनाए संबिधान को लेकर प्रतिबद्ध है और एससी एसटी में कोई क्रीमीलेयर का प्रावधान नहीं है. मंत्रिमंडल की बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एससी-एसटी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से शुरू हुई हालिया बहस के बारे में बात की.

सरकार संविधान प्रति कटिबद्ध 

वैष्णव ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के संबंध में निर्णय सुनाया था और एससी-एसटी आरक्षण के संबंध में सुझाव दिया था. मंत्रिमंडल में इस पर विस्तृत चर्चा हुई. एनडीए सरकार बीआर अंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान के प्रति कटिबद्ध है. बीआर अंबेडकर के संविधान के अनुसार एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है.'

Advertisement

यह भी पढ़ें: चिराग पासवान ने SC-ST रिजर्वेशन में क्रीमी लेयर का किया विरोध, कहा- फैसले की समीक्षा की करेंगे अपील

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण संवैधानिक दिशानिर्देशों के अनुरूप लागू किया जाना चाहिए. यह पूछे जाने पर कि क्या यह मुद्दा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री या प्रधानमंत्री द्वारा उठाया गया था, वैष्णव ने कहा कि यह मंत्रिमंडल का सुविचारित विचार है.

सांसदों ने की थी पीएम से मुलाकात

इससे पहले शुक्रवार को एससी और एसटी सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की थी और एससी/एसटी आरक्षण के मुद्दे और सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चर्चा की.बैठक के बाद मोदी ने एक्स पर कहा, "आज एससी/एसटी सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की. एससी/एसटी समुदायों के कल्याण और सशक्तिकरण के लिए हमारी प्रतिबद्धता और संकल्प को दोहराया."

वहीं प्रधानमंत्री से मिलने वाले प्रतिनिधिमंडल में शामिल भाजपा के राज्यसभा सदस्य सिकंदर कुमार ने कहा, "हम सभी सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से चिंतित हैं. हमें इस मामले पर चिंता जताने वाले लोगों के फोन आ रहे हैं. एससी और एसटी का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की और इस संबंध में अपनी चिंता व्यक्त की." 

Advertisement

कुमार ने कहा कि प्रधानमंत्री ने सांसदों के साथ गंभीर चर्चा की और आश्वासन दिया कि सरकार सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को लागू नहीं होने देगी. उन्होंने कहा, "हम इसके लिए प्रधानमंत्री के प्रति आभार व्यक्त करते हैं." भाजपा सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते ने कहा कि प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री को दिए ज्ञापन में आग्रह किया है कि क्रीमी लेयर के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को लागू नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने पीटीआई से कहा, "प्रधानमंत्री का भी ऐसा ही विचार था. उन्होंने हमें आश्वासन दिया कि वह इस मामले को देखेंगे और हमें चिंता न करने के लिए कहा. उन्होंने कहा कि इसे एससी और एसटी श्रेणी में लागू नहीं किया जाएगा."

क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला

इस महीने की शुरुआत में, मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने बीते हफ्ते 6:1 के बहुमत वाले फैसले में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग के कोटे में कोटा दिए जाने को मंजूरी दी थी. कोर्ट ने कहा था कि SC-ST कैटेगरी के भीतर नई सब कैटेगरी बना सकते हैं और इसके तहत अति पिछड़े तबके को अलग से रिजर्वेशन दे सकते हैं.

यह भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट का वो फैसला जिसके विरोध में PM मोदी से मिले बीजेपी के SC/ST सांसद

Advertisement

देश में अभी अनुसूचित जाति (एससी) को 15 फीसदी और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को 7.5 फीसदी आरक्षण मिलता है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एससी और एसटी की जातियों के इसी 22.5 फीसदी के आरक्षण में ही राज्य सरकारें एससी और एसटी के कमजोर वर्गों का अलग से कोटा तय कर सकेंगी.

सुप्रीम कोर्ट ने कोटे के अंदर कोटे की अनुमति राज्य सरकारों को देते हुए का था कि राज्य अपनी मर्जी और राजनीतिक महत्वाकांक्षा के आधार पर फैसला नहीं ले सकते. अगर ऐसा होता है तो उनके फैसले की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है.अगर कोई राज्य किसी जाति को कोटे के अंदर कोटा देती है तो उसे साबित करना होगा कि ऐसा पिछड़ेपन के आधार पर ही किया गया है. ये भी देखा जाएगा कि किसी एससी-एसटी के कुल आरक्षण का उसके किसी एक वर्ग को ही 100% कोटा न दे दिया जाए.
 

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement