हरियाणा में AAP की एंट्री से कांग्रेस का गेम बिगड़ेगा या बीजेपी के लिए बदलेंगे हालात? समझिए क्या है समीकरण

इस साल के अंत में हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं. AAP ने हाल ही में लोकसभा चुनाव अपने इंडिया ब्लॉक पार्टनर कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था. कांग्रेस ने 9 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा और पांच सीटों पर जीत हासिल की. AAP ने कुरूक्षेत्र सीट पर चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नसीब नहीं हुई थी. AAP ने कुरूक्षेत्र सीट पर सुशील गुप्ता को मैदान में उतारा था. AAP को 29 हजार वोटों से हार मिली.

Advertisement
हरियाणा में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं. हरियाणा में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं.

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 19 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 1:28 PM IST

आम आदमी पार्टी ने इंडिया ब्लॉक से किनारा कर लिया है और हरियाणा में आगामी विधानसभा चुनाव में अकेले सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. AAP ने यह भी साफ कर दिया कि वो हरियाणा में अकेले क्यों चुनाव लड़ना चाहती है? पार्टी को लगता है कि राज्य में उसका संगठन मजबूत हो रहा है और बीजेपी की सरकार के खिलाफ एंटी इन्कमबेंसी है. 10 साल की सरकार के खिलाफ लोगों में गुस्सा भी है. यही वजह है कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी को नुकसान झेलना पड़ा है. हालांकि, आंकड़े AAP के पक्ष में नहीं है. AAP ने हरियाणा में कई बार चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नसीब नहीं हुई है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि हरियाणा में AAP के अकेले चुनाव लड़ने से कांग्रेस का गेम बिगड़ेगा या बीजेपी के लिए हालात बदलेंगे? समझिए...

Advertisement

इस साल के अंत में हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं. AAP ने हाल ही में लोकसभा चुनाव अपने इंडिया ब्लॉक पार्टनर कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था. कांग्रेस ने 9 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा और पांच सीटों पर जीत हासिल की. AAP ने कुरूक्षेत्र सीट पर चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नसीब नहीं हुई थी. AAP ने कुरूक्षेत्र सीट पर सुशील गुप्ता को मैदान में उतारा था. AAP को 29 हजार वोटों से हार मिली. बीजेपी के नवीन जिंदल को 542,175 वोट मिले. AAP के गुप्ता को 513,154 वोट मिले. AAP ने 2019 में भी विधानसभा चुनाव लड़ा था और 46 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. पार्टी को पूरे राज्य में सिर्फ 59,839 वोट मिल सके थे. इससे पहले कांग्रेस नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा ने संकेत दिया था कि पार्टी विधानसभा चुनाव अकेले लड़ सकती है. कांग्रेस नेता का कहना था कि वे अपने दम पर सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ने में सक्षम हैं.

Advertisement

बीजेपी बदल रही है रणनीति?

हरियाणा में बीजेपी की सरकार है. इस बार बीजेपी की कोशिश है कि जीत की हैट्रिक लगाई जाए. हालांकि, यह आसान नहीं है. क्योंकि लोकसभा चुनाव के नतीजों ने पार्टी को अलर्ट कर दिया है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने 5-5 सीटें जीती हैं. इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया था. 2014 में भी सात सीटें जीती थीं. यही वजह है कि इस बार के नतीजों के बाद पार्टी ने अपनी पूरी रणनीति बदल ली है और हर वर्ग को साधने का फुल प्रूफ प्लान जमीन पर उतार दिया है. सोशल इंजीनियरिंग पर फोकस किया जा रहा है. मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ओबीसी चेहरे हैं. प्रदेश अध्यक्ष के लिए ब्राह्मण फेस मोहन लाल बड़ौली को बनाकर नया दांव खेला है. प्रदेश प्रभारी सतीश पूनिया जाट समाज से आते हैं. किसानों और युवाओं की नाराजगी भी कम करने की कोशिशें की जा रही हैं. ओबीसी के लिए क्रीमी लेयर बढ़ाने का ऐलान कर दिया है. ओबीसी जातियों की B कैटेगरी के लिए भी नया कोटा तय कर दिया है. चुनाव से पहले इसे बड़ा दांव माना जा रहा है. हरियाणा में सबसे बड़ा वोट बैंक ओबीसी का है. हरियाणा में ओबीसी और ब्राह्मण समुदायों को मिलाकर करीब 35 फीसदी वोटर्स हैं. राज्य में 21 प्रतिशत ओबीसी मतदाता हैं. जबकि जाट मतदाता 22.2 प्रतिशत हैं. करीब 20 फीसदी दलित आबादी है.

Advertisement

AAP की एंट्री से कांग्रेस और बीजेपी में किसे नुकसान?

जानकार कहते हैं कि हरियाणा में आम आदमी पार्टी के अकेले विधानसभा चुनाव लड़ने से कांग्रेस को नुकसान हो सकता है. AAP का उभरना कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगा सकता है. विशेषकर शहरी और युवा वोटर्स को AAP अपने वोटर्स में बदल सकती है. दरअसल, शहरी और युवा भ्रष्टाचार और सुशासन के मुद्दे पर AAP की नीतियों की ओर आकर्षित हो सकते हैं. हालांकि, इससे बीजेपी को अप्रत्यक्ष रूप से लाभ हो सकता है. क्योंकि विरोधी वोटों का विभाजन बीजेपी की जीत की संभावनाओं को बढ़ा सकता है. यह समीकरण अलग-अलग चुनाव लड़ने से बनते दिख रहे हैं.

हरियाणा में आम आदमी पार्टी का कुछ जिलों में मजबूत आधार बनता दिख रहा है. विशेषकर गुरुग्राम, फरीदाबाद, रोहतक और हिसार जैसे शहरी इलाकों में संगठन पैठ बना रहा है. पार्टी ने इन जिलों में जमीनी स्तर पर काम करते हुए स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है और मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश की है. पंचायत और जिला परिषद चुनावों में भी AAP ने इन क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन किया है.

लोकसभा चुनाव के नतीजे क्या कहते हैं?

इस बार लोकसभा चुनाव में जब AAP और कांग्रेस मिलकर मैदान में उतरी तो वोटों के मामले में बीजेपी को नुकसान झेलना पड़ा है. 2019 में बीजेपी का वोट शेयर 58.20% था. अब ये घटकर 46.30% हो गया है. जबकि 2019 में कांग्रेस का वोट शेयर 28.50% था, जो अब बढ़कर 43.80% हो गया है. AAP ने पिछली बार तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था. इस बार सिर्फ एक सीट पर चुनाव लड़ा. उसके बावजूद अपना वोट शेयर 0.36% से बढ़ाकर 3.94% कर लिया. यानी गठबंधन में AAP के वोट शेयर में इजाफा हुआ है.

Advertisement

वोटों का ध्रुवीकरण हुआ तो बीजेपी को फायदा?

इसके अलावा, बीजेपी ने हरियाणा की कुल 90 विधानसभा सीटों में से 44 सीटों पर सबसे ज्यादा वोट हासिल किए. कांग्रेस भी 42 सीटों पर ज्यादा पीछे नहीं रही. जबकि AAP चार सीटों पर आगे रही. JJP और INLD किसी भी विधानसभा क्षेत्र में आगे नहीं रहीं. जानकार कहते हैं कि लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव भी AAP और कांग्रेस मिलकर लड़ते तो बीजेपी को बहुमत का आंकड़ा हासिल करने में चुनौती मिल सकती थी. लेकिन अकेले चुनाव लड़ने की स्थिति में बीजेपी को बड़े नुकसान से राहत मिल सकती है. चूंकि बीजेपी को राज्य में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. बीजेपी के रणनीतिकारों को भी लगता है कि विपक्षी दलों के बीच वोटों के विभाजन के जरिए नुकसान की भरपाई की जा सकती है.

क्या कहते हैं चुनावी आंकड़े...

2019 में सात लोकसभा सीटों की प्रत्येक विधानसभा सीट पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी. इस बार पार्टी सिर्फ करनाल लोकसभा सीट पर ही ऐसा कर पाई. करनाल सीट से पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर उम्मीदवार थे. 2019 के विधानसभा चुनावों के नतीजों में त्रिशंकु सदन की स्थित बन गई थी. कोई भी पार्टी बहुमत के आंकड़े को पार नहीं कर पाई थी. 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का 33.3 प्रतिशत वोट शेयर था. 2019 में बढ़कर बीजेपी का वोट शेयर 36.7 प्रतिशत हो गया था. हालांकि, सात सीटों का नुकसान हो गया था.

Advertisement

बीजेपी ने 36.70% वोट शेयर के साथ 40 सीटें जीती थीं. जबकि कांग्रेस ने 28.20% वोट शेयर के साथ 31 सीटें जीती थीं. जेजेपी 14.90% वोट शेयर से 10 सीटों के साथ किंगमेकर के रूप में उभरी थी. INLD ने 2.50% वोट शेयर के साथ सिर्फ एक सीट जीती थी. बाकी सात सीटें निर्दलीयों ने जीती थीं. बाद में जेजेपी ने सरकार बनाने के लिए बीजेपी के साथ गठबंधन किया. हालांकि, बीजेपी ने मार्च में जेजेपी के साथ गठबंधन तोड़ दिया. अभी निर्दलीयों के समर्थन से राज्य में बीजेपी की सरकार है.

क्या हैं जमीन पर समीकरण...

भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगियों ने 2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की. हालांकि, इस बार उसके सामने चुनौतियां ज्यादा हैं. राज्य में नेतृत्व परिवर्तन हुआ है. संगठन में भी नए चेहरे को जिम्मेदारी दी गई है. 10 साल हरियाणा में सरकार चलाने वाले मनोहर लाल खट्टर के पास केंद्र सरकार में बड़ी जिम्मेदारी है. किसान और पहलवानों के मुद्दे ने सरकार की मुश्किलें बढ़ाई हैं. जाटों की नाराजगी भी किसी से छिपी नहीं है. विपक्ष महंगाई-बेरोजगारी पर लगातार सरकार को घेर रहा है. कांग्रेस, AAP और अन्य क्षेत्रीय दलों को उम्मीद है कि वो इन मुद्दों के सहारे बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगाएगा. दूसरी ओर बीजेपी को लगता है कि कांग्रेस, जननायक जनता पार्टी, इंडियन नेशनल लोकदल और आम आदमी पार्टी के बीच वोटों का बंटवारा होने से नुकसान कम होगा और बढ़त बरकरार रहेगी.

Advertisement

जाटों के गुस्से का क्या असर होगा?

हरियाणा में जाट सबसे प्रभावशाली समुदाय है. जाट समुदाय की आबादी करीब 27 प्रतिशत है. हिसार, भिवानी, महेंद्रगढ़, रोहतक, झज्जर, सोनीपत, सिरसा, जींद और कैथल हरियाणा में जाटलैंड माने जाते हैं. 57 वर्षों में राज्य में 33 बार जाट मुख्यमंत्री रहे हैं. राज्य में बीजेपी के सभी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस, INLD और JJP के पास जाट नेतृत्व है. 2014 के लोकसभा चुनाव में 33 प्रतिशत जाटों ने बीजेपी का समर्थन किया था. छह महीने बाद विधानसभा चुनाव हुए तो यह वोट शेयर घटकर 24 प्रतिशत रह गया. 2019 के लोकसभा चुनाव में बालाकोट एयरस्ट्राइक और पीएम मोदी की लोकप्रियता के कारण 42 प्रतिशत जाटों ने बीजेपी का समर्थन किया. विधानसभा चुनाव में वोट शेयर घटकर 34 प्रतिशत रह गया था.

जाटों में असंतोष के कारण बीजेपी 2019 के विधानसभा चुनावों में पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर पाई और पार्टी छह सीटों से पीछे रह गई. 10 विधायकों वाली जेजेपी के सहयोग से बीजेपी ने दोबारा सरकार बनाई. किसानों के विरोध, अग्निपथ योजना और पहलवानों के विरोध के कारण इस बार जाटों में नाराजगी है. इसे भांपते हुए जेजेपी ने बीजेपी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है. हालांकि, आधिकारिक तौर पर लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटें ना दिए जाना वजह बताया है.

Advertisement

कांग्रेस को क्या उम्मीदें?

वहीं, कांग्रेस जाट-दलित-मुस्लिम समर्थन को मजबूत करने की कोशिश कर रही है. इन तीनों वर्गों की आबादी 50 प्रतिशत है और 7-8 सीटों पर खासा प्रभाव है. कांग्रेस नेता भूपिंदर हुड्डा कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में पार्टी के वोट शेयर में करीब 20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. यह स्पष्ट संकेत है कि लोगों ने कांग्रेस सरकार लाने का मन बना लिया है. 

AAP को क्यों जीत की उम्मीद?

गुरुवार को पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, राज्यसभा सांसद संजय सिंह, राष्ट्रीय संगठन मंत्री संदीप पाठक और प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सुशील गुप्ता ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में चुनाव की रणनीति बताई. उन्होंने कहा कि 20 जुलाई को बैठक होगी और हरियाणा के लिए अरविंद केजरीवाल की गारंटी लॉन्च की जाएगी. AAP का कहना था कि वो हर सीट और हर वो बूथ पर मजबूती से चुनाव लड़ेगी. 

AAP ने 6500 गांवों में बदलाव जनसंवाद बैठकें की

हरियाणा में AAP की चुनावी रणनीति क्या है? इसका जवाब खुद AAP के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) संदीप पाठक ने दिया. उन्होंने कहा, AAP हरियाणा में सत्ता में आएगी. अगर किसी को इस बारे में कोई संदेह है कि AAP हरियाणा चुनाव कैसे लड़ेगी तो मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि हम आगामी चुनाव इस तरह से लड़ेंगे कि दुनिया देखेगी. हम सभी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे और सरकार बनाएंगे. AAP का कहना है कि हमने 6,500 गांवों में 'बदलाव जनसंवाद' बैठकें कीं और इन बैठकों में लोगों ने सिर्फ एक ही बात की - बदलाव की.

दिल्ली और पंजाब को टच करता है हरियाणा

भगवंत मान का कहना था कि AAP नेताओं ने हरियाणा के रोहतक, सोनीपत और जींद में बैठकें कीं. वहां लोगों ने कहा कि वे राज्य में 'बदलाव' चाहते हैं. मान का कहना था कि हरियाणा ने कांग्रेस, बीजेपी और क्षेत्रीय दलों को मौका दिया लेकिन इन सभी ने राज्य को लूट लिया. लोग बदलाव चाहते हैं और AAP को बड़ी उम्मीद से देख रहे हैं. उन्होंने कहा, 'आप' एक राष्ट्रीय पार्टी है और सबसे तेजी से बढ़ती पार्टी भी है. हमारी दिल्ली और पंजाब में सरकारें हैं. हरियाणा का आधा हिस्सा दिल्ली को छूता है और दूसरा आधा पंजाब को छूता है जबकि आधा हरियाणा पंजाबी भी बोलता है.

मान ने बताया, AAP को हरियाणा से क्यों उम्मीदें ज्यादा?

मान ने तर्क दिया, दस साल पहले किसी ने नहीं सोचा था कि AAP पंजाब में बड़ी जीत दर्ज करेगी और अपने दम पर सरकार बनाएगी, लेकिन यह हकीकत हुआ. अब पार्टी उसी भावना और ऊर्जा के साथ हरियाणा चुनाव लड़ेगी. भगवंत मान की पत्नी गुरप्रीत कौर हरियाणा के कुरूक्षेत्र जिले से हैं. उन्होंने कहा, पंजाब और हरियाणा के लोगों के रिश्तेदार दोनों राज्यों में हैं. जबकि दोनों राज्यों के कुछ जिले सीमाएं साझा करते हैं. उन्होंने कहा, अरविंद केजरीवाल हरियाणा के हैं और उन्होंने देश की राजनीति बदल दी.

हरियाणा में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं. वर्तमान में तीन सीटें खाली हैं. बीजेपी के 41 विधायक हैं. कांग्रेस के 29, जेजेपी के 10 और INLD और HLP के एक-एक विधायक हैं. सदन में पांच निर्दलीय विधायक हैं.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement