इस दीवाली, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पिछले तीन सालों में सबसे खराब वायु प्रदूषण देखा गया. इसके बाद सवाल उठा कि दिल्ली सरकार की क्लाउड सीडिंग (कृत्रिम बारिश) योजना कहां है? इस पर अधिकारियों का जवाब आया कि अभी मौसम की परिस्थितियां अनुकूल नहीं हैं. आइए यहां समझते हैं कि आखिर क्लाउड सीडिंग के लिए सही स्थिति क्या होती है?
क्या है क्लाउड सीडिंग?
क्लाउड सीडिंग एक 75 साल पुरानी तकनीक है, जिसमें विशेष ‘बीज’ कणों (generally सिल्वर आयोडाइड) का उपयोग करके उपयुक्त बादलों को संशोधित किया जाता है ताकि बारिश कराई जा सके. ये बीज कण पानी की भाप (water vapour) को आकर्षित करते हैं. इसके चारों ओर पानी संघनित होता है और भारी होकर बारिश के रूप में गिरता है.
सबसे प्रभावी तरीका है इन बीजों को बादल में एयरक्राफ्ट या विशेष ड्रोन से छिड़कना. आमतौर पर विमान के पंखों पर फ्लेयर लगाए जाते हैं जो बादल के आधार या अंदर बीज सामग्री छोड़ते हैं.
सही मौसम की शर्तें
सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि क्लाउड सीडिंग के लिए बादल होना जरूरी है. बारिश हवा में से नहीं बनाई जा सकती. बादल में पर्याप्त पानी के कण होने चाहिए.
सही स्थिति कई बातों पर निर्भर करती है. जैसे बादल में नमी का स्तर, बादल की ऊर्ध्वाधर मोटाई, हवा की गति और बादल के भीतर ऊर्ध्वाधर वायु प्रवाह होना जरूरी है. CAIPEE के अनुसार, एक किमी से कम ऊंचाई वाले बादल में क्लाउड सीडिंग नहीं की जा सकती. तेज हवाएं प्लान को फेल कर सकती हैं.
निचली ऊंचाई पर क्लाउड सीडिंग के लिए मजबूत क्षैतिज हवाओं का न होना जरूरी है.
जिन बादलों में अपने भीतर ऊर्ध्वाधर वायु प्रवाह के कारण स्वाभाविक रूप से ऊपर उठने की क्षमता होती है, उन्हें सबसे उपयुक्त माना जाता है. क्योंकि जैसे-जैसे बादल ऊंचाई पकड़ता है, तापमान गिरता है जिससे भाप संघनित होकर बारिश बनती है.
क्लाउड सीडिंग ठंडे और गर्म महीनों दोनों में की जा सकती है. निचली ऊंचाई वाले बादलों में बीज नीचे या बीच में छिड़के जाते हैं. उच्च ऊंचाई वाले बादलों में जहां तापमान शून्य से नीचे होता है, बीज ऊपर छिड़के जाते हैं.
क्या भारत में क्लाउड सीडिंग प्रभावी है?
CAIPEE के अनुसार केवल कुछ क्षेत्रों में बीज डाले जा सकते हैं. दिल्ली के ऊपर बादल बीज योग्य हैं या नहीं, ये अभी प्रयोग का विषय है. 1970 के दशक में भारतीय उष्ण कटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान ने क्लाउड सीडिंग का प्रयोग किया था, लेकिन कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकला. शुरुआती अनुभव में बारिश में लगभग 17% वृद्धि हुई थी.
गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसी कई राज्य सरकारों ने कुछ इलाकों में क्लाउड सीडिंग की, लेकिन इसकी प्रभावकारिता पूरी तरह सिद्ध नहीं हुई है.
प्राकृतिक बारिश और कृत्रिम बारिश में अंतर कैसे पहचाने?
इसका सटीक तरीका नहीं है लेकिन आधुनिक डेटा-संचालित मॉडल बादल की प्रक्रियाओं और बीज डालने के प्रभाव का अनुमान लगा सकते हैं. इनका सत्यापन ग्राउंड और एयर-बेस्ड उपकरणों से किया जा सकता है.
शुभम तिवारी / बिदिशा साहा