देश की राजधानी दिल्ली में लगातार बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण दिल्लीवालों के लिए रविवार का दिन भी दमघोंटू रहा. इस वातावरण में आंखों में जलन और सांस लेने में तकलीफ हो रही है. अशोक विहार इलाके में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 999 दर्ज किया गया है. पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक, सांसों का ये आपातकाल आने वाले दिनों में और भी खतरनाक हो सकता है. प्रदूषण की वजह से कई स्वास्थ्य समस्याएं भी सामने आ रही हैं, जिसमें दिमाग का प्रभावित होना, बेचैनी बढ़ना, कॉग्निटिव एबिलिटी यानी संज्ञानात्मक क्षमता पर असर हो रहा है.
द्वारका, शाहदरा और जहांगीरपुरी जैसे इलाकों में भी हालात बेहद खराब हैं. आनंद विहार, पंजाबी बाग, आरकेपुरम, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम और फरीदाबाद में भी प्रदूषण का स्तर खतरनाक से कई गुना ज्यादा है. लोगों को आंखों में जलन महसूस हो रही है, आंखों से पानी निकल रहा है, सांस फूलने की समस्या हो रही है.
सफदरजंग अस्पताल के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ. नीरज गुप्ता ने कहा कि बुजुर्गों, स्कूल जाने वाले बच्चों और गर्भवती महिलाओं में सिरदर्द, चिंता, चिड़चिड़ापन जैसी समस्याएं काफी बढ़ गई हैं. उन्होंने कहा कि न्यूरोकॉग्निटिव कैपेसिटी हवा में बढ़ते नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड से सीधे जुड़ी हुई है, क्योंकि वे तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करते हैं. डॉ. गुप्ता ने बताया कि इस प्रदूषण के लिए गैस चैंबर तकनीकी रूप से सही शब्द है, जिसका इस्तेमाल हानिकारक गैसों की सांद्रता में वृद्धि के कारण किया जाता है.
डॉ. गुप्ता ने कहा कि उत्तरी कैरोलिना में स्कूल जाने वाले बच्चों के बीच किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि AQI का उनकी मैथमेटिकल क्षमताओं पर सीधा प्रभाव पड़ता है. इस जहरीली हवा के संपर्क में आने से बचना ही एकमात्र उपाय है. विशेष रूप से बुजुर्ग, बच्चे, गर्भवती महिलाओं, अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज और हृदय रोग जैसी बीमारियों से ग्रसित मरीजों को घर के अंदर रहने की कोशिश करनी चाहिए. रविवार को लगातार छठवें दिन दिल्ली में जहरीली धुंध छाई रही.
डॉक्टरों ने कहा कि शहर के अस्पतालों में पिछले कुछ दिनों से सांस संबंधी बीमारियों से पीड़ित रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ी है. अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के पूर्व निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि ऐसी स्टडी हुई हैं, जिनमें ये सामने आया है कि वायु प्रदूषण की वजह से ब्रेन स्ट्रोक, डिमेंशिया जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं. गुलेरिया ने कहा कि प्रदूषण के कारण मल्टी-ऑर्गन स्वास्थ्य संबंधी खतरे का बढ़ना, नींद न आना और सांस लेने में तकलीफ होने जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं.
गुलेरिया ने कहा कि सर्दियों में हवा की गुणवत्ता काफी गिर जाती है और इस पर बहुत चर्चा होती है, लेकिन कोई ठोस स्थायी कार्रवाई नहीं की जाती है. इसके अलावा डाटा से पता चलता है कि पूरे साल में 50 प्रतिशत से अधिक दिनों में हवा की गुणवत्ता बदतर रहती है. जिससे अधिकांश दिनों में नागरिकों को वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों का सामना करना पड़ता है, जो कि सर्दियों के दौरान और भी बदतर हो जाता है. इससे लंबे समय तक खांसी, सांस लेने में कठिनाई, गले में संक्रमण और सीने में जकड़न के साथ-साथ मरीज चिंता, भ्रम और चिड़चिड़ेपन की शिकायत कर रहे हैं. यह वायु प्रदूषण एक बड़ा संकट है जिसे तत्काल कम करने की जरूरत है.
aajtak.in