भारतीय मूल के जोहरान ममदानी ने जब न्यूयॉर्क शहर के मेयर की उम्मीदवारी जताई तो खुद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप विरोध में उतर आए. उन्होंने ममदानी पर तमाम तरह के आरोप लगाते हुए धमकी दी कि अगर वे इलेक्शन जीतकर आए तो वॉशिंगटन न्यूयॉर्क सिटी को उतनी आर्थिक मदद नहीं देगा. लेकिन क्या ऐसा संभव है कि केंद्र किसी राज्य को अपने मुताबिक न चलने की वजह से फंड रोक दे? और अगर हां, तो संविधान में इसकी क्या काट है?
अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ट्रंप ने डर जताया कि ममदानी की जीत न्यूयॉर्क शहर को आर्थिक तौर पर बर्बाद कर देगी. सफलता तो दूर, उसका सर्वाइवल भी मुश्किल हो जाएगा. ट्रंप ने यहां तक कह दिया कि किसी कम्युनिस्ट नेता की बजाए वे डेमोक्रेट लीडर को जीतता देखना चाहेंगे, जिसके पास सफलता का रिकॉर्ड हो.
अपना गुस्सा जताते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि ममदानी के मेयर बनने पर शहर को फंड करना पैसों की बर्बादी होगी, इसलिए केंद्र उसे न्यूनतम मदद देगा. उन्होंने यह भी जोड़ा कि ममदानी यहूदी विरोधी हैं, इसलिए अमेरिकी यहूदियों के लिए उनसे दूरी रखना ही ठीक है.
अमेरिका के इतिहास में वैसे कई बार राष्ट्रपतियों ने किसी राज्य या शहर की फंडिंग रोकने या घटाने की धमकी दी, लेकिन हर बार अदालत ने इसे असंवैधानिक ठहराया.
सबसे चर्चित मामला था डोनाल्ड ट्रंप बनाम कैलिफोर्निया का. पहले कार्यकाल की शुरुआत में ही ट्रंप ने कहा था कि जो राज्य अवैध प्रवासियों को पनाह देंगे, उनकी फेडरल फंडिंग काट दी जाएगी. कैलिफोर्निया इसमें टॉप पर था. ये राज्य इमिग्रेंट्स के लिए सेफ शेल्टर की तरह जाना जाता है, जहां आमतौर पर इमिग्रेशन एजेंसियों को भी घुसने की इजाजत नहीं. अगर घुसपैठ करने वालों ने कोई गंभीर अपराध किया हो, तब ही फेडरल पुलिस भीतर जा पाती है. ट्रंप ने शुरू से ही इसका विरोध किया और आते ही कैलिफोर्निया की फंडिंग रोकनी चाही.
कैलिफोर्निया ने तुरंत कानूनी रास्ता अपनाते हुए फेडरल कोर्ट में मुकदमा दायर किया और दलील दी कि यह कदम संविधान के खिलाफ है, क्योंकि फंडिंग रोकने का अधिकार राष्ट्रपति नहीं, बल्कि कांग्रेस के पास है. कोर्ट ने कैलिफोर्निया के पक्ष में फैसला दिया और कहा कि ट्रंप प्रशासन की यह कार्रवाई असंवैधानिक और राजनीतिक बदले जैसी है.
इसके बाद अदालत ने ट्रंप प्रशासन को आदेश दिया कि किसी भी राज्य या शहर की ग्रांट या फंडिंग रोकने से पहले कांग्रेस की मंजूरी जरूरी होगी.
संविधान क्या कहता है
कांग्रेस यानी सदन तय करता है कि किसे, कितना फंड मिलेगा. राष्ट्रपति के पास ये अधिकार नहीं. अगर कांग्रेस के फैसलों पर राष्ट्रपति मंजूरी न दे तो ये असंवैधानिक है, जिसके लिए उसे घेरा जा सकता है. दरअसल ऐसे मामले काफी पहले से दिखते रहे, जब नाराज राष्ट्रपति ने किसी शहर या राज्य से साथ भेदभाव करना चाहा.
ऐसा ही एक मामला राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के दौर में आया था. साल 1974 में उन्होंने कांग्रेस के अप्रूवल को खारिज करने की कोशिश की. तब एक एक्ट आया, जो कहता है कि राष्ट्रपति फंड को 45 दिनों तक रोक सकते हैं लेकिन इसके बाद फाइनल कॉल कांग्रेस का होगा.
अब आते हैं न्यूयॉर्क शहर पर. उसे सेंटर से कितनी मदद चाहिए होती है? अलजजीरा की एक रिपोर्ट में न्यूयॉर्क स्टेट कॉम्पट्रोलर के हवाले से कहा गया कि अगले साल शहर को लगभग साढ़े सात बिलियन डॉलर की जरूरत पड़ सकती है. शहर के कुल खर्च का करीब साढ़े छह फीसदी केंद्र से आता है. बाकी सारा खर्च राज्य के टैक्स से मैनेज होता है. चालू साल तक राज्य का खर्च ज्यादा रहा, जिसमें महामारी के खर्च भी शामिल थे.
ट्रंप प्रशासन न्यूयॉर्क के फंड कम करने की पहले ही कोशिश कर चुका, जबकि ममदानी हाल में मेयर बने हैं. डेमोक्रेट मेयर एरिक एडम्स के कार्यकाल में राष्ट्रपति के कहने पर 12 मिलियन डॉलर रोक दिए गए. बाद में इसे रिलीज कर दिया गया.
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