जम्मू कश्मीर से साल 2019 में अनुच्छेद 370 हटाने के साथ-साथ इसका विभाजन किया गया और लद्दाख को एक अलग केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया. लेह एपेक्स बॉडी और करगिल डेमोक्रेटिक एलायंस जैसे संगठन लगातार केंद्र सरकार से बातचीत कर लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं. इसी मांग के साथ बुधवार को लेह में हिंसक प्रदर्शन हुए, जिसमें चार लोगों की जान चली गई और 70 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. लद्दाख की यह मांग छह साल पुरानी है, जब से उसे जम्मू कश्मीर से अलग किया गया है.
लद्दाख आंदोलन का चेहरा बने वांगचुक
प्रसिद्ध पर्यावरणविद और रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सोनम वांगचुक भी पिछले छह साल से लद्दाख के लिए संवैधानिक और प्रशासनिक अधिकारों की मांग के साथ आंदोलन कर रहे हैं. उनका आंदोलन साल 2019 में शुरू हुआ, जब लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया. इस फैसले को लद्दाख के लोगों ने अपनी पहचान, संस्कृति, पर्यावरण और संसाधनों के प्रतिकूल बताया और इसका विरोध शुरू हो गया.
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आंदोलन का नेतृत्व मुख्य तौर पर लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस की ओर से किया जा रहा है. सोनम वांगचुक भी इस आंदोलन का एक प्रमुख चेहरा हैं. लद्दाख के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा उनकी सबसे प्रमुख मांग है. इसके अलावा संविधान की छठी अनुसूची के तहत लद्दाख को स्वायत्त और जनजातीय क्षेत्र का दर्जा देना, लद्दाख के लिए अलग पब्लिक सर्विस कमीशन का गठन, लेह और कारगिल के लिए अलग-अलग लोकसभा सीटों की मांग भी जोर पकड़ रही है.
छह साल पहले बना केंद्र शासित प्रदेश
सोनम वांगचुक लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए लगातार अनशन, पदयात्रा और बैठकें कर रहे हैं. इस आंदोलन की नींव केंद्र सरकार का वह फैसला है, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को छह साल पहले दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया. लद्दाख, जम्मू-कश्मीर से विधानसभा के बिना अलग केंद्र शासित प्रदेश बना, जहां सिर्फ एक लोकसभा सीट है. लद्दाख के लोग शुरू में तो इस अलगाव से खुश थे, क्योंकि लंबे समय से वे जम्मू-कश्मीर से अलग पहचान चाहते चाहते थे. हालांकि, बिना विधानसभा के केंद्र शासित प्रदेश के रूप में लद्दाख को सीधे केंद्र सरकार के अधीन रखा गया, जिससे स्थानीय लोगों के बीच अपनी जमीन और संस्कृति को लेकर चिंताएं बढ़ गईं.
लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस ने लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के साथ-साथ इसे छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग उठाई. इसी सूची के तहत पूर्वोत्तर के जनजातीय क्षेत्रों को भूमि और संसाधनों पर नियंत्रण हासिल है. सोनम वांगचुक लद्दाख का प्रमुख चेहरा होने के नाते इस आंदोलन का भी चेहरा बन गए. उनका साफ कहना है कि छठी अनुसूची में शामिल हुए बिना लद्दाख के प्राकृतिक संसाधनों का बाहरी कंपनियों के शोषण से बचना मुश्किल हो जाएगा और इससे स्थानीय संस्कृति खतरे में पड़ सकती है.
संस्कृति और संसाधन बचाने की लड़ाई
लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनने के एक साल बाद, यानी 2020 में स्थानीय लोगों का गुस्सा बढ़ा क्योंकि केंद्र सरकार ने उनकी मांगों पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया. सोनम वांगचुक ने शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांगों को उठाना शुरू किया. इस दौरान, उन्होंने शिक्षा और पर्यावरण संरक्षण के अपने अनुभव का इस्तेमाल करते हुए लद्दाख की संस्कृति को बचाने की जरूरत पर स्थानीय लोगों को एकजुट करना शुरू किया.
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इसके बाद साल 2022 में लद्दाख में पानी और संसाधनों के लिए बढ़ते दबाव को देखते हुए सोनम वांगचुक ने पानी का मुद्दा उठाया. उन्होंने बताया कि बगैर संवैधानिक सुरक्षा के लद्दाख की नाजुक स्थिति और यहां के जल संसाधन पर खतरा मंडरा रहा है. इस दौरान प्रदेश में कई जगहों पर प्रदर्शन हुए, लेकिन तब तक पड़े पैमाने पर आंदोलन की शुरुआत नहीं हुई थी.
घर में नजरबंद करने का आरोप
साल 2023 में सोनम वांगचुक ने दावा किया कि उन्हें लद्दाख में घर में नजरबंद किया गया है. उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए बताया कि प्रशासन ने उनसे एक बॉन्ड पर साइन करने को कहा, जिसमें उनपर कोई बयान न देने का दबाव डाला गया था. सोनम वांगचुक ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बताया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टैग करते हुए लद्दाख के लिए अपनी मांगों को दोहराया. इस साल, लेह और कारगिल में प्रदर्शन हुए, जिनमें स्थानीय संगठनों ने लद्दाख की मांगों का समर्थन किया. वांगचुक ने फिर से लद्दाख की सांस्कृतिक सुरक्षा का मुद्दा उठाना शुरू कर दिया.
साल 2024 से आंदोलन ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया. सोनम वांगचुक ने 6 मार्च से 21 दिन का अनशन शुरू किया, जिसमें उन्होंने सिर्फ नमक और पानी लिया. यह अनशन लेह के शहीद पार्क में शुरू हुआ, जहां सात पूर्व सैनिकों सहित कई लोग उनके साथ धरने पर बैठे. इलाके की दुर्गमता को देखते हुए इस सर्द जगह पर में यह अनशन मुश्किल चुनौती था. अनशन खत्म करने के बाद सोनम वांगचुक ने कहा कि यह आंदोलन का अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत है.
इसके बाद जुलाई 2024 में सोनम वांगचुक ने केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर लद्दाख के प्रतिनिधियों के साथ केंद्र बातचीत शुरू नहीं करता, तो वह स्वतंत्रता दिवस पर 28 दिन का अनशन शुरू करेंगे. उन्होंने करगिल विजय दिवस के दौरान पीएम मोदी को एक ज्ञापन भी सौंपा, जिसमें उनकी चार मांगों को दोहराया गया था.
दिल्ली दरबार तक की यात्रा
सितंबर 2024 में सोनम वांगचुक ने लेह से दिल्ली तक करीब एक हजार किलोमीटर की 'दिल्ली चलो पदयात्रा' शुरू की. इस यात्रा में 130 लोग शामिल हुए थे. इसका मकसद लद्दाख की मांगों की ओर केंद्र सरकार का ध्यान खींचना था. 30 सितंबर को दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पहुंचने पर दिल्ली पुलिस ने उन्हें और उनके समर्थकों को हिरासत में ले लिया. वांगचुक ने इसे 'अलोकतांत्रिक' बताया. दिल्ली में कुछ विपक्षी नेताओं ने उनकी मांग का समर्थन भी किया और उनसे मुलाकात की.
इसके बाद अक्टूबर 2024 में हिरासत से रिहा होने के बाद सोनम वांगचुक ने जंतर-मंतर पर अनशन की इजाजत मांगी, लेकिन पुलिस ने इसे भी नामंजूर कर दिया. फिर, उन्होंने दिल्ली के लद्दाख भवन में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू की. इस दौरान, स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) जैसे संगठनों ने उनका समर्थन किया.
दस सितंबर से शुरू हुआ था अनशन
वांगचुक ने 21 अक्टूबर 2024 को 16 दिन की भूख हड़ताल के बाद अनशन खत्म किया, जब गृह मंत्रालय ने दिसंबर में उनकी मांगों पर बातचीत का भरोसा दिया. उन्होंने अनशन को 'शांतिपूर्ण गांधीवादी विरोध' का हिस्सा बताया और कहा कि वे नेताओं से मुलाकात का इंतजार करेंगे. दिसंबर 2024 में वांगचुक ने खनौरी बॉर्डर पर किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल से मुलाकात की, जो MSP की मांग को लेकर अनशन पर थे. वांगचुक ने किसानों के साथ एकजुटता दिखाई और लद्दाख के लोगों की ओर से समर्थन जताया.
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इसके बाद दस सितंबर को सोनम वांगचुक ने लेह के शहीद पार्क में 35 दिन का अनशन शुरू किया. इस दौरान, देश भर से सामाजिक संगठनों से जुड़े लोग उनके समर्थन में लद्दाख पहुंचे. लद्दाख में बुधवार को आंदोलन हिंसक हो गया. प्रदर्शनकारियों, खासकर युवाओं ने लेह में बीजेपी कार्यालय और हिल काउंसिल पर पथराव किया और सीआरपीएफ की गाड़ी में आग लगा दी. इस हिंसा के लिए केंद्र सरकार ने वांगचुक को जिम्मेदार ठहराया. सरकार का आरोप है कि 'अरब स्प्रिंग' और Gen Z प्रोटेस्ट का जिक्र कर भीड़ को उकसाया गया. वांगचुक ने इन आरोपों से इनकार किया और कहा कि उन्होंने कभी Gen Z रिवॉल्यूशन जैसे शब्द का इस्तेमाल नहीं किया.
अनशन खत्म कर शांति की अपील
लेह में हुई हिंसा के बाद वांगचुक ने 15 दिन की भूख हड़ताल खत्म की और युवाओं से शांति बनाए रखने की अपील की. उन्होंने कहा कि यह लद्दाख के लिए दुखद दिन है. हम पिछले पांच साल से शांतिपूर्ण रास्ते पर थे, लेकिन हिंसा से हमारा मकसद कमजोर होगा. केंद्र सरकार ने 6 अक्टूबर की प्रस्तावित बैठक को 25-26 सितंबर में करने का फैसला किया है, ताकि LAB और KDA जैसे संगठनों के साथ बातचीत हो सके.
लेह में बुधवार को हुई हिंसा के बाद से पूरे लद्दाख में BNSS की धारा 163 लागू की गई, जिसके तहत पांच से ज्यादा लोगों के एक जगह जमा होने पर पाबंदी है. प्रदेशभर में इंटरनेट सर्विस को धीमा किया गया है, ताकि कोई प्रोपेगेंडा को आगे न बढ़ा सके. केंद्र सरकार ने कुछ कदम आगे बढ़ते हुए अनुसूचित जनजाति का आरक्षण 45% से बढ़ाकर 84% फीसदी कर दिया है. परिषदों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण देने का ऐलान किया गया है. बाजजूद इसके पूर्ण राज्य का दर्जा समेत अन्य प्रमुख मांगों पर अब तक कोई ठोस सहमति नहीं बन पाई है.
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