जब रूस ने लगा दी थी यहूदियों के देश छोड़ने पर पाबंदी, क्या अरब से मजबूत रिश्ते मॉस्को को भी खींच लेंगे मध्य पूर्व जंग में?

इजरायल और फिलिस्तीनी आतंकी गुट हमास के बीच जंग को एक साल हो चुके. इस बीच युद्ध की आग मिडिल ईस्ट के कई देशों तक फैल चुकी. इजरायल ने गाजा के अलावा दक्षिणी लेबनान पर भी रविवार रात भारी बमबारी की. ईरान से भी उसका तनाव बढ़ता जा रहा है. इस बीच कई देश युद्ध में अपने-अपने पाले चुके चुके. अब बारी रूस की है.

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रूस और ईरान के संबंध काफी अच्छे रहे. (Photo- Reuters) रूस और ईरान के संबंध काफी अच्छे रहे. (Photo- Reuters)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 07 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 11:24 AM IST

मिडिल ईस्ट में फिलहाल खुली जंग के हालात हैं. इजरायल का गाजा के साथ-साथ, लेबनान, ईरान और सीरिया से भी संघर्ष चल रहा है. इस बीच युद्ध में क्षेत्र से बाहर बसे देशों की भी गुपचुप या खुली एंट्री होने लगी. इजरायल को लेकर अमेरिका प्रोटेक्टिव है, तो सीधी लड़ाई लड़ रहे बाकी देश भी खास अकेले नहीं. ईरान से रूस के कूटनीतिक और व्यापारिक दोनों ही रिश्ते अच्छे रहे. ऐसे में मध्य पूर्व की लड़ाई अमेरिका बनाम रूस भी हो सकती है, भले ही परदे की ओट से सही. 

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रूस ने अपने यहां बसे यहूदियों का वीजा रिजेक्ट करना शुरू कर दिया 

यहूदी देश बनने के दौरान रूस (तब सोवियत) में लाखों यहूदी थे, जो आम रूसियों के साथ उसी तरह से रहा करते. लेकिन इजरायल के निर्माण के साथ ही कुछ बदला. दूसरे विश्व युद्ध और फिर शीत युद्ध से जूझते रूस को हर उस चीज, विचारधारा या लोगों पर शक होने लगा, जिसे अमेरिका सपोर्ट करता था. यहूदी उनमें से एक थे.

अपने शक से परेशान तत्कालीन रूस सरकार ने एक एक्सट्रीम कदम उठाया. उसने अपने यहां रहते यहूदियों के देश से बाहर, खासकर इजरायल या अमेरिका जाने पर बैन लगा दिया. उसे डर था कि बाहर जाकर वे रूस के खिलाफ काम करेंगे. हालात ये थे कि साठ और सत्तर के दशक में यहूदियों को इतने वीजा रिजेक्शन मिले कि रूसी भाषा में उन्हें रिफ्यूजनिक्स कहा जाने लगा था यानी जिसे बार-बार खारिज किया जाए. ,स्टालिन के दौर में उनसे नौकरियों में भी फर्क होता था.

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ये पाबंदी नब्बे के दशक तक चलती रही, जब तक कि सोवियत संघ के टुकड़े नहीं हो गए. नए रूस के पास और भी कई मुद्दे थे, लिहाजा यहूदियों से उसका ध्यान हट गया. लेकिन अरब देशों, खासकर ईरान से उसके संबंध गहरा रहे थे. 

हाल में भारी तनाव के बीच रूस के पीएम मिखाइल मिशुस्टिन ईरान पहुंचे और व्यापार पर चर्चा की. वहीं मॉस्को ने हिजबुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह की मौत पर भी नाराजगी दिखाई. इसी से एक झलक मिल जाती है कि दोनों के बीच कैसे रिश्ते हैं. इसकी तह में एक कारण एंटी-वेस्ट सोच है. दोनों ही देशों की विचारधारा अमेरिका से नफरत की रही. अमेरिका ने दोनों पर ही कई तरह की पाबंदियां भी लगा रखी हैं. इन बैन्स ने भी मॉस्को और तेहरान के बीच दोस्ती बढ़ाने का काम किया. दोनों के व्यापारिक रिश्ते तेजी से फले-फूले. 

जंग में भी रूस और ईरान पीछे के दरवाजे से एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं. जैसे मॉस्को ने यूक्रेन से लड़ाई में ईरानी की तकनीक का इस्तेमाल किया. थिंक टैंक कार्नेगी एंडोमेंट की रिपोर्ट ये कहती है. वहीं ईरान का एयर डिफेंस इजरायल की तुलना में कमजोर है तो इस कड़ी को पाटने का काम रूस कर रहा है.

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उसने तेहरान से मिलिट्री हेलीकॉप्टर और फाइटर जेट की डील की. फर्स्ट पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार, न केवल ईरान, बल्कि मॉस्को उन सारे देशों को वेपन दिलवा सकते हैं जो प्रो-ईरान, या यूं कहें कि एंटी-अमेरिका हैं. मसलन, रूस ने यमन में हूती विद्रोहियों को भी सपोर्ट किया. इसके अलावा मौजूदा रूसी सरकार ने कई बार फिलिस्तीन की आजादी की भी बात की. 

अब बात करें इजरायल और रूस की तो दोनों के रिश्ते में  हाल के दिनों में ज्यादा तनाव आया. इसके कई कारण हैं. 

- सीरिया में गृहयुद्ध के दौरान रूस ने राष्ट्रपति बशर अल-असद का समर्थन किया, जबकि इजराइल सीरिया में ईरान के बढ़ते असर से परेशान था. उसने वहां हिजबुल्लाह के ठिकानों पर कई हमले किए, जिसे लेकर रूस भी आक्रामक हो गया. 

- रूस और ईरान के बीच सैन्य सहयोग रहा. चूंकि इजरायल ईरान को अपने लिए सबसे बड़े खतरे की तरह देखता है, लिहाजा दोनों के रिश्ते असहज ही हुए. 

- रूस और यूक्रेन की लड़ाई में इजरायल ने हथियारों के मामले में यूक्रेन को सपोर्ट किया, इससे रूस भड़क उठा.

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