लगभग ढाई साल पहले जब रूस और यूक्रेन के बीच जंग शुरू हुई थी, तब भारत ने न तो किसी का साथ दिया और न ही किसी का विरोध. भारत शुरू से कहता रहा कि वो सिर्फ 'शांति' चाहता है. भारत के इस 'न्यूट्रल' रवैये की आलोचना भी हुई. लेकिन अब धीरे-धीरे ही सही, भारत खुद को 'पीसमेकर' के तौर पर स्थापित करने में काफी हद तक कामयाब होता दिख रहा है.
अमेरिका दौरे पर पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए कहा, 'पहले भारत सबसे समान दूरी की नीति पर चलता था. अब भारत सबसे समान नजदीकी पर चल रहा है. आज जब भारत वैश्विक मंच पर कुछ कहता है, तो दुनिया सुनती है. मैंने जब कहा- ये युद्ध का समय नहीं है, तो उसकी गंभीरता सबने समझी.'
पिछले महीने जब प्रधानमंत्री मोदी यूक्रेन के दौरे पर गए थे, तब उन्होंने राष्ट्रपति जेलेंस्की से भी मुलाकात की थी. इस दौरान रूस-यूक्रेन जंग से जुड़े एक सवाल पर उन्होंने कहा था, 'युद्ध में भारत का रुख कभी भी न्यूट्रल नहीं था, बल्कि वो हमेशा शांति का पक्षधर रहा है.'
इसी नीति के चलते भारत खुद को 'पीसमेकर' के तौर पर स्थापित करने में कामयाब रहा है. बीते 76 दिन में प्रधानमंत्री मोदी ने रूस-यूक्रेन जंग के तीन बड़े किरदार देशों के राष्ट्रपतियों से मुलाकात की है और एक संदेश दिया है. 8 जुलाई को पीएम मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, 23 अगस्त को यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की और 21 सितंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से मुलाकात की. ये दिखाता है कि भारत ने अपने 'न्यूट्रल' रूख के कारण न सिर्फ रूस और यूक्रेन बल्कि अमेरिका के साथ भी अपने संबंधों को बेहतर बनाने में कामयाबी हासिल की है.
भारत कैसे बन रहा पीसमेकर?
8 जुलाई को प्रधानमंत्री मोदी रूस की यात्रा पर गए थे. तब उन्होंने राष्ट्रपति पुतिन को गले लगाया था. मोदी का पुतिन को गले लगाना पश्चिमी देशों को पसंद नहीं आया.
तब अमेरिका ने भारत से ये कहते हुए एक पक्ष को चुनने के लिए कहा कि वो न्यूट्रल नहीं रह सकता.
रूस यात्रा पर तमाम हंगामे और आलोचनाओं को दरकिनार करते हुए पीएम मोदी ने कहा था, 'जब बम और गोलियां बरस रहीं हों तब शांति वार्ता सफल नहीं हो सकती.' उन्होंने ये भी कहा था कि संघर्ष का समाधान युद्ध नहीं हो सकता.
पुतिन को गले लगाने पर यूक्रेन ने भी पीएम मोदी की आलोचना की थी. लेकिन, रूस यात्रा के 46 दिन बाद पीएम मोदी यूक्रेन पहुंचे. राजधानी कीव में मोदी और जेलेंस्की यूक्रेन नेशनल म्यूजियम पहुंचे. यहां जंग में मारे गए बच्चों की तस्वीरें देखकर दोनों भावुक भी हो गए. इस दौरान पीएम मोदी ने गले लगाकर और कंधे पर हाथ रखकर जेलेंस्की को ढांढस बंधाने की कोशिश भी की.
जेलेंस्की से मोदी ने कहा, 'हम न्यूट्रल नहीं हैं. हमने शुरू से ही एक पक्ष को चुना है और वो है शांति. हम बुद्ध की भूमि से आए हैं, जहां युद्ध के लिए कोई जगह नहीं है.' उन्होंने जेलेंस्की को ये भी बताया कि शांति बहाल करने में भारत एक सक्रिय मध्यस्थ की भूमिका निभाने के लिए तैयार है. तब जेलेंस्की ने भी कहा था कि पुतिन की तुलना में भारत ज्यादा शांति चाहता है.
बाइडेन-पुतिन से फोन पर बात
यूक्रेन से लौटने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से फोन पर बात की. इस फोन कॉल में उन्होंने अपने यूक्रेन दौरे के बारे में बताया. इससे अटकलें बढ़ गई थीं कि भारत, जेलेंस्की और पुतिन को बातचीत के लिए एक टेबल पर लाने की कोशिश कर रहा है.
इसके बाद पीएम मोदी ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन से भी फोन पर बात की थी. इस बातचीत में मोदी ने पुतिन से रूस-यूक्रेन जंग के स्थायी और शांतिपूर्ण समाधान का जिक्र भी किया था.
लगभग एक हफ्ते बाद पुतिन ने भी भारत की मध्यस्थता को लेकर बड़ा बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि 'मुझे लगता है कि यूक्रेन के साथ शांति वार्ता में चीन, भारत और ब्राजील मध्यस्थ की भूमिका निभा सकते हैं.'
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क्यों भारत है स्ट्रॉन्ग पीसमेकर?
युद्ध और संघर्ष के समाधान में 'पीसमेकर' की भूमिका को लेकर भारत का लंबा इतिहास रहा है. आजादी के बाद एशियाई देशों की बीच अच्छे संबंध स्थापित करने के मकसद से भारत ने 1947 में एक कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया था.
कोरियाई युद्ध खत्म होने के बाद निष्पक्ष चुनाव के लिए 1948 में संयुक्त राष्ट्र ने एक अस्थाई आयोग का गठन किया था. इस आयोग की अगुवाई भारत ने की थी. इतना ही नहीं, इस जंग के बाद युद्धबंदियों की अदला-बदली के लिए भी जो आयोग बना था, भारत ही उसका अगुवा था.
पाकिस्तान और कनाडा में भारतीय उच्चायुक्त रहे अजय बिसारिया ने एक अंग्रेजी अखबार में लिखा था कि मोदी के अलावा कुछ और नेताओं में इजरायल-फिलिस्तीन और रूस-यूक्रेन के नेताओं को जोड़ने की क्षमता है.
वहीं, संयुक्त राष्ट्र में भारत की पूर्व राजदूत रुचिरा कंबोज ने कहा था कि 'वसुधैव कुटुंबकम' का मंत्र भारत को दुनिया में मध्यक्ष और समाधानकर्ता के रूप में रखता है. उन्होंने कहा था, भारत ने दिखाया है कि अलग-अलग विचारधारा और गवर्नेंस मॉडल वाले देशों के साथ भी मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखना मुमकिन है. भारत की यही क्षमता उसे अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों में एक संभावित मध्यस्थ के रूप में दिखाती है.
भारत की सबसे बड़ी कूटनीतिक कामयाबी मार्च 2018 में तब देखने को मिली थी, जब सऊदी अरब ने इजरायल के लिए एयरस्पेस को खोल दिया था. सऊदी ने 70 साल तक एयरस्पेस बंद रखा था. इस कारण नई दिल्ली से तेल अवीव (इजरायल की राजधानी) जाने के लिए भारतीय विमानों को घूमकर जाना पड़ता था.
हालांकि, एक मध्यस्थ के रूप में भारत के सामने कई चुनौतियां भी हैं. कई रिस्क फैक्टर भी हैं. लेकिन दुनिया अब भारत को नजरअंदाज करने का जोखिम नहीं उठा सकती.
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