भारत का नाम सुनते ही पाकिस्तानी आबादी और खासकर सत्ता को एड्रेनलिन रश हो जाता है. वो सारे दुखदर्द भूलकर इसी में जुट जाती है कि कैसे हमारे देश को धक्का पहुंचाया जाए. आजादी के बाद से ही ये देश कश्मीर में आतंकियों को प्लांट करता रहा. इस्लामाबाद के आतंकी मंसूबे भारत तक ही सीमित नहीं, वो इस्लामिक मुल्कों को भी परेशान करता रहा. इसके लिए उसकी जमीन पर कई आतंकी गुट तैयार हो चुके.
अक्सर हम सोचते हैं कि मुस्लिम देश आपस में भाईचारा रखते होंगे, लेकिन पाकिस्तान की सेना और उसकी खुफिया एजेंसी ISI ने मजहब को ही हथियार बना कर दूसरों के घर में आग लगाई. उसने कई इस्लामिक देशों तक आतंकी नेटवर्क फैला रखा है, जिसमें हमसाया अफगानिस्तान भी शामिल है.
तालिबान इसी का ब्रेन चाइल्ड
सत्तर के दशक के आखिर में जब सोवियत संघ (अब रूस) ने काबुल पर चढ़ाई की तो यूएस और सऊदी अरब ने पाकिस्तान का सहारा लिया. वहां की खुफिया एजेंसी ISI ने जिहादी लड़ाकों को ट्रेनिंग दी, हथियार दिए, और अफगानिस्तान भेजा ताकि वो रूसियों से लड़ सकें. इस जंग ने ISI के मुंह पर खून लगा दिया. रूस चला गया तब भी वो खेल को आगे बढ़ाता रहा.
यहीं तालिबान का बीज पड़ा, जिसने अफगानिस्तान को लोकतांत्रिक देश से कट्टरपंथी बना दिया. तालिबान सीधे-सीधे पाकिस्तान का क्रिएशन था. अब भले ही गुरु-चेले में दूरियां आ गई हों, लेकिन पाकिस्तान दूसरे तरीकों से अफगानिस्तान को परेशान कर रहा है.
शिया देश ईरान से लगा डर
ईरान एक शिया बहुल देश है जबकि पाकिस्तान में सुन्नी कट्टरपंथ रहा. पाकिस्तान को लगता है कि अगर ईरान ज्यादा मजबूत हो जाए तो सुन्नी कमजोर पड़ जाएंगे. इसलिए वो लगातार ही ईरान के बॉर्डर में अस्थिरता बढ़ाता रहा. ईरान से पाकिस्तानी खुन्नस के कुछ और कारण भी हैं. जैसे ये देश भारत और अफगानिस्तान से भी बनाए रखता है. ऐसे में उसने ईरान की सीमा पर ऐसे आतंकी गुटों को बढ़ावा दिया, जो शियाओं के खिलाफ हैं, जैसे जैश अल-अदल और सिपाह-ए-सहाबा. दोनों का ही फोकस ईरान में शिया सत्ता को हटाना है. इस्लामाबाद से इन्हें सपोर्ट मिलता रहा.
अपने डोनर सऊदी के साथ भी किया खेल
सात घर छोड़कर वार करना पाकिस्तान की पॉलिसी नहीं. वो सऊदी अरब के साथ भी धूर्तता करने की कोशिश करता रहा, जबकि ये देश उसे भरपूर मदद देता रहा. मजबूत इस्लामिक देश से पाक सीधे पंगा तो ले नहीं सकता, लिहाजा उसने सॉफ्ट वेपन इस्तेमाल किया. वहां अपनी विचारधारा के जरिए अस्थिरता लाने की कोशिश की.
असल में अफगानिस्तान में सोवियत जंग के दौरान सऊदी ने भी पाकिस्तान को मोहरा बनाया था. वो फंड करता था, और पाकिस्तान लड़ाके और प्रचारक तैयार करता. यहीं से पाकिस्तान के सुन्नी कट्टरपंथियों की सऊदी सिस्टम में घुसपैठ शुरू हुई. ISI से ट्रेंड ये लोग सऊदी की मस्जिदों और मदरसों में जाने लगे और शिया विरोधी, सूफी विरोधी बातें करने लगे.
इनकी वजह से सऊदी में शिया और सुन्नी के बीच टकराव दिखने लगा, जो पहले नहीं था. यहां तक कि ईस्टर्न हिस्सों में कई बार तनाव हुआ. हालात इतने बिगड़े कि सऊदी का अपना ही हथियार उनपर वार करने लगा. तब साल 2019 में उसने पाकिस्तान को चेताया कि अगर उसने मदरसों और प्रचारकों पर लगाम नहीं कसी तो वो फंडिंग रोक देगा. मोहम्मद बिन सलमान की लीडरशिप में सऊदी खुद को ज्यादा उदार दिखाने की कोशिश में है, लिहाजा पाकिस्तानी धर्मगुरुओं की एंट्री पर भी काफी पाबंदियां हैं.
अब बात करते हैं यमन की
साल 2015 में इस देश में सिविल वॉर छिड़ी, तो सऊदी अरब ने हस्तक्षेप किया. उसका मकसद था कि यमन में जो हूथी गुट है, जो ईरान से जुड़े हैं, उन्हें सत्ता से दूर रखा जाए. सऊदी को लगता था कि अगर हूथी आ गए तो यमन ईरान के हाथ में चला जाएगा, क्योंकि दोनों ही शिया-बहुल हैं. सऊदी खुद सुन्नी मुल्क रहा. उसने यमन में हूथियों को रोकने के लिए बमबारी शुरू कर दी.
यहीं से पाकिस्तान की एंट्री होती है. सऊदी ने पाकिस्तान सेना की मदद मांगी. उसे यकीन था कि उसी की फंडिंग पर रहता देश इससे मना नहीं करेगा, लेकिन उसने मना कर दिया. लेकिन ये इनकार ऊपरी था. परदे के पीछे अलग खेल चलने लगा. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी समेत आर्मी के लोगों ने चुपचाप सऊदी पहुंच यमनी लड़ाकों को ट्रेनिंग दी. यानी पाकिस्तान ने सऊदी का जंग में सीधा साथ तो नहीं दिया लेकिन पीछे से वो सपोर्ट करता रहा. नतीजा ये हुआ कि यमन की लड़ाई और उलझ गई. शिया और सुन्नी समुदाय के आम लोग भी आपस में उलझने लगे और पूरा देश तबाह हो गया.
कुल मिलाकर, पाकिस्तान ने मजहब के नाम पर न सिर्फ भारत, बल्कि अफगानिस्तान, ईरान, सऊदी अरब और यमन तक अपने प्रॉक्सी आतंकी फैला दिए. लेकिन पाकिस्तान की खुद की हालत खस्ता है. ऐसे में दूसरे देशों में उपद्रव मचाने के लिए उसके पास पैसे कहां से आ रहे हैं?
ये हो सकते हैं फंडिंग के कुछ स्त्रोत
सरकार हर साल आर्मी के अलावा ISI को खर्च के लिए फंड देती है. इसका एक हिस्सा इन्हीं सीक्रेट गतिविधियों में जाता है. इसी से आतंकी गुटों के ठिकाने चलते हैं और हथियार वगैरह खरीदे जाते हैं.
पाकिस्तान को धर्म के नाम पर अरब देशों से भी फंडिंग मिलती रही. सऊदी अरब, यूएई और कतर से दान के नाम पर जो पैसे आते हैं, वो चैरिटी में ही नहीं लगते, बल्कि एक हिस्सा लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और सिपाह-ए-सहाबा जैसे आतंकी गुटों के पास चला जाता है.
ड्रग्स और हथियारों की तस्करी भी पैसे कमाने का जरिया रही. बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा से ड्रग्स की तस्करी की जाती है, जो भारत के अलावा मिडिल ईस्ट और यूरोप तक भी पहुंचती रही. इस तस्करी का पैसा आतंकी गतिविधियों में खर्च होता रहा.
कई और देश भी हैं, जो पाकिस्तान में भारी इनवेस्ट कर चुके, जैसे चीन. बीजिंग ने सीधे-सीधे आतंक को भले ही फंडिंग न की हो, लेकिन उसके पैसे किसी न किसी तरह से पाकिस्तान की मिलिट्री और खुफिया सर्विस तक पहुंच रहे हैं, जो आतंकियों को पोसते रहे.
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