भारत एक बार फिर UN की सेंक्शन कमेटी में TRF (द रेजिस्टेंस फ्रंट) के खिलाफ सबूत देने जा रहा है. पहलगाम टैरर अटैक में इस गुट का सीधा हाथ था, जो कि पाकिस्तान से चलने वाले आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का ही हिस्सा है. टीआरएफ को लेकर देश पिछले दो सालों से यही अर्जी लगा रहा है, लेकिन हर बार चीन बीच में आ जाता है.
यहां कई सवाल उठते हैं
- UN अगर किसी संगठन को ग्लोबल आतंकी मान ले तो क्या हो सकता है.
- ये प्रोसेस क्या किसी अदालत की तरह है, जहां देश सबूत दे और उसे परखा जाए.
- भारत की ये बात बार-बार क्यों अटक जाती है.
- चीन को इस सारे मामले से क्या मतलब है, जो वो वीटो लगाता रहा.
कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को आतंकी हमले में 26 पर्यटकों की जान गई. घटना के तुरंत बाद टीआरएफ ने इसकी जिम्मेदारी ली. कश्मीर से काम करने वाले इस संगठन के तार पाकिस्तान में लश्कर से जुड़े हुए हैं. वही आतंकियों को ट्रेनिंग, हथियार और प्लानिंग करके देता है. आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर अटैक किया और उन्हें तबाह कर दिया, लेकिन अब भी बहुत से आतंकवादी बचे हुए हैं, जो आगे खतरा हो सकते हैं. यही वजह है कि देश अब यूएन की 1267 सेंक्शन समेट के सामने टीआरएफ को टैरर गुट घोषित करने पर काम कर रहा है.
क्या है यूएन की यह कमेटी
यह यूएनएससी की एक खास ब्रांच है, जो उन लोगों और संगठनों पर निगरानी रखती है जो अल-कायदा, लश्कर-ए-तैयबा, आईएसआईएस या उनसे जुड़े हुए आतंकी नेटवर्क से जुड़े हैं. इसका काम आतंकवाद को रोकना है. नब्बे के दशक के आखिर में यूएनएससी ने एक रिजॉल्यूशन पास किया था, जिसका नंबर 1267 था. इसी के साथ कमेटी का नाम ही इस नंबर से जुड़ गया.
किस तरह काम करती है कमेटी
अगर कोई देश किसी खास संगठन को ग्लोबल टैरर गुट घोषित करना चाहे तो वो इस कमेटी के सामने ये प्रस्ताव रखता है. साथ ही सबूत भी देने होते हैं. सुरक्षा परिषद के 15 सदस्य सबूतों और दस्तावेजों की जांच करते हैं, डॉट्स जोड़ते हैं और फिर तय करते हैं कि क्या किया जाए.
बहस कौन करता है
बंद कमरे में मीटिंग होती है, जिसमें भारत या अपील करने वाले देश की तरफ से विदेश मंत्रालय और खुफिया एजेंसियां शामिल होती हैं. इसके अलावा यूएनएससी के सदस्य देश होते हैं, जो इसे सुनते और अपनी राय देते हैं. लेकिन पांच स्थाई सदस्यों- अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन के पास वीटो जैसी ताकत है. ये असल वीटो नहीं लेकिन होल्ड करने की पावर है. पांचों में से कोई भी देश होल्ड लगा दे तो मामला अटक जाता है.
भारत अब तक कई बार न केवल टीआरएफ के लिए, बल्कि कई और संगठनों और लोगों के लिए कमेटी के सामने सिफारिश रख चुका. लेकिन चीन हर बार अड़ंगा लगा देता है. वो इसपर सीधे वीटो नहीं करता, बल्कि टेक्निकल होल्ड लगाता है, यानी अस्थाई रोक. फिर उस होल्ड को बढ़ाता रहता है जब तक कि प्रस्ताव ठंडे बस्ते में न चला जाए. चीन चूंकि यूएनएससी का स्थाई सदस्य है, लिहाजा बाकी देश इसमें खास कुछ नहीं कर पाते.
क्या भारत के पास कम सबूत हैं
जब कोई मामला इस कमेटी के पास जाता है तो बाकायदा पूरे सबूत दिए जाते हैं. इसमें आतंकियों की गतिविधियों, उनके आने-जाने, उनके लिंक्स सबका जिक्र रहता है. वे कौन से हमलों को अंजाम दे चुके, ये भी बताया जाता है. लेकिन चीन कहता है कि ये क्लासिफाइड इंटेलिजेंस है, यानी इसकी जानकारी केवल भारतीय खुफिया एजेंसियों की दी हुई है और ये बातें पब्लिक डोमेन में नहीं. लिहाजा, वो इन बातों को भारत का पूर्वाग्रह बताते हुए होल्ड लगा देता है. देश का केस कमजोर नहीं होता, लेकिन चीन का राजनीतिक एजेंडा ज्यादा ताकतवर बैठ जाता है.
पाकिस्तान के आतंकी गुटों से क्या वास्ता
चीन अब तक हाफिज सईद, रऊफ असगर जैसे आतंकियों समेत कई संगठनों पर भी ग्लोबल आतंकी का ठप्पा लगने से बचाया. बीजिंग हर बार स्टैंडर्ड बहाने करता रहा, जैसे सबूत कम हैं, जांच के लिए और वक्त चाहिए या फिर तकनीकी कमी है. कई बार उसने भारतीय कार्रवाई को राजनीतिक एजेंडा भी कह दिया. हालांकि वजह कुछ और ही है. चीन दरअसल पाकिस्तान का ऑल वेदर फ्रेंड हैं. उसने इस्लामाबाद में भारी इनवेस्टमेंट कर रखा है. अगर वहां के संगठन और लोग आतंकी कहलाने लगे तो प्रोजेक्ट पर असर पड़ेगा और चीनी इरादे कमजोर पड़ जाएंगे. दूसरा, बीजिंग भारत पर नजर रखना चाहता है, और पाकिस्तान इसमें उसकी मदद करता है. ये दोनों के लिए ही विन-विन स्थिति रही.
अगर कोई गुट ग्लोबल आतंकी घोषित हो जाए तो क्या बदलेगा
- उसकी सारी प्रॉपर्टी जब्त कर ली जाती है.
- वो दुनिया के किसी भी देश की यात्रा नहीं कर सकता.
- उसे कोई भी देश हथियार नहीं बेच सकता.
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