राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत दौरे पर आ रहे हैं. इस दौरान दोनों देशों में कई बड़े मुद्दों पर बात होगी. रूस और भारत पुराने मित्र हैं, जो अक्सर ही एक-दूसरे का हाथ थामते दिखे. यहां तक कि भारत की आजादी के बाद जब गोवा को पुर्तगालियों से स्वतंत्र करने की कोशिश हो रही थी, तब भी मॉस्को ने दिल्ली को सहयोग दिया था. आखिरकार दिसंबर 1961 को गोवा को आजादी मिल सकी.
15वीं सदी के आखिर में यूरोप मसालों का स्वाद चख चुका था और जानता था कि भारत इसका गढ़ है. जमीन से होते हुए रास्ते लंबे, महंगे और खतरों से भरे थे. तभी पुर्तगालियों ने तय किया कि समुद्री रास्ते से भारत पहुंचा जाए. एक नौसैनिक और यात्री वास्को-डी-गामा इस मिशन पर निकला. वह अफ्रीका से होते हुए महीनों बाद भारत पहुंच सका.
इसके बाद यूरोप से एशिया तक सीधा समुद्री रास्ता खुल गया. कुछ ही समय बाद पुर्तगाल के सैन्य कमांडर अफोंसो द अल्बुकर्क ने गोवा पर कब्जा कर लिया. यह भारत में पुर्तगाल का पहला ठिकाना बना. गोवा के अलावा उनके पास दमन, दादर, नगर हवेली और दीव भी थे. यानी लंबा-चौड़ा एरिया.
लंबे समय तक रहते-रहते क्रॉस मैरिज भी होने लगी. सैनिक भारत में ही बस गए और स्थानीय लोगों से शादी करने लगे. धीरे-धीरे गोवा में एक बड़ी यूरो-एशियाई आबादी बन गई. यहां दौलत और एक्सपोजर दोनों था. बाद में इस हिस्से में डच भी आए और पुर्तगालियों का दबदबा काफी कम हो गया. 18वीं सदी के मध्य में यहां कुछ हजार ही लोग बाकी थे और इसकी पूछ-परख भी जा चुकी थी.
आजादी के बाद ब्रिटिश जैसे ही भारत से गए, फ्रेंच भी अपना कब्जा छोड़कर जाने लगे. लेकिन पुर्तगालियों ने गोवा से हटने से साफ मना कर दिया. उनका तर्क था कि इससे गोवा के कैथोलिक असुरक्षित हो जाएंगे. जबकि सच ये था कि गोवा में बड़ी आबादी हिंदू थी, साथ ही पूरे देश में लाखों कैथोलिक शांति से रह रहे थे. गोवा के लोग भारत में मिलना चाहते थे, लेकिन पुर्तगाली उन्हें दबा रहे थे.
साल 1947 में ही पुर्तगाल ने NATO जॉइन कर दिया. दिल्ली कूटनीतिक दबाव बनाए हुए थी, लेकिन सफलता नहीं मिल पा रही थी. आजादी के 10 साल बीतने के बाद भी स्थिति ये थी कि गोवा छोड़ने की मांग सुनते ही पुर्तगाली आक्रामक हो जाते. इसमें दर्जनभर से ज्यादा भारतीयों की मौत के बाद तत्कालीन सरकार ने पुर्तगाल पर आर्थिक पाबंदियां लगी दीं. इधर पुर्तगाल NATO देशों से मदद मांगने लगा कि वो भारत में उसे बनाए रखें.
साठ के दशक में UN ने भी कोशिश की कि पुर्तगाल भारत से हट जाए लेकिन उसने इनकार कर दिया. इसके बाद से भारतीय और पुर्तगाली सैनिकों के बीच संघर्ष होने लगा. इस दौरान कथित तौर पर मछुआरों पर भी गोली चलाई गई. बात इतनी बढ़ी कि आखिरकार भारत की सहनशीलता खत्म हो गई.
भारतीय सेना ने 18 और 19 दिसंबर 1961 को ऑपरेशन विजय के तहत गोवा, दमन और दीव में कदम रखा.
पुर्तगाली सैनिक ज्यादा लंबा टिक नहीं पाए और आत्मसमर्पण कर दिया. हालांकि गोवा में अपने को बचाने की आखिरी कोशिश करते हुए वे यूएन तक चले गए थे. यहीं आया रूस का रोल. दरअसल गोवा की आजादी के लिए भारत की कार्रवाई पश्चिमी देशों को पसंद नहीं आई. कई देश, जिनमें अमेरिका से लेकर ब्रिटेन और कनाडा तक शामिल थे, भारत की आलोचना करने लगे. वे अहिंसा के हवाले तक देने लगे.
अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने पुर्तगाल को सपोर्ट करते हुए गोवा से भारतीय सैनिकों को हटाने की मांग तक कर डाली. रूस तब USSR था. उसने संयुक्त राष्ट्र में वीटो पावर का इस्तेमाल किया और साफ कर दिया कि भारत की कार्रवाई बिल्कुल ठीक है. रूस ने यह भी कहा कि गोवा, भारत से भौगोलिक के साथ-साथ सांस्कृतिक और ऐतिहासिक तौर पर भी जुड़ा रहा और जुड़ा रहेगा.
कुल मिलाकर, रूस के वीटो ने गोवा को भारत से जोड़ दिया. 31 दिसंबर 1974 को भारत ने पुर्तगाल के साथ एक संधि पर साइन करके गोवा को अपने साथ शामिल कर लिया.
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