हम भी PAK के सताए हुए, भारत के खिलाफ ISI से कभी हाथ नहीं मिलाया, 'धुरंधर' पर बलूचिस्तान क्यों नाराज?

धुरंधर फिल्म की वाहवाही के बीच बलूचिस्तान से अलग ही प्रतिक्रिया आ रही है. पाकिस्तान से अलगाव की मांग कर रहा ये हिस्सा बलूच लोगों से बना है, जिनपर फिल्म में नकारात्मक टिप्पणी है. इसे देखने के बाद बलूच राष्ट्रवादी मीर यार ने कहा कि बलूचिस्तान ने कभी भी भारत विरोधियों का साथ नहीं दिया, इसके बाद भी उन्हें गलत ढंग से दिखाया गया.

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पाकिस्तान में विलय के बाद भी बलूचिस्तान खुद को अलग देश मानता रहा. (Photo- AFP) पाकिस्तान में विलय के बाद भी बलूचिस्तान खुद को अलग देश मानता रहा. (Photo- AFP)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 09 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:25 PM IST

फिल्म धुरंधर आते ही विवादों में घिर गई. पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद के इर्दगिर्द घूमती मूवी ने बलूचिस्तान के लोगों को नाराज कर दिया है. फिल्म में बलूचों को आतंकवादियों का साथ देता दिखाया गया, जबकि असल में वे खुद पाकिस्तान से त्रस्त हैं और उसके खिलाफ बगावत किए हुए हैं. बलूच कार्यकर्ताओं का यह भी कहना है कि वे कभी भारत के खिलाफ नहीं गए, और न ही 26/11 मुंबई आतंकी हमले का जश्न मनाया. 

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क्या है मामला

हाल ही में बलूच एक्टिविस्ट मीर यार ने फिल्म का एक क्लिप शेयर किया, जिसमें 26/11 मुंबई हमलों का सीन था. क्लिप में बलूच किरदारों को अटैक पर खुश होता दिखाया गया. इस पर एक्टिविस्ट ने कहा कि ने कहा कि बलूचिस्तान का प्रतिनिधित्व कभी भी गैंगस्टरों ने नहीं किया. जो खुद पाकिस्तानी आतंक से परेशान हैं, वे भारत पर 26/11 जैसे हमले का जश्न कभी नहीं मना सकते. इसके अलावा बलूच धर्म के नाम पर भी नहीं लड़ते और न ही धार्मिक नारे लगाते हैं. 

नाराजगी जताते हुए मीर यार ने यहां तक कहा कि फिल्म ने बलूचिस्तान के लोगों के साथ नाइंसाफी कर डाली. यहां तक कि उनकी वफादारी तक को घेरे में ला दिया. जैसे- फिल्म में एक डायलॉग है- मगरमच्छ पर भरोसा कर सकते हैं, बलूच पर नहीं. इसपर सख्त ऐतराज जताते हुए बलूच कह रहे हैं कि उनके शब्दकोश में धोखा देने जैसा शब्द नहीं. ऐसी बातें उन बलूचों के लिए कही जा रही हैं, जो एक गिलास पानी के बदले भी एक सदी तक वफा निभाते हैं. 

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बलूच लीडर धुरंधर फिल्म की टीम पर आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने बलूचिस्तान और वहां के कल्चर पर पूरी रिसर्च नहीं की, वरना वे ऐसी बातें नहीं लाते. 

पहले भी बलूच कर चुके भारत का समर्थन

फिल्म पर न भी जाएं तो इस बात में कोई शक नहीं कि बलूच सताए हुए हैं और कई दशक से पाकिस्तान से आजादी चाहते रहे. कुछ ही महीनों पहले जब भारत ने ऑपरेशन सिंदूर चलाते हुए पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को ध्वस्त कर दिया, तब भी बलूच हिस्से से जश्न की वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल थी. यहां तक कि बलूच लीडर भारत से मदद भी मांग रहे थे कि जैसे दिल्ली ने ढाका की सहायता की, उसी तरह उनके लिए भी आगे आएं.

लेकिन क्या वजह है जो पाकिस्तान में रहते हुए भी खुद को पाकिस्तान से अलग मानते रहे बलूच?

ये समझने के लिए एक बार बलूचिस्तान का भूगोल समझते चलें. यह पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, जो उसके कुल क्षेत्रफल का 40 फीसदी से भी ज्यादा कवर करता है. हालांकि यहां आबादी बेहद कम है. गैस, खनिज, तांबा, सोना और बंदरगाह, ये सब बलूचिस्तान के पास है, लेकिन स्थानीय लोगों को न रोजगार मिलता है, न बुनियादी जरूरतें ही पूरी होती हैं. उल्टा उनकी जगह पाकिस्तान के दूसरे प्रांतों और यहां तक कि चीन से लोग लाए जा रहे हैं, जो यहां के रिर्सोस का इस्तेमाल कर रहे हैं. 

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जबरन मिलाने से शुरू हुई नाराजगी

विद्रोह की कहानी वैसे साल 1948 में बलूचिस्तान के जबरन विलय से शुरू हुई थी. बलूच नेताओं का दावा है कि पाकिस्तान ने सेना भेजकर उनके क्षेत्र को बिना जनमत और बिना सहमति के अपने में शामिल कर लिया था.

दरअसल ब्रिटिश काल के दौरान बलूच रिसायत का बड़ा भाग, जिसे खान ऑफ कलात कहा जाता था. अर्ध-स्वायत्त हुआ करता था. यानी ब्रिटिशर्स का उनपर पूरा कंट्रोल नहीं था. आजादी के बाद उन्होंने खुद को स्वतंत्र देश घोषित कर दिया. लेकिन इसके कुछ बाद ही पाकिस्तान ने धोखे से एसेशन पर साइन करवा लिया और उन्हें अपने साथ शामिल कर लिया. कम से कम बलूच इतिहासकारों और नेताओं का यही कहना है. 

बलूचों की अपनी भाषा, कल्चर और रीत-रिवाज रहे. विलय के बाद पाकिस्तान ने उन्हें अपनाया कम, बल्कि उनपर अपनी संस्कृति और भाषा ज्यादा थोपने लगा. यहां तक कि विरोध करते मानवाधिकार कार्यकर्ता या तो गायब हो गए या लंबे समय के लिए जेल में डाल दिए गए. फर्जी एनकाउंटर यहां आम हैं. बहुत से परिवारों की बेटियां गायब हो चुकीं. 

पाकिस्तान में मिलने के बाद भी कड़वाहट कम हो जाती अगर ये बातें न होतीं. नतीजा ये हुआ कि बलूच खुलकर बागी हो चुके. वे सड़कों पर प्रदर्शन तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि हिंसक हमले भी कर रहे हैं ताकि पाकिस्तान उन्हें आजादी दे दे. 

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जहां तक फिल्म में बलूचों के निगेटिव किरदारों की बात है तो बलूच कार्यकर्ताओं का गुस्सा ठीक ही है. बलूच राष्ट्रवादी खुद ही पाकिस्तान प्रायोजित आतंक का विरोध करते रहे. 

बलूच नेता बार-बार यह साफ कह चुके कि 

- धार्मिक कट्टरपंथ से उनका कोई नाता नहीं.

- वे धार्मिक नारों की आड़ में हिंसा नहीं फैलाते.

- उन्होंने कभी 26/11 जैसे आतंकी हमलों का समर्थन नहीं किया.

- बलूच आतंकवाद को बढ़ावा नहीं देते. 

अब आते हैं उस हिस्से पर, जहां बलूचों को मगरमच्छ से भी कम भरोसेमंद बताया गया. बलूच इसपर भी नाराज हैं. बलूच संस्कृति में कहावत है कि अगर आपने किसी के घर एक गिलास पानी भी पिया तो आप 100 सालों के लिए यानी तमाम उम्र के लिए उसके कर्जदार हो जाते हैं. बलूचों की संस्कृति को बताने वाली वेबसाइट ब्रांजबलूच डॉट कॉम में इसका जिक्र भी है.

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