डोनाल्ड ट्रंप ने नोबेल से ठीक पहले दावा किया था कि उनकी वजह से एक-दो नहीं, बल्कि आठ युद्ध रुक चुके. थाईलैंड और कंबोडिया की लड़ाई भी इनमें से एक थी. दोनों में सीजफायर हुआ तो लेकिन अब ये टूट चुका है. दोतरफा हमले जारी हैं, जिसमें 12 से ज्यादा जानें जा चुकीं. अकेले दक्षिण-पूर्व एशिया का ये हाल नहीं. कई और देशों में भी 'ट्रंप-ब्रोकर्ड' शांति उतनी टिकाऊ नहीं दिख रही.
क्या है एशियाई देशों में विवाद
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच मई में भी पांच दिन तक लड़ाई चली थी, जिसमें 50 से ज्यादा मौतें हुई थीं और तीन लाख से ज्यादा नागरिक विस्थापित हो गए थे. अक्टूबर में दोनों देशों के बीच अमेरिकी लीडर की मौजूदगी में सीजफायर हुए. इनके बीच काफी समय से दो प्राचीन मंदिरों को लेकर विवाद है. दरअसल ये मंदिर दोनों देशों की सीमा के करीब स्थित हैं, और दोनों इनपर अपना दावा करते रहे. हाल में भड़की हिंसा में कम से कम 12 मौतें हो चुकीं और हजारों लोग पलायन कर चुके हैं.
ट्रंप का क्या है कहना
पिछले साल की शुरुआत में ट्रंप वाइट हाउस पहुंचे थे. इसके बाद से उनका सीधा टारगेट था नोबेल शांति पुरस्कार. संयोग से ये ऐसा वक्त था, जिसमें कई देश आपस में लड़-भिड़ रहे थे. लोहा गर्म था. ट्रंप ने काम शुरू कर दिया. वे एक-एक करके युद्धरत देशों से बात करने लगे. ज्यादातर जगहों पर सीजफायर के बाद उन्होंने दावा किया कि उन्होंने अपने देश के साथ व्यापार घटाने या बढ़ाने को हथियार की तरह इस्तेमाल किया, जिससे देशों ने उनकी बात मान ली.
किन आठ लड़ाइयों को रोकने का क्लेम
- थाई-कंबोडिया सीमा संघर्ष
- आर्मेनिया और अजरबैजान युद्ध
- रवांडा और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो
- इजरायल और ईरान सीजफायर
- इजरायल और हमास में शांति
- इजिप्ट और इथियोपिया सीजफायर
- सर्बिया और कोसोवो के बीच शांति
- भारत और पाकिस्तान के बीच भी मध्यस्थता का दावा ट्रंप ने किया, जिससे भारत ने साफ इनकार कर दिया.
इस कथित शांति के बदले ट्रंप ने जोरशोर से दावा किया कि उन्हें नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए. ये बात अलग है कि पुरस्कार उन्हें नहीं मिल सका. ये भी खुसपुसाहट थी कि ट्रंप की डील्स स्थायी नहीं हैं. हो सकता है कि देश कुछ वक्त बाद फिर संघर्ष करने लगें. यही हुआ. थाई-कंबोडिया मामला सामने है.
गाजा पट्टी अब भी अशांत
इजरायल और हमास में भी सीजफायर तो हुआ, लेकिन शांति नहीं आई. थोड़े ही समय बाद तेल अवीव और आतंकी संगठन हमास में लड़ाई होने लगी. ये लड़ाई पहले जितनी हिंसक नहीं, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता. हां ये जरूर है कि हवाई हमले रुक चुके हैं. ये भी हो सकता है कि चूंकि ट्रंप ने खुद समझौता कराया, लिहाजा दोनों ही पक्ष संघर्ष को जाहिर करने से बच रहे हों. इजरायल अमेरिका का अपने अस्तित्व में आने के बाद से फेवरेट बना हुआ है. वहीं हमास को रुकने के लिए ट्रंप ने कई प्रस्ताव दिए. कुल मिलाकर गाजा पट्टी में अब भी रीकंस्ट्रक्शन शुरू नहीं हो सका.
इस युद्ध में खुद थी अमेरिकी सक्रियता
ईरान और इजरायल में संघर्ष जून में रुक गया. ट्रंप इसकी मध्यस्थता का क्रेडिट तो ले रहे थे, लेकिन यह डील काफी विवादित रही. असल में ट्रंप खुद बैकडोर से इस युद्ध का हिस्सा बन चुके थे. उनके आदेश पर मिलिट्री ने ईरान की तीन न्यूक्लियर साइट्स पर हमला किया. बदले में ईरान भी अमेरिका पर आक्रामक हो गया था. यह सीजफायर से ठीक पहले की बात है.
सर्बिया और कोसोवो के बीच लगभग ढाई दशक से तनाव चला आ रहा है. कोसोवो ने साल 2008 में सर्बिया से आजादी की घोषणा की थी लेकिन सर्बिया इसे मान्यता नहीं देता है. दोनों के बीच भारी संघर्ष हुआ. आखिरकार नाटो और यूरोपीय संघ के हार मानने के बाद ट्रंप ने मध्यस्थता की. यह उनके पहले कार्यकाल की बात है. इसके बाद से बीते पांच सालों से दोनों के बीच करीब-करीब शांति है.
रवांडा और डीआरसी में भी सब ठीक नहीं
रवांडा और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो ने जून में पीस डील पर दस्तखत किए थे. हालांकि ये सीजफायर काफी कमजोर लग रहा है. मंगलवार को कांगो ने आरोप लगाया कि रवांडा शांति भंग कर रहा है और हमले कर रहा है.
अब अगर भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर की बात करें तो यह सबसे विवादित मामला रहा.
कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी हमले के बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर चलाया. इसमें छांट-छांटकर पाक स्थित टैरर कैंप खत्म किए गए. इसी दौरान पाकिस्तान भी फेस सेविंग के लिए छुटपुट हमले करने लगा, हालांकि उसकी हालत खराब हो चुकी थी. खबरें यहां तक थीं कि उसके परमाणु ठिकाने तक सुरक्षित नहीं. ऐसे में सीन में यूएस की एंट्री हुई और रातोरात शांति आ गई. भारत लगातार इनकार करता रहा कि सीजफायर के लिए उसने ट्रंप की मध्यस्थता स्वीकारी. पाकिस्तान शुरू में अमेरिकी राग गाते दिखा, लेकिन बीच में उसकी सैन्य लीडरशिप ने भी कह दिया था कि भारत ने कभी तीसरे देश का दखल स्वीकार नहीं किया.
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