करवाचौथ, कमिटमेंट और क्लेश... जब फिल्मों में ट्विस्ट लेकर आया पति-पत्नी का त्यौहार

करवाचौथ वैसे तो पति-पत्नी के प्रेम और कमिटमेंट का त्यौहार है. मगर इस त्यौहार की पवित्रता का असर बहुत ड्रामेटिक असर पैदा करने का दम रखता है, जिसे फिल्ममेकर्स ने खूब इस्तेमाल किया है. चलिए बताते हैं वो करवाचौथ के वो सीन्स जिनसे फिल्म का माहौल बदल गया.

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जब करवाचौथ के ट्विस्ट ने बदल दी फिल्म की कहानी (Photo: ITGD) जब करवाचौथ के ट्विस्ट ने बदल दी फिल्म की कहानी (Photo: ITGD)

सुबोध मिश्रा

  • नई दिल्ली ,
  • 10 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 3:44 PM IST

‘क्या एक मर्द के लिए दो औरतें करवाचौथ का व्रत रख सकती हैं?’ कोई मर्द कितना भी बड़ा बाहुबली योद्धा हो, मगर करवाचौथ के दिन अपनी पत्नी से ये सवाल नहीं पूछ सकता. पति-पत्नी के रिश्ते का अल्टिमेट त्यौहार माने गए करवाचौथ की पवित्रता ही ऐसी है. 

विद्वान मानते हैं कि यदि पर्याप्त ड्रामेटिक पॉज के साथ करवाचौथ के दिन ये सवाल पत्नी के सामने परोस दिया जाए, तो भले आपकी जोड़ी सत्यवान-सावित्री वाली हो, पर्दाफाड़ ड्रामा होना तय है! 

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करवाचौथ के त्यौहार का ये इफेक्ट कई बार फिल्मों के काम आया है. एक ऐसा ड्रामेटिक माहौल बनाने के लिए जो दर्शकों को उनकी सीटों से चिपकाए रखे. और इस ड्रामा को फिल्ममेकर्स ने कहानी को अलग-अलग रंग देने के लिए खूब आजमाया है…

किस्मत का खेल 
अब वापस उस सवाल पर चलते हैं जहां से कहानी शुरू हुई है— ‘क्या एक मर्द के लिए दो औरतें करवाचौथ का व्रत रख सकती हैं?’ राम कुमार (जितेंद्र) ने, ये सवाल अपनी पत्नी सीता का रोल कर रहीं मौसमी चैटर्जी से पूछा था. बात 1980 की है, फिल्म थी ‘मांग भरो सजना’. पहले तो उस भोली महिला ने इसे पति का मजाक समझकर टाल दिया. लेकिन फिर उसे पता चलता है कि उसकी सहेली बन चुकी राधा (रेखा), उसके पति का पुराना प्रेम है. 

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बड़े पर्दे पर करवाचौथ पहली बार दिखाने वाली फिल्म मानी जाती है 'मांग भरो सजना' (Photo: Screengrab- Youtube / Ladies Special)

किस्मत का खेल ऐसा था कि लोगों को लगा राधा एक बाढ़ में मर चुकी है. इसके बाद राम कुमार ने सीता से शादी की थी. मगर बाद में राधा लौट आती है, राम कुमार अब पशोपेश में है कि क्या करना है. सीन करवाचौथ का है और वो फैसला अपनी पत्नी सीता के हाथ में छोड़ देता है. 

डायरेक्टर टी. रामा राव ने अपनी फिल्म में करवाचौथ को ड्रामा में ऐसा पिरोया था कि ये फिल्म 1980 की सबसे बड़ी हिट्स में से एक थी. 'मांग भरो सजना' को फिल्म लवर्स उस फिल्म के तौर पर भी याद रखते हैं जिसमें शायद पहली बार करवाचौथ की पूजा बड़े पर्दे पर दिखाई गई थी.  

कमिटमेंट का एक वादा 
करवाचौथ का व्रत शादीशुदा महिलाओं के लिए है, ये सब जानते हैं. मगर 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' (1995) में काजोल-शाहरुख का करवाचौथ सीन इसलिए आइकॉनिक है क्योंकि ये एक अविवाहित प्रेमी जोड़े पर है. कुलजीत (परमीत सेठी) की मंगेतर बन चुकी सिमरन (काजोल) ने राज (शाहरुख) के लिए सीक्रेट तरीके से करवाचौथ का व्रत रखा है. ये बात किसी को पता ना चले इसके लिए वो बीमार पड़ने का नाटक भी करती है, ताकि चुपके से राज का चेहरा देखकर अपना व्रत खोल सके. उधर राज है, जिसने दुनिया से ही नहीं, खुद सिमरन से भी छुपाकर व्रत रखा है. 

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'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' ने करवाचौथ को और ज्यादा पॉपुलर कर दिया था (Photo: Facebook / YRF - Yash Raj Films)

इंडियन सिनेमा की इस आइकॉनिक लव स्टोरी में करवाचौथ का ये सीन दो लवर्स के कमिटमेंट का प्रतीक बन जाता है. यही वजह है कि इस फिल्म की देखादेखी कई यंग लवर्स ने करवाचौथ का व्रत रखना शुरू कर दिया. हालांकि, इस चक्कर में प्रेमिका का व्रत खुलवाने के लिए चुपके से पहुंचे कितने प्रेमियों के साथ किस-किस तरह के कांड हुए हैं, ये कहानी शायद ही कभी पर्दे पर आए! 

पति की बेवफाई 
'बीवी नंबर 1' में करवाचौथ पति की बेवफाई और धोखे का सबूत बनता है. करवाचौथ के मौके पर ही पूजा (करिश्मा कपूर) को पता चलता है कि उसका पति प्रेम (सलमान खान) उसे धोखा दे रहा है. वो प्रेम को रुपाली (सुष्मिता सेन) के साथ करवाचौथ मनाते देख लेती है. इस कहानी में करवाचौथ पर सिर्फ व्रत ही नहीं टूटता, पूजा का विश्वास भी टूट जाता है. 

'बीवी नंबर 1' की कॉमेडी में टेंशन का ट्विस्ट लाया था करवाचौथ (Photo: IMDB)

जुदाई का दर्द
'बागबान' (2003) में करवाचौथ का सीन भी बहुत आइकॉनिक है. बाकी फिल्मों की तरह यहां कोई यंग कपल नहीं है. नौकरी से रिटायर हो चुके अमिताभ बच्चन और उनकी पत्नी बनीं हेमा को उनके बच्चों ने अलग कर दिया है. हमेशा एक दूसरे के साथ रहे ये पति-पत्नी दूर रहकर भी करवाचौथ का व्रत करते हैं और फोन पर एक दूसरे का व्रत खुलवा रहे हैं. 

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'बागबान' के करवाचौथ सीन में था दूरी का दुख (Photo: Screengrab- Youtube / NH Studioz)

व्रत खोलने के लिए अमिताभ को खाने का कुछ नहीं दिखता, तो वो बर्तन खड़काने की आवाज से हेमा को यकीन दिलाने की कोशिश करते हैं कि वो कुछ खा रहे हैं. मगर हेमा उनका नाटक पकड़ लेती हैं और कहती हैं— 'आपको तो झूठ बोलना भी नहीं आता.' दोनों इस दूरी पर रो पड़ते हैं. ये सीन देख रहे दर्शकों के दिल पसीज जाते हैं. यहां करवाचौथ एक ट्रेजेडी की तरह फिल्म के ड्रामा को गहरा बनाता है. 

दो बीवियों के दो रंग 
अनिल कपूर, श्रीदेवी और उर्मिला मातोंडकर की फिल्म 'जुदाई' (1997) का प्लॉट आजकल मीम्स का मुद्दा खूब बनता है. 2 करोड़ रुपये के लिए एक पत्नी का अपने पति को बेच देना था तो बहुत दिलचस्प आईडिया. फिल्म के क्लाइमेक्स से पहले करवाचौथ का एक सीन बहुत दमदार है, जिसमें श्रीदेवी को एहसास होता है कि अपने सपने पूरे करने की शर्त पर उन्होंने कैसे अपने पति को गंवा दिया है. 

'जुदाई' का करवाचौथ सीन, स्क्रीन पर ड्रामा क्रिएट करने का बेस्ट उदाहरण है (Photo: Screengrab- Youtube / Ultra Movie Parlour)

उर्मिला मातोंडकर जिस तरह इस सीन में अनिल कपूर के माथे पर टीका लगाती हैं, वो फिल्मी ड्रामा को उंचाई पर ले जाने का एक बेहतरीन उदाहरण है. इसी सीन के बाद श्रीदेवी को ये एहसास होना शुरू होता है कि वो क्या खो रही हैं.

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धोखे का जख्म 
संदीप रेड्डी वांगा की 'एनिमल' (2023) की अल्फा-मेल वाले एंगल के लिए आलोचना खूब हुई. मगर इस फिल्म में भी करवाचौथ का सीन एक बेहतरीन ड्रामेटिक इफेक्ट लेकर आता है. अपने पापा के प्यार में कुछ भी और सबकुछ करते जा रहे रणवीर सिंह (रणबीर कपूर) को उसकी पत्नी गीतांजलि (रश्मिका मंदाना) करवाचौथ के मौके पर ही तमाचा मारती है. इसी मौके पर वो बताता है कि वो कुछ हफ्तों से वो जोया (तृप्ति डिमरी) के साथ सो रहा है. 

'एनिमल' का करवाचौथ सीन भी ड्रामेटिक मोमेंट की मिसाल है (Photo: Screengrab- Youtube / T-Series)

अबतक अपने पिता का बदला लेने के लिए जानवर बने फिर रहे रणबीर को करवाचौथ पर पहली बार अपनी बीवी का गुस्सा देखने को मिलता है. और इस सीन में पहली बार उसकी पत्नी उसके अल्फा-मेल आईडिया को चैलेन्ज करती है. 'एनिमल' के इस सीन का ड्रामेटिक इफेक्ट बहुत दमदार है. 

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