'रहमान डकैत की दी हुई मौत... बड़ी कसाईनुमा होती है!' अक्षय खन्ना के इस डायलॉग की तासीर, 'धुरंधर' का ट्रेलर देखने वालों की रीढ़ में फुरफुरी दौड़ा देने के लिए काफी थी. क्या बेहतरीन ठहराव, पोस्चर, आंखें और हैवानियत भरी मुस्कराहट... डायलॉग वाले सीन के ठीक बाद अक्षय का किरदार पत्थर से किसी का सर चूर-चूर करता नजर आता है. लेकिन उस वायलेंट सीन का असर भी, इस डायलॉग से कम ही था.
कुछ हफ्ते पहले फिल्म 'धुरंधर' का ट्रेलर आते ही बवाल काटने लगा था. चार मिनट लंबे इस ट्रेलर में फिल्म के हीरो रणवीर की बजाय, खलनायकों पर ज्यादा फोकस था. जिनमें अर्जुन रामपाल और संजय दत्त के साथ अक्षय खन्ना भी दिखे. अक्षय का किरदार उन बड़ी वजहों में से एक है, जिसके लिए जनता 'धुरंधर' का इंतजार टकटकी लगाए कर रही है.
अक्षय को इस भौकाली रोल में देखने का इंतजार करते लोग सोशल मीडिया पर माहौल बनाने लगे हैं. इस माहौलबाजी का एक हिस्सा ये बात भी है कि 'अक्षय बड़े अंडररेटेड एक्टर हैं'. लेकिन ये नई बात नहीं है, बल्कि जब भी अक्षय किसी नई फिल्म में नजर आते हैं, ये लाइन बड़े नेचुरल तरीके से लोगों की जुबान पर आ जाती है. और इस एक लाइन के साथ अक्सर लोगों में ये भाव भी दिखता है जैसे अक्षय को इंडस्ट्री से कम काम मिलता है. इंडस्ट्री में उन्हें साइडलाइन किया जाता है. मगर क्या सच में अक्षय इतने ज्यादा 'अंडररेटेड' एक्टर हैं कि उनकी पहचान और शानदार काम को इस एक शब्द में ही समेटकर देखा जाए?
करियर की शुरुआत में ही कहे गए 'अंडररेटेड'
अक्षय ने 1997 में फिल्म 'हिमालय पुत्र'से डेब्यू किया था. बॉक्स ऑफिस पर ये फिल्म कुछ खास कमाल नहीं कर सकी और रिव्यू भी मिलेजुले से थे. लेकिन इन रिव्यूज में अक्षय के काम की तारीफें जरूर थीं. 97' में ही 'बॉर्डर' आई और अक्षय का काम जनता और क्रिटिक्स के दिल में उतर गया. उन्हें बेस्ट डेब्यू का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला और 'बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर' कैटेगरी में नॉमिनेशन भी. इसके साथ जनता में पॉपुलैरिटी भी आई. बॉलीवुड के अपने पहले ही साल में अक्षय की दो और फिल्में भी आईं- मोहब्बत और डोली सजा के रखना. दोनों फ्लॉप ही साबित हुईं, पर अक्षय के काम को इनमें भी सराहा गया.
'आ अब लौट चलें', 'कुदरत' और 'लावारिस' जैसी फ्लॉप फिल्मों में भी उनका काम तारीफ पाता रहा. 'ताल' (1999) हिट हुई तो तारीफों के साथ पॉपुलैरिटी बढ़ी. 'दिल चाहता है' (2001) में तो उनका काम 'बेस्ट एक्टर' की फिल्मफेयर ट्रॉफी से नवाजा गया. अक्षय के करियर में हिट और फ्लॉप का ग्राफ लगातार ऊपर-नीचे डोलता रहा है. एक तरफ 'हमराज', 'हंगामा' हिट होतीं, तो दूसरी तरफ 'दीवानगी' और 'दीवार' फ्लॉप हो जातीं.
मगर एक चीज फिक्स रही कि उनके काम को तारीफ जरूर मिलेगी. वो भी सिर्फ क्रिटिक्स से नहीं, जनता से भी. इस सिलसिले की वजह से जनता में ये फीलिंग आने लगी कि अक्षय को वैसी लोकप्रियता नहीं मिलती जैसी बाकियों को मिलती है. इस परसेप्शन का असर ये हुआ कि डेब्यू के सिर्फ 7 सालों बाद ही, फिल्म 'हलचल' (2004) के एक रिव्यू में अक्षय खन्ना को 'बॉलीवुड का सबसे अंडररेटेड एक्टर' लिखा गया.
जबकि, अक्षय को तब लीड रोल भी खूब ऑफर होते थे. उनके खाते में हिट्स और फ्लॉप फिल्मों का बैलेंस भी बहुत खराब नहीं था. और दर्शकों में भी वो बहुत पॉपुलर थे. फिर भी डेब्यू के मात्र 7 सालों के अंदर ही उन्हें 'अंडररेटेड' कह दिए जाने की शायद एक ही वजह थी— वो खबरों में बहुत ज्यादा नहीं रहते थे. और उन्हें लोग रहस्यमयी भी मानते थे.
मजबूरी नहीं, मर्जी से चुनी स्टारडम से दूरी
अक्षय ने खुद अपने कई इंटरव्यूज में बताया है कि पहले तो वो बिलकुल भी मीडिया फ्रेंडली नहीं थे. फोटोशूट, प्रमोशनल कैम्पेन वगैरह में खर्च होना उन्हें कभी पसंद नहीं था. सिर्फ एक्टिंग पसंद थी और वो बतौर एक्टर काम करना ही जानते थे. आज भी उतना ही जानते हैं. स्टार बनना, स्टारडम चमकाना उन्हें ना कभी भाया, ना कभी उन्होंने ये सीखने की कोशिश की. ये अक्षय की अपनी चॉइस है. वो कई बार बोल चुके हैं कि उन्हें एक्टिंग से जितना प्रेम है, उतना ही अपने पर्सनल स्पेस से भी. अपनी निजी लाइफ को लेकर वो हमेशा बहुत चुप रहे.
उनके अफेयर्स की, उनकी लग्जरी गाड़ियों की चर्चा नहीं. उनकी घड़ियों के दाम पर खबरें नहीं, उनके सिक्स पैक की तस्वीरें नहीं. यहां तक कि उनका घर भी बांद्रा जैसे पॉश इलाके में नहीं है, जो बॉलीवुड का गढ़ है. वो रात-दिन भन्नाते शहर से एक घंटे दूर, अलीबाग के एक फार्महाउस में रहते हैं. उस घर में जहां वो बचपन से बड़े हुए हैं. शोर-शराबे और चमक-दमक में घिरे रहने की बजाय, मीटिंग्स वगैरह के लिए ट्रेवल करना उनकी चॉइस है. ये लाइफस्टाइल उनकी मजबूरी नहीं है, मर्जी है. ऐसे ही अपनी मर्जी से अक्षय ने 2012 से 2016 तक 4 साल का ब्रेक ले लिया था. वो भी 'तीस मार खान' के लिए अवॉर्ड शोज में नॉमिनेशन पाने, और अवॉर्ड्स जीतने के बाद.
'ढिशूम' (2016) में अपनी मर्जी से वापस लौटे, तो साथ में 'अंडररेटेड' का टैग भी लौटा. हालांकि इस फिल्म के लिए कई अवॉर्ड शोज में बेस्ट विलेन का नॉमिनेशन भी मिला. 'मॉम','इत्तेफाक', 'सेक्शन 375' में फिर से जमकर क्रिटिक्स और जनता की तारीफें मिलीं. 'सब कुशल मंगल' और 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' में सिर्फ उनका ही काम लोगों को जमा.
'स्टेट ऑफ सीज' में लीड रोल भी मिला. 'दृश्यम 2' में कम स्क्रीनटाइम के बावजूद महफिल लूट ले गए. अभी तक 2025 की सबसे बड़ी बॉलीवुड ब्लॉकबस्टर में विलेन का रोल ऐसा निभाया कि लोगों को उस किरदार से नफरत करवा दी. और अब एक और बड़ी फिल्म 'धुरंधर' के ट्रेलर भर से भौकाल बना लिया है. फिल्म देखने के बाद तो लोग जाने कितनी तारीफ करेंगे! तो फिर भला अक्षय 'अंडररेटेड' कहां हुए?! ये सच है कि अक्षय का करियर ग्राफ 90s में आए फिल्मी पांडवों- आमिर, सलमान, शाहरुख, अजय देवगन और अक्षय कुमार जैसा नहीं है. लेकिन उन्होंने अपना करियर कभी इनकी तरह डिजाईन भी नहीं किया था. अक्षय खन्ना एक अलग लीग के एक्टर थे, और हैं.
ऑडियंस का प्यार और सपोर्ट उन्हें 2004 में भी बहुत मिल रहा था. आज भी बहुत मिल रहा है. बीच में गायब होने के बाद भी. हर साल एक दो बड़ी फिल्मों का हिस्सा हैं. खुद ही कह चुके हैं कि लीड रोल से ज्यादा, दमदार सपोर्टिंग किरदार उन्हें अपनी एक्टिंग तराशने का मौका देते हैं. वैसे ही किरदार उन्हें मिल भी खूब रहे हैं. इतना ही काम करके चैन से अपने फार्म हाउस में आराम करना उन्हें पसंद है— जो वो कर भी पा रहे हैं. तो क्या उन्हें अंडररेटेड कहना उनकी अपनी चॉइस की आलोचना नहीं है? क्या पहली बार 'अंडररेटेड' कहे जाने के बाद से किसी एक्टर का करियर 20 साल तक चलता रहता है!
वो भी तब, जब उन्होंने कभी कम काम मिलने की शिकायत नहीं की. बल्कि हमेशा शुक्रगुजार रहे कि अपने आप में रहने वाली शख्सियत के बावजूद उन्हें जितना काम मिलता है, वो कोई कमाल ही है. ऐसे में अक्षय के साथ बार-बार 'अंडररेटेड' शब्द का इस्तेमाल, खुद इस शब्द को 'ओवररेटेड' बना रहा है. क्रिटिक्स से लेकर जनता तक सब उनके काम के मुरीद हैं, उनके नए किरदारों के लिए टकटकी लगाए रहते हैं. शाहरुख खान से लेकर आलिया भट्ट तक, तमाम बड़े स्टार्स खुद को अक्षय के काम का फैन बताते हैं. अक्षय कहीं से भी 'अंडररेटेड' नहीं हैं, उनकी रेटिंग बिलकुल सही है. क्रिटिक्स की नजर में भी और जनता की दिल में भी.
सुबोध मिश्रा