जून का महीना वैसे तो बेरहम गर्मियों के लिए बदनाम है. मगर इस महीने की शुरुआत के साथ ही क्लासिक हिंदी सिनेमा के फैन्स के दिलों को ठंडक देने वाली खबर भी आई है. हिंदी सिनेमा के लेजेंड एक्ट्रेसेज में से एक रेखा की सबसे आइकॉनिक और यादगार फिल्मों में से एक 'उमराव जान' एक बार फिर से पर्दे पर लौट रही है.
नेशनल मल्टीप्लेक्स सिनेमा चेन पीवीआर-आईनॉक्स ने सोमवार को अनाउंस किया कि 1981 में बनी क्लासिक 'उमराव जान' 27 जून को उनके थिएटर्स में फिर से री-रिलीज होने जा रही है. फिल्म के पुराने प्रिंट को 4K क्वालिटी में रिस्टोर किया गया है जो अब थिएटर्स में नजर आएगा. 44 साल बाद थिएटर्स में लौट रही 'उमराव जान' आज भी अपनी ऑथेंटिक स्टोरी टेलिंग के लिए याद की जाती है. डायरेक्टर मुजफ्फर अली ने इस फिल्म में साल 1840 में सेट कहानी को जिस कलाकारी से पर्दे पर उतारा था, उसके लिए आज भी फिल्म फैन्स में आज भी 'उमराव जान' एक आइकॉनिक फिल्म है.
रेखा इससे पहले भी दो फिल्मों में तवायफ का रोल कर चुकी थीं. लेकिन पीरियड ड्रामा में उन्होंने शाही मेहमानों का दिल जीतने वाली तवायफ का रोल जिस खूबी से निभाया उसके लिए उन्हें उनका पहला नेशनल अवॉर्ड भी मिला था. मगर रेखा को 'उमराव जान' बनाकर पर्दे तक लाने में डायरेक्टर मुजफ्फर अली ने बहुत स्ट्रगल किया था. एक वक्त था जब बजट की कमी से ये आइकॉनिक फिल्म ठंडे बस्ते में जाने वाली थी. मगर इसे लखनऊ के शाही परिवारों ने बचा लिया. आइए बताते हैं ये किस्सा...
'इन आंखों की मस्ती के दीवाने हजारों हैं...'
'उमराव जान' में स्क्रीन पर दिख रहीं रेखा, एक रहस्य जैसी थीं. खूबसूरती ऐसी कि देखने वाला पलकें झपकाना भूल जाए. अदाएं ऐसी धड़कनों की रफ्तार कम पड़ जाए. मगर फिर भी उनके किरदार में कुछ ऐसा था जिसे आदमी महसूस तो कर सकता था, बयां नहीं कर सकता था.
1840 में सेट कहानी में रेखा ने अमीरन का किरदार निभाया, जिसे लखनऊ के एक कोठे पर बेच दिया जाता है. कोठे पर उसे शायरी, डांस और दूसरी कलाएं सिखाई जाती हैं. यहीं अमीरन को एक नया नाम मिलता है- उमराव जान. मर्दों के दिल को छलनी कर देने वाली तमाम अदाओं से लैस अमीरन के रोल में, रेखा के ठहराव भरे मूवमेंट, आंखों के अद्भुत खेल और आवाज खूबसूरती की एक अद्भुत तस्वीर तैयार करते थे.
'उमराव जान' के डायरेक्टर मुजफ्फर अली ने, 'रेखा: द अनटोल्ड स्टोरी' किताब के लिए बात करते हुए कहा था, '(फिल्म में) रेखा की सबसे स्पष्ट खूबी वो थी, जो उन्हें उनके अपने पास्ट से मिली थी. उनकी आंखों में टूट जाने और फिर खुद को समेटने का अनुभव झलकता था... जिंदगी लोगों को झिंझोड़ देती है, और अगर उनके अंदर एक आर्टिस्ट होता है, तो वो इस प्रक्रिया में और चमक उठता है.' रेखा के 'उमराव जान' बनने के बैकग्राउंड में कहीं पर अमिताभ बच्चन के साथ उनकी अधूरी लव स्टोरी भी थी.
जब शाही घरानों ने 'उमराव जान' के लिए खोल दीं तिजोरियां
डायरेक्टर मुजफ्फर अली ने बाद के एक इंटरव्यू में अपने फिल्ममेकिंग प्रोसेस के बारे में बताया था कि वो सबकुछ पेंट किया करते हैं. किसी पेंटिंग जैसी खूबसूरत 'उमराव जान' में रेखा के किरदार को 1840 के हिसाब से लुक देने के लिए अली ने ऐसी ड्रेस और गहने इस्तेमाल किए थे, जो उस दौर के शाही लोगों की एकदम याद दिलाते थे. इन गहनों के पीछे भी एक अलग कहानी है.
लखनऊ से कुछ ही दूर कोटवार नाम की एक जगह है. अवध की रियासत (जिसकी राजधानी बाद में लखनऊ हुई) में कोटवार एक रियासत हुआ करती थी. 'उमराव जान' के डायरेक्टर मुजफ्फर अली, इसी कोटवार के राजा सईद साजिद हुसैन अली के बेटे हैं. अपने पिता से उन्हें भी विरासत में 'राजा' का टाइटल मिला है. ब्रिटिश राज के बाद, लखनऊ की नवाबी शान-ओ-शौकत के बचे रह गए हिस्सों को देखकर बड़े हुए अली ने 'उमराव जान' की मेकिंग के समय एक इंटरव्यू में कहा था, 'आर्किटेक्चर,स्पेस और म्यूजिक में मैंने जो कुछ अनुभव किया है, वो सब फिल्म में लगने वाला है.'
अली, लखनऊ के लिए अपने थे और जब उन्होंने फिल्म बनानी शुरू की तो वहां के शाही परिवारों ने उनकी पूरी मदद की थी. इन परिवारों से अली को ड्रेसेज और गहनों के अलावा कई और ऐसी चीजें जो सौ साल से भी ज्यादा पुरानी थीं. फिल्म के सेट पर एक बातचीत में अली ने कहा था, 'वे मुझे ऐसी भी चीजें दे रहे हैं जिसके लिए उन्होंने सत्यजित रे को भी मना कर दिया था.' इंडियन सिनेमा के लेजेंड डायरेक्टर सत्यजित रे ने, अवध के बैकग्राउंड पर 1977 में 'शतरंज के खिलाड़ी' बनाई थी.
खुद की ज्यूलरी पहनकर रेखा ने किया था शूट
मुजफ्फर अली की पहली फिल्म 'गमन' को तारीफ तो बहुत मिली, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर फिल्म नाकाम रही. अली के दूसरे प्रोजेक्ट 'उमराव जान' का विजन और स्केल जिस तरह का था, उसके हिसाब से फिल्म का बजट अच्छा खासा होने वाला था. ऐसे में फ्लॉप फिल्म देकर आए डायरेक्टर के लिए, 'उमराव जान' जैसी फिल्म के लिए प्रोड्यूसर खोजना यकीनन मुश्किल रहा होगा.
रिपोर्ट्स बताती हैं कि बजट की दिक्कत के चलते एक समय 'उमराव जान' को ठंडे बस्ते में डाला जाने वाला था. लेकिन फाइनली बात बनी और फिल्म पर काम शुरू हो गया. हालांकि, बजट को कंट्रोल में रखते हुए फिल्म बनाने का तरीका यही था जो अली ने अपनाया- लोगों से जितनी मदद संभव हो, ली जाए. कहा जाता है कि रेखा ने जो ज्वेलरी पहनी थी, उसमें शाही परिवारों और दूसरी जगहों से आए गहनों के अलावा, उनकी अपनी ज्वेलरी भी थी.
इतना काबू करने के बाद 'उमराव जान' का बजट लगभग 50 लाख रुपये बताया जाता है. 80s के हिसाब से ये अच्छा खासा बड़ा बजट था. लखनऊ के नवाबी दौर के आखिरी हिस्से को बड़ी खूबसूरत से पर्दे पर उतारने वाली 'उमराव जान' के बनने में, खुद लखनऊ के लोगों का भी बड़ा हाथ रहा. 2 जनवरी 1981 को थिएटर्स में रिलीज हुई 'उमराव जान' न सिर्फ हिट रही, बल्कि इसे जमकर तारीफ भी मिली. फिल्म के लिए रेखा के अलावा खय्याम (बेस्ट म्यूजिक डायरेक्शन), आशा भोंसले (बेस्ट फीमेल प्लेबैक सिंगर) और मंजूर (बेस्ट आर्ट डायरेक्शन) को भी नेशनल अवॉर्ड मिला था.
सुबोध मिश्रा