विपक्षी INDIA गठबंधन ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी सुदर्शन रेड्डी को उपराष्ट्रपति चुनाव में अपना उम्मीदवार घोषित करके मास्टर स्ट्रोक खेलने का प्रयास किया है. कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने कहा कि गठबंधन ने सर्वसम्मति से उनका नाम तय किया है. वे उम्मीद जता रहे हैं कि कम से कम इंडिया गठबंधन के दलों का वोट तो उन्हें मिलेगा ही. साथ ही आंध्र के दलों को लेकर भी दांव खेला जा रहा है कि उनका भी सपोर्ट मिल जाए. लेकिन सवाल उठता है कि क्या ऐसा संभव है? दूसरा सवाल यह भी है कि जब विपक्ष को पता ही था कि चुनाव में उम्मीदवार खड़ा करना प्रतीकात्मक ही है तो फिर कोई और कैंडिडेट खड़ा क्यों नहीं किया? बी सुदर्शन रेड्डी एक राजनीतिक नाम नहीं हैं. जाहिर है कि उनके नाम से कोई राजनीतिक संदेश भी आम लोगों के बीच नहीं जाने वाला है.
सुदर्शन रेड्डी का मुकाबला एनडीए गठबंधन के कैंडिडेट सीपी राधाकृष्णन से होगा. दोनों उम्मीदवार 21 अगस्त को अपना नामांकन दाखिल करेंगे. कांग्रेस प्रवक्ता ने बताया कि सभी पार्टियों ने सहमति से सुदर्शन रेड्डी का नाम फाइनल किया है. आइये देखते हैं कि सुदर्शन रेड्डी का नाम आगे बढ़ाकर इंडिया गठबंधन ने क्या हांसिल कर पाएगा.
सुदर्शन रेड्डी का नाम घोषित करने में देरी कर दी
इंडिया गठबंधन को उम्मीद है कि स्टेट प्राइड के नाम पर टीडीपी नेता चंद्र बाबू नायडू का भी सपोर्ट उन्हें मिल सकता है. इसके साथ ही विपक्ष को लगता है कि वाईएसआरसीपी कांग्रेस और बीआरएस भी सुदर्शन रेड्डी को समर्थन देने के लिए मजबूर हो सकते हैं. गौरतलब है कि अभी तक ये तीनों दल टीडीपी, वाईएसआरसीपी और बीआरएस ने एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन को अपने समर्थन देने की घोषणा कर चुके हैं. और इंडिया गुट के उम्मीदवार जस्टिस रेड्डी की उम्मीदवारी के बाद भी वे अपने निर्णय पर कायम हैं. यानी, इंडिया गुट का तेलुगू कार्ड चल नहीं पाया है.
जैसा पहले भी होता रहा है कांग्रेस हर चुनावों में अपने उम्मीदवारों को घोषित करने में देर करती रही है. लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की देरी के चलते ही यूपी में समाजवादी पार्टी ने अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए. जिसके चलते आम लोगों में ये संदेश गया कि दोनों दलों के बीच अंदरखाने में कुछ चल रहा है.
उपराष्ट्रपति चुनाव में भी अगर एनडीए के उम्मीदवार घोषित करने के पहले बी सुदर्शन रेड्डी का नाम घोषित हो गया होता तो शायद इंडिया गठबंधन ने एनडीए पर बढ़त हासिल कर ली होती. क्योंकि एक बार फैसला लेने के बाद उसे बदलना किसी के लिए भी मुश्किल काम होता है. वैसे भी जब ये संदेश हो कि जीतना तो एनडीए कैंडिडेट को ही है.
जिस तरह एनडीए ने सीपी राधाकृष्णन को दक्षिण भारत के दलों को ध्यान में रखकर अपना उम्मीदवार बनाया और पहले ही टीडीपी, वाईआरएससीपी और बीआरएस जैसी पार्टियों का समर्थन हासिल कर लिया, उसी तरह इंडिया गठबंधन ने भी थोड़ी तेजी दिखाई होती तो हो सकता था कि तीनों राजनीतिक दल सुदर्शन रेड्डी के समर्थन में आज दिखाई दे रहे होते.
रेड्डी के नाम से जनता के बीच कोई राजनीतिक संदेश नहीं जा रहा है
सुदर्शन रेड्डी की विपक्ष की ओर से उम्मीदवारी हालांकि गठबंधन की एकता को दर्शाता है, लेकिन राजनीतिक संदेश के मामले में कमजोर नजर आता है. रेड्डी संवर्ण हैं. ऐसे में वे विपक्ष की दलित-ओबीसी राजनीति के एजेंडे में मिस फिट नजर आते हैं. वहीं, BJP और एनडीए की ओर से सीपी राधाकृष्णन की उम्मीदवारी को ओबीसी, किसान परिवार और दक्षिण भारत के प्रतिनिधि के रूप में प्रचारित किया जा रहा है.
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने रेड्डी को प्रतिष्ठित और प्रगतिशील न्यायविद बताया, जो संविधान और गरीबों के अधिकारों का समर्थन करते हैं. पर यह दबाव में लिया गया फैसला लगता है. ऐसा कहा जा रहा है कि TMC और DMK जैसे दलों की गैर-राजनीतिक उम्मीदवार की मांग को पूरा करने के लिए रेड्डी चुने गए. लेकिन उनकी गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि बिहार जैसे राज्यों में जहां डेमोग्रेफी चेंज, ओबीसी और सवर्ण, हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण आदि मु्द्दे प्रमुख हैं के लिए कोई मजबूत राजनीतिक संदेश नहीं दे रहा है.
इसके मुकाबले में BJP ने अपने उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन के जरिए दक्षिण भारत और बिहार दोनों ही जगह के OBC समुदाय को संदेश दिया है. इतना ही नहीं रेड्डी का नाम सवर्ण जातियों को भी प्रभावित करने में असफल साबित होने वाला है. इस तरह से देखा जाए तो सोशल इंजिनियरिंग के लेवल पर इंडिया गठबंधन कैंडिडेट चयन में फेल हो गया है.
तेलंगाना जाति सर्वे के आर्किटेक्ट को क्या ओबीसी स्वीकार करेंगे?
तेलंगाना की सोशल इंजीनियरिंग में बी. सुदर्शन रेड्डी का बड़ा रोल रहा है. तेलंगाना सरकार ने 2023 के विधानसभा चुनावों में किए गए वादे के तहत सामाजिक-आर्थिक, शैक्षिक, रोजगार, राजनीतिक और जातिगत सर्वेक्षण (SEEEPC) शुरू किया था. इस सर्वेक्षण के आंकड़ों का विश्लेषण करने और इसकी सटीकता सुनिश्चित करने के लिए एक विशेषज्ञ पैनल का गठन किया गया जिसकी अध्यक्षता बी. सुदर्शन रेड्डी ने की थी.
इस पैनल का मुख्य उद्देश्य था कि सर्वेक्षण में एकत्र किए गए डेटा में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी न हो. इसके अलावा इस पैनल की यह भी जिम्मेदारी थी कि वह यह सुनिश्चित करे कि आंकड़े विश्वसनीय, पारदर्शी और नीति निर्माण के लिए उपयोगी हों. पर खुद ओबीसी न होने के चलते सुदर्शन रेड्डी कभी भी ओबीसी नेता की कमी को पूरा नहीं कर सकेंगे. जैसा पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल कमीशन लागू तो किया पर उनके साथ देश का ओबीसी समुदाय आज तक खड़ा नहीं हुआ.
हालांकि उन्होंने एक ऐसा महत्वपूर्ण काम किया है जिसे कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपनी सरकार बनने पर पूरे देश में लागू करना चाहते हैं. राहुल गांधी चाहते हैं कि तेलंगाना के मॉडल पर पूरे देश में जाति जनगणना हो. जाहिर है कि ऐसी योजना से जुड़े किसी व्यक्ति को हारने वाली लड़ाई में जानबूझकर शहीद करना किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं है. सुदर्शन रेड्डी की अगर ब्रैंडिंग करनी थी तो उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष या इसी तरह की किसी और पद से सुशोभित किया जाना चाहिए था.
जूडिशरी के लिए कोई सॉफ्ट कॉर्नर दिखाई देगा, इसकी उम्मीद कम ही है
उपराष्ट्रपति पद के लिए कैंडिडेट घोषित करने के बाद विपक्ष का कहना है कि हमारा उम्मीदवार संविधान से जुड़ा हुआ कैंडिडेट है, पर उनका आरएसएस कैंडिडेट है. इंडिया गठबंधन द्वारा सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी. सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाकर देश के सामने न्यायपालिका की निष्पक्ष छवि को बढ़ावा देने वाली पार्टी बनने की कोशिश की गई है.
यह भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस को उम्मीद है कि इस चयन के जरिए न्यायपालिका के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर (सहानुभूति या समर्थन) हासिल कर पाएगी. पर ऐसा कभी नहीं हुआ है. विपक्ष ने कई बार राष्ट्रपति पद के लिए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस को हारने के लिए खड़ा किया पर इससे कभी कोई फायदा नहीं हुआ है. सिवाय कि ऐसे कैंडिडेट को राष्ट्रीय स्तर पर कुछ दिन चर्चा में रहने को मिल जाता है.
रेड्डी का चयन न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संवैधानिक मूल्यों को मजबूत करने का संदेश देता है, लेकिन यह शहरी और शिक्षित मतदाताओं तक सीमित है. CSDS-Lokniti के सर्वे के अनुसार, बिहार में 60% मतदाता आर्थिक मुद्दों, जैसे बेरोजगारी और पलायन, को प्राथमिकता देते हैं. न्यायपालिका से संबंधित मुद्दे, जैसे संवैधानिक रक्षा, ग्रामीण और कम शिक्षित मतदाताओं के लिए शायद बिल्कुल भी प्रासंगिक नहीं है. रेड्डी की उम्मीदवारी को सुप्रिया श्रीनेत संवैधानिक मूल्यों से जोड़ती हैं पर यह BJP के ओबीसी नरेटिव को तोड़ने में कहीं से भी वे कारगर नहीं दिख रहे हैं.
संयम श्रीवास्तव