क्या बिहार का सियासी गेम चेंज कर पाएंगे कांग्रेस में आए पप्पू यादव? पिछले चुनावों का देख लीजिए रिकॉर्ड

पप्पू यादव कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. बतौर निर्दलीय पहला विधानसभा और लोकसभा चुनाव जीतने वाले पप्पू यादव बिहार में कांग्रेस का गेम कितना चेंज कर पाएंगे? पप्पू का पिछला चुनावी रिकॉर्ड क्या कहता है?

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पप्पू यादव (फोटोः पीटीआई) पप्पू यादव (फोटोः पीटीआई)

बिकेश तिवारी

  • नई दिल्ली,
  • 21 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 12:58 PM IST

लोकसभा चुनाव के बीच बिहार में सियासी बयार बदल रही है. लालू यादव की खास रही आनंद मोहन की फैमिली अब नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) में जा चुकी है. वहीं, 1990 के दशक में आनंद मोहन के प्रतिद्वंदी रहे राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव अब लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेतृत्व वाले बिहार के महागठबंधन में शामिल कांग्रेस के हो गए हैं. पप्पू यादव ने एक दिन पहले ही नई दिल्ली में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली और अपनी पार्टी जन अधिकार पार्टी का ग्रैंड ओल्ड पार्टी में विलय कर दिया.

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पप्पू यादव के इस कदम को कांग्रेस गेमचेंजर समझ रही है. पहला ही चुनाव जीतकर विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए पप्पू यादव पांच बार सांसद भी रहे. एक बार के विधायक, पांच बार के सांसद... यह शब्द यह बताने के लिए काफी कहे जा रहे हैं जैसा कांग्रेस समझ रही है. लेकिन पप्पू यादव की पार्टी के पिछले चुनावों में प्रदर्शन, उनके चुनावी रिकॉर्ड को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं. जिन पप्पू यादव को पार्टी में लाकर कांग्रेस के नेता गेमचेंजर समझ रहे हैं, उनका और उनकी पार्टी का पिछले कुछ चुनावों में रिकॉर्ड कैसा रहा है?

पप्पू का रिकॉर्ड 2004 तक जबरदस्त

दबंग छवि के पप्पू यादव 1990 के बिहार विधानसभा चुनाव में मधेपुरा जिले की सिंहेश्वर विधानसभा सीट से बतौर निर्दलीय उम्मीदवार उतरे और जीते. इसके एक साल बाद ही वह 1991 के लोकसभा चुनाव में भी बतौर निर्दलीय उम्मीदवार संसद पहुंचने में कामयाब रहे. शुरुआती दो चुनाव निर्दल जीतने के बाद पप्पू 1996 में समाजवादी पार्टी (सपा) के टिकट पर, 1999 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पूर्णिया से संसद पहुंचे. 2004 का चुनाव वह लालू यादव की पार्टी से लड़े और पूर्णिया से चौथी बार सांसद निर्वाचित हुए.

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पप्पू यादव ने कांग्रेस में किया अपनी पार्टी का विलय (फोटोः पीटीआई)

पप्पू की सियासी किस्मत ने 2009 में खाई पलटी

पूर्णिया लोकसभा सीट से दो बार निर्दलीय, एक बार बिना खास आधार वाली सपा और एक बार आरजेडी से संसद पहुंच चुके पप्पू की सियासी किस्मत ने 2009 में पलटी खाई. पूर्णिया लोकसभा सीट का पर्याय बन चुके पप्पू यादव को हत्या के एक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद पटना हाईकोर्ट ने उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी. कोर्ट ने उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगाई तो आरजेडी ने भी उनसे किनारा कर लिया. पप्पू ने 2009 के चुनाव में पूर्णिया सीट से अपनी मां शांति प्रिया को निर्दलीय ही मैदान में उतार दिया लेकिन उन्हें भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के उदय सिंह से दो लाख वोट के अंतर से बड़ी हार का सामना करना पड़ा.

2014 में मधेपुरा से दिखाया दम

साल 2009 के चुनाव में पूर्णिया से मां की हार के बाद 2014 के चुनाव में पप्पू यादव ने मधेपुरा का रुख किया. 2014 के चुनाव में आरजेडी ने पप्पू को जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष और एनडीए के संयोजक रहे कद्दावर नेता शरद यादव के खिलाफ मधेपुरा से मैदान में उतारा. यह वही चुनाव था जब जेडीयू ने पीएम पद के लिए नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी का विरोध करते हुए बिहार की 38 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. पप्पू ने मधेपुरा सीट से चार बार के सांसद शरद को पटखनी दे दी. पप्पू 50 हजार वोट के अंतर से चुनाव जीतकर पांचवी बार संसद पहुंचे लेकिन यही चुनावी विजय उनकी अब तक के सफर में अंतिम विजय भी साबित हुई.

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पप्पू को आरजेडी ने 2015 में पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में बाहर का रास्ता दिखा दिया और इसके बाद संसद की कौन कहे, पप्पू विधानसभा चुनाव तक नहीं जीत सके. पप्पू यादव ने जन अधिकार पार्टी नाम से अपना राजनीतिक दल बनाया और 2019 में मधेपुरा सीट से चुनाव लड़ा. तब बीजेपी और जेडीयू फिर से साथ आ चुके थे वहीं जेडीयू अध्यक्ष रहे शरद यादव आरजेडी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे. पप्पू को 97 हजार 631 वोट मिले थे.

वाहवाही मिली लेकिन नहीं मिले वोट

लोकसभा चुनाव के कुछ महीने बाद पटना में आई भीषण बाढ़ के समय पप्पू यादव और उनकी पार्टी से जुड़े लोगों की पानी में उतर मदद पहुंचाने की तस्वीरें खूब वायरल हुईं. वह बस पटना या कोसी और सीमांचल तक ही सीमित नहीं रहे. कोरोना काल में छपरा और आसपास के इलाकों में भी वह सक्रिय नजर आए.

लालू यादव और तेजस्वी यादव के साथ पप्पू यादव

पप्पू के कार्यों की तारीफ भी हुई लेकिन 2020 के चुनाव में उनकी पार्टी इसे वोट में तब्दील नहीं कर पाई. पप्पू यादव की पार्टी ने 148 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और एक सीट जीतना तो दूर, पार्टी के उम्मीदवार किसी भी सीट पर दूसरे स्थान तक भी नहीं पहुंचे. एक फीसदी वोट शेयर के साथ जेएपी का सबसे बढ़िया प्रदर्शन तीसरा स्थान रहा. पार्टी के उम्मीदवार 11 सीटों पर तीसरे स्थान पर रहे और उसे कुल मिलाकर 4 लाख 32 हजार 109 वोट मिले. पप्पू यादव ने तो दिल्ली के एक मंच से जनता को दोमुहां नाग बताते हुए यह तक कह दिया था कि 500 टका दीजिए और वोट लीजिए.

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कांग्रेस ने पप्पू को क्यों लिया?

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ने कहा कि पप्पू यादव 2019 लोकसभा चुनाव के बाद अपनी इमेज बदलने में एक हद तक सफल रहे हैं. दबंग नेता की छवि वाले यादव नेता पप्पू ने न सिर्फ संकट की घड़ी में मदद के लिए हाजिर रहने वाले नेता की इमेज बनाई, बल्कि कोसी-सीमांचल की सीमा से बाहर निकल हर जाति, हर वर्ग में थोड़ा ही सही, अपना जनाधार तैयार करने में सफल रहे. पप्पू का यह जनाधार पप्पू के अकेले लड़ने की स्थिति में जीत के लिए नाकाफी भले हो, लेकिन जब किसी दूसरी पार्टी के वोट शेयर में जुड़े तो जीत की संभावनाएं बढ़ सकती हैं.

यह भी पढ़ें: पप्पू यादव, लाल सिंह, दानिश अली... एक दिन में 2 पार्टियों का कांग्रेस में विलय, 2 पूर्व सांसद हुए शामिल

कांग्रेस में पप्पू के एंट्री के पीछे भी यहीं मंशा हो सकती है. बिहार में जब छोटे-छोटे वोट ब्लॉक्स को एनडीए सहेजने में जुटा है, महागठबंधन की रणनीति भी पप्पू की पार्टी के एक फीसदी वोट शेयर को अपने पाले में लाने की है. पप्पू के आने से महागठबंधन को कोसी-सीमांचल में एकमुश्त यादव वोट की उम्मीद भी है.

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पप्पू यादव अब कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं. लोकसभा चुनाव में महागठबंधन को इसका कितना लाभ मिल पाता है, यह देखने वाली बात होगी. नजर पप्पू यादव पर भी होगी जो फिर से अपने पुराने गढ़ पूर्णिया लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में हैं. क्या पप्पू 2019 चुनाव से चला आ रहा जीत का सूखा इस बार खत्म कर पाएंगे?

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