लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियों को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी चुनावी यात्रा पर हैं. नजर NDA के लिए राज्य की सभी 40 लोकसभा सीटें जीतकर 'अबकी बार 400 पार' का लक्ष्य हासिल करने पर टिकी हैं. इस चुनाव में NDA गठबंधन का न सिर्फ चुनावी लक्ष्य बदला है, बल्कि इसके साथ ही नीतीश कुमार के प्रचार का तरीका भी बदल गया है. बिहार के सीएम की इस चुनावी यात्रा में हेलीकॉप्टर की जगह अब बस ने ले ली है, जिसे रथ कहा गया है. नीतीश कुमार जिस बस को लेकर बिहार की चुनावी यात्रा पर निकले हैं, उस पर लिखा है, 'निश्चय रथ'.
नीतीश जिस बस (रथ) से चुनावी मैदान का चक्कर काटेंगे उसे JD(U) ने खासतौर पर तैयार करवाया है. सीएम नीतीश का चुनावी रथ हाईटेक तो है ही, लेकिन जो बात गौर करने वाली है वह इसके दोनों ओर लिखा चुनावी स्लोगन. नीतीश के रथ के एक ओर जहां 'रोजगार मतलब नीतीश कुमार' लिखा है, तो दूसरी तरफ 'पूरा बिहार हमारा परिवार' लिखा हुआ है. इन दोनों ही नारों को अगर बिहार की राजनीति के मौजूदा परिप्रेक्ष्य में समझने की कोशिश करें तो यह साफ नजर आएगा कि नीतीश के रथ पर लिखे शब्द महज स्लोगन मात्र नहीं हैं.
रथ के दोनों ओर लिखी लाइनें मौजूदा चुनाव में राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी RJD को दो मोर्चों पर नुकसान पहुंचाने की दिशा में एक सीधी लकीर खींचती हैं. इन नारों के जरिए जिन चुनावी मुद्दों को नीतीश कुमार साधने की कोशिश कर रहे हैं, वे कुछ और नहीं बल्कि (मोदी का) परिवार, (राजद का) परिवारवाद और रोजगार हैं.
लालू के 'परिवारवाद' पर निशाना
परिवारवाद एक ऐसा मुद्दा है जिसके जरिए भाजपा और नीतीश कुमार अक्सर लालू यादव एंड फैमिली को निशाने पर रखते हैं. राजद को एक परिवार की पार्टी और मुस्लिम-यादव समीकरण से जोड़ कर देखा जाता रहा है. बिहार के हर चुनाव में जो भी पार्टी राजद के खिलाफ लड़ती है, उसके तरकश से राजनीतिक निशाने के लिए पहला तीर परिवारवाद का ही निकलता है. अभी कुछ दिन पहले ही राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर पर बोलते हुए नीतीश कुमार ने अप्रत्यक्ष रूप से 'लालू के परिवारवाद' पर निशाना साधा था.
नीतीश कुमार ने कहा था कि कर्पूरी ठाकुर ने कभी अपने परिवार को आगे नहीं बढ़ाया. आजकल लोग अपने परिवार को बढ़ाते हैं. इसके बाद नीतीश कुमार ने 'पूरा बिहार हमारा परिवार' का नारा गढ़कर अपनी चुनावी रणनीति की हाइलाइट तो दिखा दी है. मतलब साफ है, आने वाले दिनों में नीतीश के चुनावी भाषणों में 'ये लोग तो परिवार को ही आगे बढ़ाते हैं' जैसी लाइनें प्रमुखता से सुनने को मिल सकती हैं. RJD से हाथ मिलाने के पहले और अलग होने के बाद से नीतीश के भाषणों और सभाओं में लालू यादव और उनके परिवार का राजनीति में असर अक्सर निशाने पर रहा है.
'मोदी का परिवार' लाइन पर ही नीतीश का नारा
बिहार की राजनीति में परिवार शब्द से सिर्फ परिवारवाद का मुद्दा नहीं निकलता है. हाल ही में लालू यादव द्वारा पीएम मोदी पर की गई टिप्पणी ने 'मोदी का परिवार' कैंपेन को जन्म दे दिया. लालू यादव ने पटना के गांधी मैदान में हुई एक रैली में 'नरेंद्र मोदी के पास अपना परिवार नहीं होने' को लेकर टिप्पणी की थी. इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने 'पूरा देश मोदी का परिवार' कहकर लालू की टिप्पणी को अपने पक्ष में मोड़ने की तैयारी कर ली. उन्होंने इसे साल 2019 के 'चौकीदार कैंपेन' की तर्ज पर एक ट्रेंड में बदल दिया.
बीजेपी नेताओं और कार्यकत्ताओं ने सोशल मीडीया पर अपने नाम के आगे 'मोदी का परिवार' जोड़कर इसे एक पॉलिटिकल कैंपेन में तब्दील कर दिया. नीतीश की रथ पर लिखा परिवार भले इस थीम से अलग हो, लेकिन है तो इसी लाइन पर. फोकस के हिसाब से नारे में देश की जगह बिहार को जगह दे दी गई. साथ ही नीतीश कुमार ने इसके जरिए इस बात को एक बार और दोहराने की कोशिश की कि बिहार में अब जदयू और भाजपा एक ही लाइन पर आगे बढ़ रही हैं. हाल ही में साथ आईं दोनों पार्टियों के बीच अब कहीं किसी तरह का कंफ्यूजन नहीं बचा है.
ताल से ताल मिलाने की कोशिश
RJD से अलग होकर फिर से बिहार में भाजपा का दामन थामने के बाद से नीतीश कुमार दो बार मोदी के साथ मंच साझा कर चुके हैं. इतना ही नहीं नीतीश ने मंच से बार-बार इस बात को दोहराया भी है कि अब वह कहीं नहीं जाने वाले. जितना इधर-उधर करना था कर चुके हैं और अब उनकी पार्टी बिहार में NDA का ही हिस्सा रहेगी. मतलब, अब फिर कभी नीतीश कुमार पलटकर लालू यादव से हाथ नहीं मिलाएंगे. नीतीश ने जब स्टेज से पलटी नहीं मारने की बात कही थी, तब मोदी भी मंच पर मौजूद थे. वह अपनी मुस्कुराहट रोक नहीं पाए. कुल जमा बात इतनी है कि नीतीश किसी भी मौके पर बिहार में एनडीए को अपना परिवार बताने का मौका नहीं चूक रहे हैं. चाहे मौका मंच पर मिले या फिर चुनाव प्रचार के लिए तैयार किए गए रथ पर. नीतीश मोदी के ताल से ताल मिलाने का कोई मौका जाने देना नहीं चाहते. और इस चुनावी सीजन में अब तक उन्होंने इसे बखूबी अंजाम दिया है. फिर बात चाहे परिवार या फिर परिवारवाद की लाइन पर हो या मोदी के 400 पार नारे और बिहार में सभी 40 सीटें जीतने की.
रोजगार देने की क्रेडिट को लेकर छिड़ा है जंग
एक ओर बिहार में भाजपा और नीतीश कुमार जहां लालू परिवार के सरकार चलाने और उनके परिवारवाद को लगातार चुनावी मुद्दा बना रही है. वहीं दूसरी ओर तेजस्वी यादव बिहार में हालिया हुए सरकारी भर्ती को भुनाने में लगे हैं. तेजस्वी के चुनावी प्रचार में रोजगार सबसे अहम मुद्दा है. वो बेरोजगारी को लेकर मुखर हैं. सत्ता में आने पर रोजगार देने की बात लगातार दोहरा रहे हैं. बिहार में शिक्षक भर्ती का क्रेडिट लेने को लेकर भी नीतीश कुमार नाराज दिख चुके है. जबकि राजद बिहार में हालिया हुई सरकारी भर्ती का सारा क्रेडिट तेजस्वी को देती आ रही है. वो मंच से इसे लगातार बता भी रहे हैं. नीतीश कुमार राजद पर क्रेडिट लेने की बात पहले ही कह चुके हैं. ऐसे में राजद से अलग होने के बाद अपने चुनावी रथ पर 'रोजगार मतलब नीतीश कुमार' लिखा होने का मतलब समझा जा सकता है. मौका बड़ा है और बिहार के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल JDU और RJD के बीच इसे भुनाने की होड़ मची हुई है.
नीतीश ने बदला प्रचार का स्टाइल
लोकसभा चुनाव के बीच नीतीश कुमार ने इस बार अपने चुनाव प्रचार का तरीका भी बदल दिया है. नीतीश अक्सर हेलिकॉप्टर से जाकर बड़ी-बड़ी जनसभाओं को संबोधित करते थे. लेकिन इस बार पार्टी ने उनके लिए एक खास चुनावी रथ तैयार किया है. इसी चुनावी बस (रथ) पर सवार होकर नीतीश कुमार अलग-अलग लोकसभा क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं और लोगों के बीच पहुंच रहे है. लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 19 अप्रैल को बिहार की चार सीटों पर वोटिंग होनी है. गया, नवादा, जमुई और औरंगाबाद में 19 अप्रैल को चुनाव संपन्न हो जाएगा. राज्य में NDA सभी 40 सीटों पर जीत हासिल करने के लक्ष्य को प्रचार-प्रसार में जुटी है. नीतीश की नई चुनावी रणनीति और नारे NDA गठबंधन को कितना फायदा पहुंचा पाएगा यह तो 4 जून को ही मालूम पड़ेगा.
रितु राज