हिमाचल में कांग्रेस-बीजेपी का दबदबा, पहाड़ चढ़ने में 'हांफ' जाते हैं क्षेत्रीय दल

हिमाचल प्रदेश की सियासत कांग्रेस और बीजेपी के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है, लेकिन इस बार कई क्षेत्रीय दल चुनावी मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं. ऐसे में हिमाचल का ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो क्षेत्रीय दलों का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा. पहाड़ों पर सफर तय करने में क्षेत्रीय दल हांफने लगते हैं जबकि बसपा से लेकर लेफ्ट तक मैदान में होते हैं.

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जयराम ठाकुर और प्रतिभा सिंह जयराम ठाकुर और प्रतिभा सिंह

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली ,
  • 28 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 1:05 PM IST

हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों का बिगुल बज गया है. बीजेपी इस बार सत्ता परिवर्तन का इतिहास बदलने के लिए उतरी है तो कांग्रेस सत्ता में वापसी के लिए हाथ पैर मार रही. वहीं, तमाम क्षेत्रीय दल भी किस्मत आजमा रहे हैं, जिनमें आम आदमी पार्टी से लेकर बसपा और लेफ्ट पार्टियां तक शामिल हैं. हालांकि, हिमाचल की परिस्थितियां भौगोलिक रूप से ही नहीं बल्कि चुनावी नजरिए से भी क्षेत्रीय दलों के लिए आसान नहीं रही हैं. कांग्रेस और बीजेपी को छोड़कर कोई भी क्षेत्रीय दल हिमाचल के पहाड़ पर नहीं चढ़ सके. 

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हिमाचल प्रदेश के हर विधानसभा चुनाव में कई क्षेत्रीय दलों ने किस्मत आजमाई, लेकिन मतदाताओं ने उन पर भरोसा नहीं जताया. वाम दल संघर्ष करते नजर आए तो अन्य दल लोगों की भावनाओं की बैसाखी ही रहे. बीजेपी और कांग्रेस के अलावा लेफ्ट पार्टियां, बसपा, सपा, जनता दल, टीएमसी, आरपीआई और एनसीपी चुनावी किस्मत आजमाती रही हैं. कांग्रेस-बीजेपी के अलावा अन्य दलों को हिमाचल के वोटर्स ने कोई महत्व नहीं दिया. वामदलों को छोड़ दें तो अन्य दलों के प्रत्याशियो की जमानत जब्त हो गई है. 

2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के अलावा आम आदमी पार्टी ने सभी 68 सीटों पर अपने कैंडिडेट उतारे हैं. वामपंथी दल 11 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं तो बसपा ने 34 सीटों पर कैंडिडेट उतार रखे हैं. हालांकि 29 अक्टूबर को नामांकन वापस लेने के बाद हिमाचल चुनाव में उम्मीदवारों की असल तस्वीर साफ हो पाएगी, लेकिन इस बार के चुनाव में कई सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला होने के बजाय त्रिकोणीय होने की संभावना है. 

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हिमाचल की सियासत में क्षेत्रीय दल 1967 से अस्तित्व में आते रहे हैं. हर विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय दल नए विचार के साथ राजनीतिक प्रयोग करते रहे हैं. पिछले तीन दशक के सियासी इतिहास को देखें तो कुछ विधानसभा सीटों पर क्षेत्रीय दलों पर विश्वास जताया. क्षेत्रीय दलों के उम्मीदवार को जिताकर उन्हें विधानसभा भेजा, लेकिन कुछ समय के बाद मुख्यधारा के दल का दामन थाम लिया. 

लेफ्ट पार्टी का प्रदर्शन 
बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में लेफ्ट पार्टियों ने 15 सीटों पर अपने कैंडिडेट उतारे थे, जिसमें महज एक सीट पर ही उसे जीत मिली थी. भाकपा और माकपा हर चुनाव में 10 से 15 सीटों पर प्रत्याशी उतारते हैं, लेकिन एक सीट को छोड़ दें तो बाकी प्रत्याशी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाते हैं. इस तरह लेफ्ट शिमला जिले तक सीमित है. शिमला की ठियोग सीट पर कॉमरेड सिंघा के नाम से मशहूर राकेश सिंघा विधायक बने. लेफ्ट पार्टी शिमला की एक सीट हमेंशा से जीतती आ रही है और बाकी सीटों पर अपनी जमानत भी नहीं बचा पाती. 

बसपा का सियासी ग्राफ 
हिमाचल में बसपा हर चुनाव में किस्मत आजमाने के लिए उतरती है, लेकिन जीत दर्ज नहीं कर सकी. 2017 में बसपा ने 42 सीटों पर कैंडिडेट उतारे थे और सभी की जमानत जब्त हो गई थी. ऐसी ही 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा 66 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से कोई भी अपनी जमानत नहीं बचा सका. 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ी थी और 67 सीटों पर कैंडिडेट उतारे थे, जिनमें से महज एक सीट पर उसी जीत मिली थी. संजय चौधरी कांगड़ा सीट से बसपा से चुनाव जीतकर विधायक बने थे, लेकिन वो बीजेपी में शामिल हो गए. बसपा ने इस बार भी चुनावी मैदान में अपने कैंडिडेट उतारे हैं और उनके प्रचार के लिए मायावती अपना पूरा दमखम लगाएंगी. ऐसे में देखना है कि इस बार उन्हें कितनी सीटों पर जीत मिलती है. 

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सुखराम की पार्टी रही किंगमेकर 
हिमाचल की सियासत के दिग्गज नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम कांग्रेस से बाहर होने के बाद हिमाचल विकास कांग्रेस का गठन किया था. 1998 के विधानसभा चुनाव में सुखराम ने हिमाचल विकास कांग्रेस के टिकट पर 62 सीटों पर कैंडिडेट उतारे थे, जिनमें पांच सीटों पर उसे जीत मिली थी. मंडी जिले में चार और लाहौल स्पीति में एक सीट मिली थी. इसके अलावा 48 सीटों पर हिविकां के जमानत जब्त हो गई. हालांकि, उनकी पार्टी 9.63 फीसदी मत मिले थे. इस तरह किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने से सत्ता के किंगमेकर बने थे. इसके बाद 2003 के चुनाव में हिविकां ने 49 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से मंडी सदर से एकमात्र सुखराम ही जीत सके थे. इसके अलावा 48 सीटों पर प्रत्याशी अपनी जमानत नहीं बचा पाए थे और वोट फीसदी गिरकर 5.84 पर आ गया. 

हिमाचल लोकहित पार्टी
हिमाचल के दिग्गज नेता महेश्वर सिंह बीजेपी से अलग होकर हिमाचल लोकहित पार्टी का गठन किया था. 2012 के चुनाव में महेश्वर सिंह ने 36 सीटों पर अपनी पार्टी हिलोपा के कैंडिडेट उतारे थे, जिसमें कुल्लू विधानसभा क्षेत्र से महेश्वर सिंह खुद तो जीत गए बाकी अन्य 35 सीटों पर प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी. इस तरह हिलोपा को मात्र 2.40 प्रतिशत मत मिले थे और चुनाव के बाद उन्होंने अपनी पार्टी का भाजपा में विलय कर दिया था. 

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हालांकि, इस बार के चुनाव में फिर बीजेपी से बगावत कर ली है और निर्दलीय चुनावी मैदान में हैं. वहीं, 2003 में महेंद्र सिंह ठाकुर ने लोकतांत्रिक मोर्चा बनाकर चुनाव लड़ा था और विधायक बने थे, लेकिन बाद में भाजपा में शामिल हो गए. 1990 के विधानसभा चुनाव में कई नेता विधायक बने. इनमें मेजर विजय सिंह मनकोटिया प्रमुख थे जो अगले चुनाव से पहले कांग्रेस में चले गए.  

हिमाचल के रण में क्षेत्रीय 
हिमाचल चुनाव में हिमाचल स्वाभिमान पार्टी, हिंदुस्तान निर्माण दल, लोकजन पार्टी, बहुजन मुक्ति पार्टी, भारतीय हिमाचल जन विकास पार्टी, एनसीपी, लोक गोपधन पार्टी, नवभारत एकता दल, सपा, राष्ट्रीय आजाद मंच, राष्ट्रवादी प्रताप सेना, समाज अधिकार कल्याण पार्टी और स्वाभिमान पार्टी ने किस्मत आजमाई थी, लेकिन इन पार्टियों के किस्मत का सितारे बुलंद नहीं हो सके. इस तरह से हिमाचल की सियासत कांग्रेस और बीजेपी के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. 

 

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