'SIR प्रोसेस में राज्यों को मदद करना होगा लेकिन...', सियासी दल की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

तमिलगा वेत्री कषगम (TVK) की याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि SIR प्रोसेस को संवैधानिक प्रावधान के तहत पूरा करना होगा. हालांकि, कोर्ट ने बीएलओ (BLO) की मौतों पर गंभीर चिंता जताते हुए राज्यों को निर्देश दिया है कि वे कर्मचारियों का बोझ कम करें.

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BLOs की मौतों पर कोर्ट ने चिंता जाहिर करते हुए राज्यों को निर्देश दिया है. (File Photo: PTI) BLOs की मौतों पर कोर्ट ने चिंता जाहिर करते हुए राज्यों को निर्देश दिया है. (File Photo: PTI)

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 05 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 9:52 AM IST

वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी SIR प्रक्रिया को चुनौती देने के सिलसिले में तमिलनाडु के राजनीतिक दल तमिलगा वेत्री कषगम यानी टीवीके की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस दौरान कोर्ट में चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की बेंच ने कई बातें कही. बेंच ने कहा कि किसी भी सूरत में यह संवैधानिक प्रावधान पूरा करना होगा, यानी राज्य सरकार को SIR का काम करवाने में सहयोग देना होगा. 

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याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि काम के ज्यादा दबाव की वजह से 35-40 BLOs की मौत हो चुकी है, इसलिए उन्होंने मुआवज़ा देने की मांग की है. याचिकाकर्ता ने कहा कि तमाम राज्यों में चुनाव आयोग की ओर से जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 32 के तहत BLOs को नोटिस भेजे जा रहे हैं कि अगर उन्होंने टारगेट पूरे नहीं किए तो उन्हें जेल जाना पड़ सकता है. 

दलील में कहा गया कि सिर्फ उत्तर प्रदेश में 50 FIR दर्ज की गई हैं. मीडिया में कहा जा रहा है कि BLOs को जेल भेजेंगे, स्कूल शिक्षकों और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के साथ ऐसा नहीं किया जा सकता. 

कोर्ट ने जताई चिंता...

सुप्रीम कोर्ट ने SIR के दौरान BLOs की मौतों पर गंभीर चिंता जताते हुए BLOs पर काम का बोझ कम करने का निर्देश दिया है. चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि हम राज्यों से कह सकते हैं कि वे कर्मचारियों को बदल दें. कोर्ट ने कहा, "यह राज्यों की ज़िम्मेदारी है." राज्य सरकारें और ज्यादा कर्मचारी लगाएं, जिससे काम के घंटे उसी हिसाब से कम किए जा सकें. कोर्ट ने कहा कि अगर कोई बीमार या असमर्थ है, तो राज्य वैकल्पिक कर्मचारी तैनात कर सकता है. जहां दस हजार कर्मी हैं, वहां 20 या 30 हजार कर्मी लगाए जा सकते हैं.

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स्वैच्छिक कार्य नहीं, वापस लेने की अनुमति नहीं...

सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि उन्हें ज़िम्मेदारी लौटाने यानी खुद को वापस लेने या इस्तीफ़ा देने की अनुमति नहीं दी जा रही है, यही तो समस्या है. यह स्वैच्छिक कार्य नहीं है. आप न तो वापस ले सकते हैं और न ही इस्तीफ़ा दे सकते हैं. सेक्शन 32 की शिकायत सिर्फ चुनाव आयोग ही शुरू कर सकता है. 

शंकरनारायणन ने कहा, "मैं तालिकाएं और चार्ट दे रहा हूं. यह मानवीय मुद्दा है." उन्होंने बताया कि एक शख्स ने अपनी खुद की शादी के लिए छुट्टी मांगी थी, उसे छुट्टी नहीं दी गई, उसने सुसाइड कर लिया.

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चुनाव आयोग का पक्ष और न्यायिक प्रतिक्रिया...

चुनाव आयोग की तरफ से सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने कहा कि तमिलनाडु में 91 फीसदी काम पूरा हो चुका है. इसका चुनावों पर भी बड़ा असर पड़ेगा. CJI ने कहा कि कर्मचारियों की लिस्ट तो राज्य सरकार देती है, राज्य सरकार वैकल्पिक कर्मचारी दे सकती है. 

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CJI ने कहा, "अगर किसी कर्मचारी के पास ड्यूटी से छूट मांगने की कोई खास वजह है, तो संबंधित अधिकारी केस-टू-केस आधार पर इस मुद्दे पर विचार कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप चुनाव करा रहे हैं, लेकिन उसमें मानवीय पहलू और संवेदना भी होनी चाहिए.

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