ओसामा शहाब की ताकत ही बन रही कमजोरी, शहाबुद्दीन का नाम या कांड? कौन पड़ेगा सीवान में भारी

बाहुबली रहे शहाबुद्दीन की सियासी तूती सिर्फ सीवान ही नहीं बल्कि बिहार के कई इलाके में बोला करती थी. शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब रघुनाथपुर सीट से चुनावी मैदान में उतरे हैं तो पिता के नाम पर वोट मांग रहे हैं जबकि जवाब में विपक्ष उनके पिता के कांड की याद दिला रहे हैं.

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बाहुबली रहे शहाबुद्दीन के बेटे ओसाम शहाब की राह कितनी मुश्किल (Photo-ITG) बाहुबली रहे शहाबुद्दीन के बेटे ओसाम शहाब की राह कितनी मुश्किल (Photo-ITG)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 31 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 9:38 AM IST

बिहार के सीवान की सियासत लंबे समय तक बाहुबली रहे शहाबुद्दीन के इर्द-गिर्द सिमटी रही है. अब शहाबुद्दीन की सियासी विरासत उनके बेटे ओसामा शहाब संभालने के लिए चुनावी मैदान में उतरs हैं. यही ओसामा की सबसे बड़ी ताकत है, जिसके चलते राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने उन्हें अपने मौजूदा विधायक का टिकट काटकर रघुनाथपुर से उम्मीदवार बनाया है. यही ताकत उनके लिए सियासी तौर पर कमजोरी भी है, जिसके चलते ही वे विपक्ष के निशाने पर हैं.

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शहाबुद्दीन की दबंगई जगजाहिर है. सीवान ही नहीं बल्कि बिहार के तमाम इलाकों में एक समय शहाबुद्दीन का आतंक था. शहाबुद्दीन ने विधायक बनने से सांसद तक पहुंचने का सफर तय किया. बिहार की सत्ता बदलते ही शहाबुद्दीन का राजनीतिक रसूख भी खत्म होने लगा और अदालत से सजा मिलने के बाद उनकी पत्नी हिना शहाब राजनीतिक मैदान में उतरीं.

हिना शहाब चार बार लोकसभा का चुनाव लड़ी, लेकिन एक बार भी जीत नहीं सकीं. अब शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब ने अपनी सियासी पारी का आगाज अपनी ही गृह सीट रघुनाथपुर से कर रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि ओसामा शहाब क्या जीत का स्वाद चख पाएंगे, क्योंकि उनके पिता के कांड अब उनकी राह में सबसे बड़ी मुश्किल खड़ी कर रहे हैं? 

ओसामा शहाब का जेडीयू से फाइट

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सीवान जिले की रघुनाथपुर विधानसभा सीट पर लगातार दो बार से हरिशंकर यादव विधायक बन रहे थे, जिनको शहाबुद्दीन का करीबी माना जाता था और उन्हीं के पैरवी पर आरजेडी से टिकट मिला था. इसीलिए जब ओसामा शहाब ने रघुनाथपुर सीट से विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की तो विधायक हरिशंकर यादव ने अपनी परंपरागत रघुनाथपुर सीट छोड़ दी है.

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हरिशंकर यादव के फैसले के बाद ओसामा शहाब आरजेडी के टिकट पर रघुनाथपुर से चुनावी पिच पर उतरे हैं. ओसामा के सामने जेडीयू ने विकास कुमार सिंह उर्फ जीशु सिंह को रघुनाथपुर सीट से चुनावी मैदान में उतारा है तो प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज से राहुल कुमार सिंह किस्मत आजमा रहे हैं. इस तरह से ओसामा के सामने विपक्ष ने जबरदस्त तरीके से सियासी चक्रव्यूह रच रखा है.

रघुनाथपुर से क्यों उतरे ओसामा

शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब लगातार चार बार लोकसभा का चुनाव लड़ चुकी हैं, लेकिन अभी तक उन्हें जीत नसीब नहीं हो सकी है.  ऐसे में ओसामा शहाब को अपने लिए एक सुरक्षित सीट की तलाश थी. ऐसे में रघुनाथपुर सीट से ओसामा शहाब का चुनावी मैदान में उतरना सियासी रणनीति का हिस्सा है. 

रघुनाथपुर क्षेत्र के हुसैनगंज का प्रतापपुर गांव शहाबुद्दीन परिवार का पैतृक स्थान है. यहां की सियासत पर शहाबुद्दीन परिवार की अपनी पकड़ है. रघुनाथपुर से विधायक हरिशंकर यादव को शहाबुद्दीन ने ही टिकट दिलाया था. इसी वजह से उन्होंने बेझिझक यह सीट ओसामा शहाब को लड़ने के लिए दी और उनके साथ-साथ लगातार प्रचार कर रहे हैं. 

सीवान संसदीय क्षेत्र में ही रघुनाथपुर विधानसभा सीट आती है. 2024 के लोकसभा चुनाव में हिना शहाब निर्दलीय मैदान में उतरी थीं और जेडीयू की विजयलक्ष्मी देवी से चुनाव हार गई थीं. हालांकि, सीवान लोकसभा चुनाव में सिर्फ रघुनाथपुर विधानसभा क्षेत्र से हिना शहाब को आरजेडी और जेडीयू के उम्मीदवार से ज्यादा वोट मिले थे. इसके चलते ही ओसामा शहाब ने रघुनाथपुर से अपना सियासी डेब्यू करने का फैसला किया. 

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ओसामा की राह क्या होगी आसान

शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब ने अपनी सियासी लॉन्चिंग के लिए सीवान की रघुनाथपुर सीट को चुना है. यह सीट यादव-मुस्लिम समीकरण के लिहाज से बेहतर मानी जाती है. इसी समीकरण के सहारे हरिशंकर दो बार से विधायक बने और अब शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब ने रघुनाथपुर सीट को चुना है ताकि आसानी से जीत दर्ज कर सकें.

रघुनाथपुर विधानसभा सीट पर सबसे बड़ी संख्या में मुस्लिम हैं. यहां पर 23 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं, तो राजपूत वोटर 10 फीसदी हैं. रघुनाथपुर सीट पर 12 फीसदी के करीब यादव वोटर हैं, तो शाह बिरादरी भी करीब 8 फीसदी है. दलित वोटर भी बड़ी संख्या में हैं, तो अतिपिछड़ी जातियां भी निर्णायक भूमिका में हैं.

आरजेडी इस सीट पर मुस्लिम व यादव समीकरण के सहारे जीत दर्ज करती रही है, तो जेडीयू ठाकुर और अति पिछड़ा वर्ग के वोटों के दम पर अपना दबदबा बनाए रखती है. यादव-मुस्लिम फॉर्मूले के सहारे शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब अपनी सियासी नैया पार लगाना चाहते हैं तो जेडीयू के विकास कुमार सिंह अतिपिछड़े और राजपूत वोटों के सहारे जीत का परचम फहराना चाहते हैं.

ओसामा की ताकत ही बनी कमजोरी

शहाबुद्दीन का बेटा होना ओसामा शहाब की सबसे बड़ी ताकत है, जिसके दम पर उन्हें पहचान और रघुनाथपुर सीट से आरजेडी का टिकट मिला. हरिशंकर के जीत में शहाबुद्दीन फैक्टर का अहम रोल रहा है और अब उसी फॉर्मूले पर ही ओसामा शहाब रघुनाथपुर सीट से उतरे हैं.

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 शहाबुद्दीन के बेटे होने की वजह से ओसामा के साथ हरिशंकर यादव दिन रात एक किए हुए हैं, रघुनाथपुर इलाके में लोगों का समर्थन भी इसीलिए उन्हें मिल रहा है. पिता के नाम पर ओसामा शहाब वोट भी मांग रहे हैं. सिवान के इलाके में शहाबुद्दीन को 'एमपी साहब' के नाम से लोग पुकारते थे. ओसामा शहाब अपनी हर सभा में यही बात कहते हैं कि एमपी साहब के काम को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें जिताएं.

ओसामा शहाब की ताकत शहाबुद्दीन हैं तो कमजोरी भी शहाबुद्दीन हैं. साल 2021 में शहाबुद्दीन की मौत हो गई थी, लेकिन अब भी वे प्रासंगिक बने हुए हैं. शहाबुद्दीन 1992 से 2004 के बीच चार बार सीवान के सांसद चुने गए. शहाबुद्दीन की दबंगई वाली छवि के चलते ही हिना शहाब को सीवान संसदीय सीट पर चार बार चुनाव हारना पड़ा है. अब शहाबुद्दीन की बाहुबली छवि और उनके द्वारा अतीत में किए गए कार्यों को लेकर बीजेपी और जेडीयू ओसामा को निशाने पर ले रही है.

बीजेपी-जेडीयू के चक्रव्यूह में ओसामा

जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ रहे विकास कुमार सिंह अपनी हर सभाओं में शहाबुद्दीन का दौर याद दिला रहे. वह कहते हैं कि ओसामा अपने पिता की विरासत के बदौलत आतंक की राजनीति करते हैं. मुख्यमंत्री (सीएम) योगी से लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी सीवान में प्रचार के दौरान शहाबुद्दीन के बहाने आरजेडी को निशाने पर लिया.

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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जब सीवान में एनडीए उम्मीदवारों के समर्थन में जनसभा कर रहे थे, तब उन्होंने शहाबुद्दीन के बहाने ओसामा पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि शहाबुद्दीन के बेटे को आरजेडी ने रघुनाथपुर से टिकट देने का काम किया है, लेकिन सीवान वालों इसी भूमि से लालू-राबड़ी को जवाब दो. ओसामा को नहीं जीतने देंगे, शहाबुद्दीन की विचारधारा को नहीं जीतने देंगे.

योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि मैं जब रघुनाथपुर में आया तो मुझे आश्चर्य हुआ. यहां आकर मैंने देखा कि आरजेडी ने जो प्रत्याशी दिया है वह अपनी खानदानी आपराधिक पृष्ठभूमि के लिए इस भूमि पर ही नहीं बल्कि पूरे दुनिया में कुख्यात रहा. नाम तो देखो ना, जैसा नाम वैसा काम. इस दौरान उन्होंने सीवान के चर्चित तेजाब कांड का जिक्र करते हुए कहा कि यहां चांद बाबू के बेटे पर एसिड डालने का काम किया गया था और अब यह अपराधी फिर से जीवित न होने पाए.

रघुनाथपुर सीट का सियासी समीकरण

रघुनाथपुर विधानसभा सीट हमेशा जिले के लिए खास और राजनीतिक चर्चा के केंद्र में रही है. रघुनाथपुर सीट पर 7 बार कांग्रेस का कब्जा रहा और पिछले दो दशकों से खाली हाथ है. साल 1952, 1962 और 1969 में कांग्रेस के रामानंद यादव जीते तो रामदेव सिंह दो बार (1957 और 1967 में) जीते, 1972 में श्रीनिवासन सिंह विधायक चुने गए थे. 1977 में विक्रम कुंवर विधायक बने.

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1980, 1985 और 1990 में जीत की हैट्रिक लगाने वाले कांग्रेस के विजय शंकर दुबे ने अंतिम बार 2000 में यहां से जीत दर्ज की थी. 2005 में निर्दलीय जगमातो देवी से वह हार गए. 2010 में नए परिसीमन के बाद विधानसभा का चुनाव हुआ तो बीजेपी के विक्रम कुंवर जीते. 2015 में आरजेडी से हरिशंकर यादव को टिकट मिला और वह जीतकर विधायक बने. इसके बाद 2020 में हरिशंकर यादव दोबारा भी जीत दर्ज किए और अब ओसामा शहाब मैदान में है, लेकिन क्या अपने पिता के कांडों के चलते निशाने पर हैं. 

ओसामा क्या बचा पाएंगे पिता की विरासत

शहाबुद्दीन की सियासी विरासत संभाल उतरे ओसामा शहाब के सामने अपने पिता के राजनीतिक वर्चस्व को दोबारा से स्थापित करने की चुनौती है. शहाबुद्दीन की सियासी तूती सीवान ही नहीं बल्कि बिहार में बोलती थी. शहाबुद्दीन खुद जीतते थे और जिस पर हाथ रख देते थे, वह विधायक बन जाता था. 

शहाबुद्दीन की सियासी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए उनकी पत्नी हिना शहाब उतरीं. उन्होंने 2009, 2014, 2019 और 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं मिल सकी. अब हिना शहाब के बेटे ओसामा शहाब चुनावी मैदान में हैं, लेकिन उनके सामने जेडीयू और जन सुराज के सियासी चक्रव्यूह को तोड़ने की चुनौती है. 

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