प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 75वें जन्मदिन पर देशभर के नेता उन्हें शुभकामनाएं दे रहे हैं. अभिनेता से नेता बने शत्रुघ्न सिन्हा ने प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर नरेंद्र मोदी के साथ अपनी दोस्ती को याद किया. शत्रुघ्न सिन्हा ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ अपनी तस्वीर सोशल मीडिया में साझा करते हुए लिखा, 'एक बार का दोस्त, हमेशा के लिए दोस्त.'
प्रधानमंत्री मोदी के 75वें जन्मदिन पर शत्रुघ्न सिन्हा को दोस्ती की याद दिलाने वाले मैसेज के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी के चलते ही शत्रुघ्न सिन्हा ने बीजेपी के साथ अपना 27 साल पुराना नाता तोड़कर 2019 में अलग हो गए थे. कांग्रेस से होते हुए अब वह टीएमसी से सांसद हैं.
अब छह साल बाद फिर प्रधानमंत्री मोदी के साथ शत्रुघ्न सिन्हा को अपनी दोस्ती याद आ रही है. साथ ही वो यह भी कह रहे हैं कि एक बार का दोस्त हमेशा के लिए दोस्त होता है. बिहार चुनाव से ठीक पहले शत्रुघ्न को प्रधानमंत्री मोदी की दोस्ती याद आने के सियासी मायने क्या हैं?
पीएम मोदी के साथ शत्रुघ्न सिन्हा के रिश्ते
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शत्रुघ्न सिन्हा और प्रधानमंत्री मोदी दोनों ने ही अपनी सियासी पारी का आगाज़ बीजेपी से किया है. शत्रुघ्न और मोदी दोनों ही लालकृष्ण आडवाणी खेमे के नेता माने जाते हैं. बॉलीवुड से राजनीति में कदम रखने वाले बड़े नामों में शत्रुघ्न सिन्हा एक हैं, और वो न सिर्फ सियासत में पैठ बनाई बल्कि कई बड़े सितारों की तरह फिर राजनीति छोड़कर सिनेमा में वापस नहीं गए.
बीजेपी में बड़े नेता के तौर पर भी देखे गए और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय मंत्री भी बने. लेकिन, शत्रुघ्न सिन्हा के रिश्ते प्रधानमंत्री मोदी से तब बिगड़ने शुरू हुए, जब 2014 के लिए बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का चयन करना था. 2013 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में राज्यों के चुनाव होने वाले थे, उसी के साथ बीजेपी के लिए प्रधानमंत्री पद का चेहरा तय करने की कवायद हो रही थी.
मोदी के खिलाफ जब शत्रु बन गए शत्रुघ्न
वहीं, गुजरात में 2012 का चुनाव जीत कर प्रधानमंत्री पद की दावेदारी की तरफ नरेंद्र मोदी सबसे तेज़ी से आगे बढ़े थे. 2009 के चुनाव का नेतृत्व मिलने के बाद सत्ता न दिला पाने के चलते संघ आडवाणी को लेकर आगे बढ़ने के मूड में नहीं था. इसकी भनक आडवाणी व उनके खेमे के नेताओं को हुई तो पार्टी में ही मोदी का विरोध शुरू कर दिया. आडवाणी गुट से मोदी के खिलाफ बयान देने वालों में शत्रुघ्न सिन्हा आगे रहे.
शत्रुघ्न सिन्हा ने जुलाई महीने में एक 'फ्रैंक ओपिनियन' में कहा था, 'मोदी को अगर आगे बढ़ना है तो लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में ही बढ़ना होगा. मोदी देश के लोकप्रिय नेता ज़रूर हैं पर आडवाणी जी का आशीर्वाद ज़रूरी है. नरेंद्र मोदी को अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, मुरली मनोहर जोशी, जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा जैसे वरिष्ठ नेताओं के मार्गदर्शन की ज़रूरत है.' शत्रुघ्न की यहीं से मोदी के साथ बात बिगड़ गई.
हालाँकि, बाद में शत्रुघ्न सिन्हा ने ज़रूर कहा कि उनके इस बयान का मतलब 'एंटी-मोदी' होना नहीं है, लेकिन उनकी तमाम सफाई के बाद भी 6 साल में उनके लिए हालात बीजेपी में फिर पहले की तरह सामान्य नहीं हुए. 2014 में बीजेपी की अध्यक्षता राजनाथ सिंह के हाथ में थी. इसलिए शत्रुघ्न सिन्हा को पटना सीट से टिकट मिल गया, लेकिन फिर इसके बाद उन्हें कई मौकों पर कोई तवज्जो नहीं मिली.
शत्रुघ्र की कोशिशों से नहीं बना बैलेंस
2013 में दिए गए बयान के बाद कई बार शत्रुघ्न सिन्हा ने मोदी की तारीफ की पर मामला 'बैलेंस' नहीं हो सका. 2014 चुनाव के बीच शत्रुघ्न ने कहा था कि मोदी के नेतृत्व में पार्टी 272 से ज़्यादा सीटें जीतेगी. शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा कि वे बीजेपी के उन नेताओं में से पहले हैं जिन्होंने कहा था कि मोदी बतौर प्रधानमंत्री बेहतर काम करेंगे. शत्रुघ्न सिन्हा ने यह भी याद दिलाया कि उन्होंने ही पटना की रैली में पहली बार मोदी को 'नमो (NaMo)' की संज्ञा दी थी.
2014 में भारी बहुमत के साथ केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी. अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में मंत्री रह चुके शत्रुघ्न सिन्हा को मोदी कैबिनेट में जगह नहीं मिली. इसके बाद कुछ दिन तक तो शत्रुघ्न सिन्हा शांत रहे, लेकिन बिहार चुनाव से पहले उन्होंने आवाज़ उठानी शुरू कर दी थी.
2014 से 2019 के बीच पाँच साल में शत्रुघ्न सिन्हा बीजेपी में होकर भी नहीं के बराबर थे. वे एक सांसद थे पर उनकी राय और उनकी पूछ कहीं भी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के लिए ज़रूरी नहीं थी. इस दौरान पाँच साल तक शत्रुघ्न सिन्हा दूसरी पार्टी के नेताओं से मिलते रहे. कभी नीतीश कुमार से मिले तो कभी जेल जाकर लालू प्रसाद से मुलाकात की, लेकिन पार्टी ने कभी भाव नहीं दिया.
बिहार चुनाव से बिगड़े रिश्ते क्या होंगे बहाल
2015 में बिहार चुनाव हारने के बाद शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा था कि अगर बीजेपी की जीत की ताली कप्तान को तो गाली भी कप्तान को. इसके बाद से कई मौकों पर उन्होंने कभी मोदी के नेतृत्व की प्रशंसा की पर कई मौकों पर ताने कसे. इसी तरह वे धीरे-धीरे बीजेपी से दूर होते गए और 2019 में बीजेपी का साथ छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए. कांग्रेस से चुनाव लड़े पर जीत नहीं सके. इसके बाद 2020 में उन्होंने अपने बेटे को विधानसभा चुनाव लड़ाया, वह भी जीत नहीं सका.
शत्रुघ्न सिन्हा ने बाद में कांग्रेस छोड़कर टीएमसी का दामन थाम लिया. टीएमसी से पहले राज्यसभा और फिर लोकसभा सदस्य चुने गए. इस दौरान नरेंद्र मोदी को लेकर शत्रुघ्न बयान देते रहे, कभी कड़वे तो कभी मीठे. अब प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन पर जिस तरह से शत्रुघ्न सिन्हा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना दोस्त बताया है और कहा है कि एक दोस्त, हमेशा दोस्त रहता है, क्या बिहार विधानसभा चुनाव से पहले फिर उनका मन बदल रहा है? बीजेपी में जिस तरह से शत्रुघ्न रहे हैं, उस तरह टीएमसी में सियासी तवज्जो नहीं मिली.
शत्रुघ्न सिन्हा क्या बीजेपी में करेंगे वापसी
शत्रुघ्न सिन्हा के इस पोस्ट पर कुछ उनके फॉलोअर्स ने पूछा है कि क्या आप घर वापसी कर रहे हैं? एक ने लिखा कि याद आ रही है, वही बीजेपी वाली पुरानी धमक, ममता बानो से दिल भर गया? भाजपा से नाता तोड़ कर आजतक किस नेता का भला हुआ है? वहीं, दूसरे ने कहा, 'अब समय आ गया है कि मोदी जी शत्रुघ्न सिन्हा को बीजेपी में वापस ले लें. आखिरकार, मतभेद तो रोजमर्रा की जिंदगी में आम बात है.
कुबूल अहमद