उत्तर प्रदेश के 'मुलायम परिवार' की तरह ही बिहार के 'लालू फैमिली' में सियासी वर्चस्व को लेकर राजनीतिक संग्राम इन दिनों छिड़ गया है. यूपी में 2016 के आखिर में भतीजे अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल यादव को 'साइकिल' से उतारकर पैदल कर दिया था. मुलायम कुनबे में सियासी कलह के चलते अखिलेश को 2017 के चुनाव में खामियाजा उठाना पड़ा था और सपा सत्ता में फिर वापसी नहीं कर सकी.
वहीं, बिहार चुनाव से ठीक पहले आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. तेज प्रताप के मामले से आरजेडी उभर भी नहीं पाई थी कि लालू यादव को किडनी देने वाली बेटी रोहिणी आचार्य के सियासी तेवर भी बदले हुए नजर आ रहे हैं.
रोहिणी आचार्य ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (X) पर तेजस्वी यादव, आरजेडी पार्टी और लालू यादव परिवार के तमाम सदस्यों को अनफॉलो कर दिया है. इससे पहले 'बिहार अधिकार यात्रा' के दौरान तेजस्वी यादव की बस के आगे वाली सीट पर संजय यादव के बैठने पर उठाए जा रहे सवाल का रोहिणी आचार्य ने भी समर्थन किया. इस तरह से लालू परिवार का घमासान बिहार चुनाव में आरजेडी के लिए महंगा न पड़ जाए?
लालू परिवार में सियासी 'कलह'
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बिहार विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश के बीच लालू परिवार का 'सियासी कलह' तेजस्वी यादव के लिए चिंता का सबब बन गया. बिहार अधिकार यात्रा की बस पर संजय यादव के अगली सीट पर बैठने को लेकर पटना के आलोक कुमार ने अपने फेसबुक पर लिखा था, 'आगे की सीट सदैव शीर्ष नेतृत्व के लिए होती है, लेकिन कोई स्वयं को उससे बड़ा मानने लगे, तो यह गंभीर संकेत है'. इस पोस्ट को लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने बिना कुछ लिखे अपने सोशल मीडिया पेज से शेयर कर दिया.
रोहिणी आचार्य ने दूसरे पोस्ट में लिखा कि बस में आगे की सीट पर आरजेडी की कोई महिला नेता और अन्य नेता बैठे दिखाई दिए थे. इसके बाद उन्होंने दूसरा पोस्ट डाला जिसमें एक वीडियो था और रोहिणी स्ट्रेचर पर जाती दिख रही थीं. उन्होंने लिखा था, 'जो जान हथेली पर रखते हुए बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने का जज्बा रखते हैं, बेखौफी-बेबाकी-खुद्दारी तो उनके लहू में बहती है'. रोहिणी ने रविवार को लिखा, 'मेरे संदर्भ में ट्रोलर्स, उद्दंडों एवं पार्टी हड़पने की कुत्सित मंशा रखने वालों के द्वारा फैलाए जा रहे तमाम अफवाहें निराधार हैं'. उन्होंने कहा कि मेरी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है. इस तरह से अपनी नाराजगी जाहिर की.
रोहिणी-तेज प्रताप की नाराजगी?
रोहिणी आचार्य ने सोशल मीडिया पर लंबा चौड़ा पोस्ट लिखकर अपनी नाराजगी जाहिर की. साथ ही कहा कि 'मेरे लिए मेरा आत्म-सम्मान, मेरे माता-पिता के प्रति सम्मान व समर्पण, मेरे परिवार की प्रतिष्ठा ही सर्वोपरि है'. इसके बाद रोहिणी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (X) से सभी को अनफॉलो कर दिया. पहले वह 61 लोगों को फॉलो कर रही थीं और अब तीन को फॉलो कर रही हैं, जिनमें परिवार का कोई सदस्य नहीं है. रोहिणी आचार्य के इस कदम से आरजेडी और लालू परिवार में सियासी कलह की चर्चा तेज हो गई.
लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव पहले से बागी तेवर अपनाए हुए हैं. अनुष्का यादव के साथ तेज प्रताप की फोटो वायरल होने के बाद लालू यादव ने तेज प्रताप को 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया था. इसके बाद ही तेज प्रताप यादव ने अलग अपना मोर्चा बना लिया है और चुनावी मैदान में ताल ठोक दी है. अब रोहिणी आचार्य ने जिस तरह से अपनी नाराजगी जाहिर की है और तेज प्रताप जिस तरह उनके समर्थन में उतरे हैं, उससे साफ है कि लालू परिवार में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा.
विधानसभा चुनाव से पहले लालू परिवार में छिड़ा संग्राम आरजेडी के लिए महंगा पड़ सकता है. लालू यादव अपने सियासी वारिस के तौर पर तेजस्वी को ही देखना चाहते हैं. तेज प्रताप के पार्टी और परिवार से बाहर होने के बाद तेजस्वी ने आरजेडी की पूरी कमान अपने हाथों में ले रखी है. तेज प्रताप और रोहिणी आचार्य के बागी तेवर के चलते आरजेडी में कशमकश की स्थिति बन गई है. राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी कहे जाने वाले लालू प्रसाद अपने घर में मची इस जंग को रोकने में कब तक और कहां तक सफल हो पाते हैं, इस पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं, लेकिन चुनावी माहौल में यह आरजेडी के लिए चिंता का सबब बन गया है.
आरजेडी के लिए महंगा न पड़ जाए
2020 के चुनाव में तेजस्वी यादव सत्ता की दहलीज तक पहुंच गए थे, लेकिन बीजेपी-जेडीयू गठबंधन के चलते सरकार बनाने से महरूम रह गए थे. आरजेडी इस बार सत्ता में आने की उम्मीद लगाए हुए है, लेकिन तेज प्रताप यादव के रवैए और रोहिणी आचार्य के तेवर कहीं सारे किए धरे पर पानी न फेर दें. यूपी में अखिलेश यादव को अपने चाचा शिवपाल यादव से सियासी वर्चस्व की जंग लड़ने में सत्ता गंवानी पड़ गई थी.
बिहार के चुनावी माहौल में लालू परिवार में छिड़ा विवाद आरजेडी के लिए दोहरा खतरा है. चुनावी माहौल में लालू यादव परिवार का सियासी कलह विपक्ष के हाथ किसी सियासी हथियार से कम नहीं है. तेज प्रताप के बहाने लालू के साले और पूर्व सांसद साधु यादव अब खुलकर विरोध कर रहे हैं. लालू परिवार के सियासी संग्राम को विपक्ष चुनावी मुद्दा बना सकता है. नीतीश कुमार और बीजेपी इसे तेजस्वी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़े करने के लिए भुना सकते हैं.
संजय यादव का बढ़ता दखल तेजस्वी के लिए दोहरी चुनौती है - एक तरफ परिवार की नाराजगी और दूसरी तरफ विरोधियों के हमले. पार्टी के पुराने नेता और कार्यकर्ता, जो पहले ही संजय यादव के सुपर पावर से दुखी हैं, वे भी अब खुलकर बगावती तेवर अपना सकते हैं. संजय यादव हरियाणा से हैं, जिसे लेकर तमाम सवाल खड़े होते रहे हैं.
तेजस्वी यादव बिहार में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं, लेकिन अगर परिवार ही उनके खिलाफ बंटा हुआ दिखता रहा तो चुनाव में यह वोटों के बिखराव का कारण बन सकता है. रोहिणी जैसी लोकप्रिय और भावनात्मक जुड़ाव वाली शख्सियत, जिन्होंने पिता को किडनी दान दी थी, का विरोध खुलकर सामने आना पार्टी की साफ-सुथरी तस्वीर को धुंधला कर सकता है. अगर यह कलह जल्द नहीं सुलझी तो चुनावी मैदान में यह आरजेडी का खेल बिगाड़ सकती है.
कुबूल अहमद