छह नवंबर को 121 विधानसभा सीटों पर वोटिंग होगी और अगर पिछले दस सालों के आंकड़ों को देखें तो बिहार में मतदाताओं के व्यवहार में दिलचस्प बदलाव नजर आता है. मुज़फ्फरपुर के मीनापुर विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो यहां पिछले तीन चुनावों में लगातार 60% से ज़्यादा मतदान हुआ है. ये बिहार के सबसे ज्यादा वोटिंग वाले इलाकों में से एक है. लेकिन पटना के कुंम्हरार सीट की तस्वीर बिल्कुल उलटी है. यहां 2020 में सिर्फ 35.3% वोटिंग हुई जो पहले फेज की सभी 121 सीटों में सबसे कम थी.
आंकड़े बोले- गांव आगे, शहर पीछे
2010 से 2020 के बीच पहले फेज की सीटों में औसत वोटिंग 52.1% से बढ़कर 56.1% हो गई. यानी लगभग 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी.
ये बदलाव मामूली नहीं है. यहां 121 में से 112 सीटों पर वोटिंग बढ़ी है. 2015 में भी मतदान दर 55.9% रही थी और 2020 में कोरोना महामारी के बावजूद इसमें गिरावट नहीं आई.
दरभंगा का उभार
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दरभंगा जिला इस बदलाव का सबसे बड़ा उदाहरण है. साल 2010 में यहां की औसत वोटिंग सिर्फ 47.6% थी, लेकिन 2020 में बढ़कर 56.4% हो गई यानी करीब 9 प्रतिशत का उछाल.
हर विधानसभा सीट पर साफ दिखा ये रुझान
| विधानसभा सीट | 2010 | 2020 | बढ़ोतरी |
| गौरा बौराम | 46.3% | 57.2% | +10.9 |
| अलीनगर | 47.3% | 57.4% | +10 |
| हायाघाट | 49.4% | 59.1% | +9.7 |
| केवटी | 46.7% | 56.4% | +9.7 |
| जाले | 44.6% | 54.1% | +9.5 |
मुजफ्फरपुर में लगातार ऊंची वोटिंग
अगर दरभंगा बदलाव की कहानी है तो मुजफ्फरपुर स्थिरता की कहानी है. साल 2020 में सबसे ज्यादा वोटिंग वाली पांचों सीटें इसी जिले से थीं, देखें डेटा.
मीनापुर- 65.3%
बोचाहा (SC)- 65.1%
कुरहनी- 64.2%
कांटी- 63.3%
सकरा (SC)- 63%
मुज़फ्फरपुर की तीन चुनावों की औसत वोटिंग 59.8% रही है जो फेज-1 की औसत से 10% ज़्यादा है.
शहरी पटना पिछड़ रहा है. वहीं, पटना की स्थिति बिल्कुल उलटी है. साल 2020 में सबसे कम वोटिंग वाली पांच में से तीन सीटें पटना की थीं. देखें डेटा-
कुंम्हरार- 35.3%
बांकीपुर- 35.9%
दीघा- 36.9%
कुंम्हरार में 2010 में 37.3% वोटिंग थी जो 2020 में घटकर 35.3% रह गई. यानी जहां गांवों में मतदाता बढ़ रहे हैं, वहीं शहरों में लोग मतदान से दूर हो रहे हैं.
क्या कड़े मुकाबले से बढ़ता है वोटिंग प्रतिशत?
आम धारणा है कि जब मुकाबला कड़ा होता है तो ज्यादा लोग वोट डालने आते हैं लेकिन बिहार के आंकड़े कुछ और कहते हैं. साल 2020 में वोटिंग प्रतिशत और जीत के अंतर में नकारात्मक रिश्ता (-0.169) पाया गया यानी जहां जीत का अंतर ज्यादा था, वहां वोटिंग दर भी थोड़ी ज्यादा रही.
उदाहरण के लिए हिलसा (नालंदा) में सिर्फ 12 वोटों से जीत हुई लेकिन वहां वोटिंग 54.8% रही, जो औसत से कम है. वहीं मीनापुर और बोचाहा जैसी सीटों पर मुकाबला उतना करीबी नहीं था, फिर भी वोटिंग सबसे ज्यादा हुई.
6 नवंबर को क्या उम्मीद की जाए
पिछले दस साल के डेटा से जो रुझान निकलता है, वो कुछ इस प्रकार हैं.
कुल मतदान दर: 56-57% रहने की उम्मीद.
मुज़फ्फरपुर फिर आगे रहेगा: मीनापुर, बोचाहा, कुरहनी जैसी सीटों पर 60% से ऊपर वोटिंग संभव.
पटना की शहरी सीटों में गिरावट जारी: 40% से नीचे रहने की संभावना.
दरभंगा की रफ्तार कायम: अब औसत 55–58% के बीच.
कड़े मुकाबले से फर्क नहीं पड़ेगा: भीड़ लाने में जनसंपर्क और सामाजिक भागीदारी ज्यादा असर डालेंगे.
असली सवाल
अब बड़ा सवाल ये है कि वोटिंग बढ़ क्यों रही है और वो भी इतनी असमानता के साथ? दरभंगा में इतनी तेज बढ़ोतरी क्यों हुई जबकि पास का मधेपुरा जिला सिर्फ 1.9 प्रतिशत ही बढ़ा? मुजफ्फरपुर लगातार आगे क्यों है और पटना क्यों पिछड़ गया? इसका जवाब शायद सिर्फ चुनावी आंकड़ों में नहीं बल्कि स्थानीय नेतृत्व, पलायन, विकास और सामाजिक जागरूकता जैसे कारणों में छिपा है.
लेकिन इतना तय है कि 6 नवंबर को ग्रामीण बिहार फिर बढ़चढ़कर मतदान करेगा. शहरी बिहार शायद नहीं. इस विश्लेषण में चुनाव आयोग के 2010, 2015 और 2020 के आधिकारिक आंकड़ों का उपयोग किया गया है. सभी आंकड़े पंजीकृत मतदाताओं में से वोट डालने वालों के प्रतिशत को दिखाते हैं.
दीपू राय