बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में NDA ने अपनी मेहनत और रणनीति का भरपूर फायदा उठाया. भाजपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि यह जीत अचानक नहीं आई, बल्कि महीनों पहले शुरू किए गए प्लानिंग, गठबंधन प्रबंधन और सटीक संदेश पर आधारित थी. एनडीए ने चुनाव से पहले ही हर सीट का जातिगत आंकलन किया और यह सुनिश्चित किया कि चाहे सीटें गठबंधन के अन्य पार्टनर को जाएं, जातीय संतुलन उनके हिसाब से बना रहे. पार्टी का दावा है कि यह फार्मूला लगभग 95 प्रतिशत सीटों पर सफल रहा.
हर विधानसभा क्षेत्र में कई बैठकें आयोजित कीं गईं
एनडीए ने हर विधानसभा क्षेत्र में कई बैठकें आयोजित कीं, जिससे स्थानीय कार्यकर्ताओं का मनोबल बना रहा. पिछले चुनावों के मुकाबले इस बार बीजेपी, JDU और छोटे सहयोगी दलों के बीच समन्वय बेहतर रहा. प्रारंभिक स्तर पर कार्यकर्ताओं की सक्रियता ने अभियान की गति तय की.
चिराग पासवान के साथ रणनीतिक गठबंधन
2020 की तुलना में इस बार एनडीए ने LJP (रामविलास) नेता चिराग पासवान की सीट शेयरिंग मांगों को स्वीकार किया. रणनीतिक विशेषज्ञ बताते हैं कि इस बार फोकस यह नहीं था कि चिराग कितनी सीट जीतेंगे, बल्कि उनके लगभग 6 प्रतिशत पारंपरिक वोट बैंक को कंसोलिडेट करना था.
लीडरों की तैनाती और क्षेत्रीय संतुलन
भाजपा ने पूरे राज्य में विभिन्न स्तरों पर नेताओं को तैनात किया. मगध और शाहाबाद जैसे क्षेत्रों में पार्टी ने जातिगत गठबंधन को ध्यान में रखते हुए अभियान चलाया. यहां भोजपुरी अभिनेता पवन सिंह की लोकप्रियता को उपेंद्र कुशवाहा के प्रभाव के साथ जोड़ा गया, ताकि राजपूत और कुशवाहा वोट बैंक को एकजुट किया जा सके.
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प्रशांत किशोर पर चुप्पी
दिलचस्प बात यह है कि भाजपा ने अधिकांश समय जनसुराज पार्टी प्रमुख प्रशांत किशोर के आरोपों पर चुप्पी साधे रखी. पार्टी का मानना था कि उनकी प्रतिक्रिया देने से उनका महत्व बढ़ता, इसलिए इसे नजरअंदाज किया गया.
जमीनी हकीकत को समझना
पार्टी ने महसूस किया कि बिहार के अंदरूनी इलाकों के लोग अब तक हवाई अड्डों, हाईवे और बड़े बुनियादी ढांचे के सीधे लाभ नहीं देख पाए थे. इसलिए सरकार ने सुनिश्चित किया कि सीधे कैश ट्रांसफर, राशन और तत्काल राहत जैसी योजनाएं इन मतदाताओं तक पहुंचे. भाजपा सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी चुनावी घोषणाओं पर बारीकी से नजर रखी, लेकिन ऐसा नहीं कि यह केवल मुफ्त लाभ में बदल जाए.
लीडरशिप और भरोसा
अंत में नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार का भरोसा और नेतृत्व निर्णायक साबित हुआ. चुनाव अभियान के वरिष्ठ प्रबंधकों का कहना है कि लोग देख चुके हैं कि इस तरह की शासन व्यवस्था अन्य राज्यों में सफल रही है, जबकि विपक्ष अपनी बातों पर खरा नहीं उतर पाया.
कुल मिलाकर, भाजपा की सटीक जातिगत गणित, जमीनी स्तर पर तालमेल और विश्वसनीयता पर जोर ने एनडीए को विजयी बनाते हुए यह साबित कर दिया कि यह जीत सिर्फ भावनाओं पर नहीं, बल्कि रणनीति और योजना पर आधारित थी.
पीयूष मिश्रा