बिहार चुनाव से पहले 'भूरा बाल साफ करो' का नारा चर्चा में क्यों? आनंद मोहन बार-बार क्यों कर रहे जिक्र

बिहार चुनाव करीब हैं और सूबे में 1990 के दशक के चर्चित नारे 'भूरा बाल साफ करो' को लेकर सियासी घमासान छिड़ा हुआ है. यह नारा चर्चा में क्यों है और जेडीयू के वरिष्ठ नेता आनंद मोहन बार-बार इसका जिक्र क्यों कर रहे हैं?

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1990 के दशक का चर्चित नारा फिर चर्चा में कैसे आया (Photo: ITG) 1990 के दशक का चर्चित नारा फिर चर्चा में कैसे आया (Photo: ITG)

बिकेश तिवारी

  • नई दिल्ली,
  • 19 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 7:47 AM IST

बिहार में चुनाव हैं और प्रचार भी जोर पकड़ रहा है. सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से लेकर विपक्षी महागठबंधन तक, हर दल और गठबंधन के बड़े-बड़े नेता सत्ता की जंग जीतने के लिए समीकरण सेट करने की जुगत में जुटे हैं. नेताओं के दौरे जारी हैं, यात्राओं का दौर जोरों पर है और उतना ही शोर एक पुराने नारे का भी गूंजने लगा है. यह नारा है 'भूरा बाल साफ करो' का. 90 के दशक का यह चर्चित नारा वर्षों या यूं कहें कि दशकों बाद फिर से चर्चा में है.

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बिहार में जनता दल (यूनाइटेड) के वरिष्ठ नेता पूर्व सांसद आनंद मोहन ने बिहार के मुजफ्फरपुर में रघुवंश-कर्पूरी विचार मंच की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि भूरा बाल ही तय करेगा कि बिहार के सिंहासन पर कौन बैठेगा. सवर्णों को भूरा बाल कहकर संबोधित किया जाता था, तब आप लोग किंगमेकर थे. समय बदल गया है और अब सिंहासन पर आप हैं. हम तय करेंगे कि उस सिंहासन पर कौन बैठेगा.

आजतक से खास बातचीत में भी आनंद मोहन ने अपना बयान दोहराया और कहा कि ये बयान (भूरा बाल साफ करो) पिछड़ों को गोलबंद करने की कोशिश है. लेकिन अब 90 का दशक नहीं है. 90 के दशक में लालू यादव पिछड़ों के नेता थे, लेकिन अति पिछड़ा और दलित उनसे अलग हो गए. आनंद मोहन भूरा बाल साफ करो के नारे को लेकर मुखर हैं. लेकिन इस नारे पर चर्चा की शुरुआत कैसे हुई?

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कैसे चर्चा में आया भूरा बाल का नारा

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दरअसल, जुलाई के महीने में 10 तारीख को गया में आरजेडी का एक कार्यक्रम था. इस कार्यक्रम में आरजेडी के एक स्थानीय नेता ने भूरा बाल साफ करो के नारे का जिक्र करते हुए कहा था कि इसकी वापसी का समय आ गया है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 17 जुलाई को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अपने ऑफिशियल हैंडल से आरजेडी के एक नेता का वीडियो शेयर किया था.

इस वीडियो में आरजेडी की टोपी पहने बुजुर्ग से नजर आने वाले नेता जी भूरा बाल नारे का मतलब समझाते नजर आ रहे हैं. बीजेपी ने भूरा बाल को लेकर फेसबुक पर भी अपने पेज से पोस्ट किया था. 17 जुलाई को शेयर की गई इस पोस्ट में लिखा है कि भूरा बाल साफ करो कोई नारा नहीं, बल्कि लालू यादव की सोची-समझी साजिश थी. बिहार के सवर्ण समाज को जातियों में तोड़ने की, नफरत की राजनीति करने की.

भूरा बाल नारे का इतिहास क्या

बिहार के गांव-गलियों तक 1990 के दशक में इस नारे की गूंज थी. यह वही दौर था, जब बिहार की राजनीति में प्रभुत्व सवर्ण जातियों से शिफ्ट हो रहा था. लालू यादव मुख्यमंत्री थे और जातीय नरसंहार हो रहे थे. सवर्णों के खिलाफ अन्य पिछड़ा वर्ग और दलितों के साथ ही अनुसूचित जनजाति को गोलबंद करने के लिए इस नारे का खूब इस्तेमाल हुआ.

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तब यह कहा गया कि लालू यादव ने गैर सवर्ण जातियों को अपने पक्ष में लामबंद करने के लिए यह नारा दिया है. लालू यादव और उनका परिवार 15 साल तक बिहार की सत्ता पर काबिज रहा, तो उसके पीछे भी इस नारे को अहम फैक्टर कहा जाता है. हालांकि, लालू यादव खुद कई मौकों पर यह कह चुके हैं ऐैसा कोई नारा हमने कभी नहीं दिया.

लालू यादव ने एक इंटरव्यू में कहा था कि कोई भी मुख्यमंत्री इस तरह के नारे नहीं दे सकता. वह इसे झूठ और गलत बताते हुए यह साबित करने की चुनौती देते रहे हैं, कि उन्होंने ही यह नारा दिया था. बिहार के एक डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म के आयोजन में इसी महीने (सितंबर) की शुरुआत में आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष मंगनी लाल मंडल पहुंचे थे. उन्होंने भी इस नारे को झूठ बताया और आरोप लगाया कि लालू यादव को सत्ता से हटाने के लिए यह नारा गढ़ा गया था, साजिश रची गई थी.

बिहार में सवर्णों की आबादी कितनी

भूरा बाल का मतलब बताते हुए आरजेडी नेता ने (बीजेपी के एक्स हैंडल से पोस्ट वीडियो में) कहा था कि भू से भूमिहार, रा से राजपूत, बा से ब्राह्मण और ल से लाला. अब बिहार की जातिगत जनगणना-2023 के मुताबिक सूबे की कुल आबादी में भूमिहार की भागीदारी 2.87%, राजपूतों की 3.45%, ब्राह्मण की 3.65% और लाला यानी कायस्थों की भागीदारी 0.60% है.

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कुल मिलाकर देखें, तो बिहार की कुल आबादी में इन चार जातियों की भागीदारी ही 10.57 फीसदी पहुंच जा रही है. प्रतिनिधित्व की बात करें तो बिहार की कुल 40 में से 12 सांसद अगड़ी जातियों से हैं. यह 30% पहुंचता है. 243 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा में 64 सवर्ण 2020 का विधानसभा चुनाव जीते थे. विधानसभा में सवर्णों का प्रतिनिधित्व 26% है.

ये आंकड़े बिहार की सियासत में सवर्ण जातियों का प्रभाव दर्शाते हैं. इस मुद्दें को लेकर जेडीयू के वरिष्ठ नेता आनंद मोहन लगातार मुखर हैं, तो उसके पीछे सवर्ण वोटर को एनडीए के पक्ष में एकजुट रखने की कोशिश ही बताई जा रही है.

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बिहार की सियासत में प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज के उभार के बाद एनडीए को सवर्ण वोट बैंक में सेंध की आशंका सता रही है. वहीं, दूसरी तरफ तेजस्वी यादव की कोशिश आरजेडी का वोट बेस बढ़ाने की है. आरजेडी की नजर नए वोटर ब्लॉक्स को अपने साथ जोड़ने पर है.

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आरजेडी का फोकस भूमिहार वर्ग पर भी है. पिछले ही महीने बेगूसराय के पूर्व जेडीयू विधायक बोगो सिंह आरजेडी में शामिल हो गए थे. बोगो सिंह भी भूमिहार समाज से आते हैं. तेजस्वी यादव ने डिप्टी सीएम रहते भूमिहार वर्ग से समर्थन की अपील की थी और कहा था कि आपके दरवाजे मेरे लिए हमेशा खुले रहें. ऐसे में भूरा बाल नारे की इस डिबेट का चुनाव नतीजों पर क्या और कितना इम्पैक्ट होगा, यह देखना होगा.

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