पूरे देश में NRC यानी नागरिकता रजिस्टर और CAA यानी नागरिक संशोधन कानून को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. लेकिन क्या कैबिनेट से मंजूरी मिलने वाले एनपीआर और एनआरआईसी के बारे में आपको पता है. अगर आप एनआरसी और सीएए के विरोध या समर्थन में हैं तो आपके लिए बहुत जरूरी है कि इससे जुड़े सभी मिथकों की पड़ताल कर लें.
फोटो: असम में कैब को लेकर हुए प्रदर्शन की तस्वीर
Image: AP
आपको बता दें कि असम के NRC के अलावा NPR (National Population Register) और NRIC (National Register of Indian Citizens) के तहत ‘अवैध प्रवासियों’ के पहचान की प्रक्रिया भी सामने है. इस प्रक्रिया में मनमानेपन और दुरुपयोग की पूरी गुंजाइश है और इन सभी में 'संदिग्ध मुसलमानों' को छांटकर डिटेंशन सेंटर में भेजने की आशंका दिख रही है.
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नागरिकता संशोधन एक्ट 2019 (CAA) को लेकर कई इलाकों में हिंसा भी हुई है. इस कानून को लेकर लोगों में काफी भ्रम की स्थिति है. साथ ही इसको लेकर भी काफी भ्रम है कि यह पॉपुलेशन रजिस्टर (PR), नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (NPR), नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (NRC) और नेशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन सिटीजन्स (NRIC) से किस तरह से जुड़ा है. हम तमाम सरकारी गजट नोटिफिकेशन, कानूनों और नियमों के द्वारा ऐसे तमाम भ्रम और मिथक दूर कर रहे हैं.
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31 जुलाई, 2019 के गैजेट नोटिफिकेशन के साथ ही देश भर में एक नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (NRC) तैयार करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. इस नोटिफिकेशन में कहा गया है कि ‘सिटीजनशिप रूल्स 2003 (रजिस्ट्रेशन ऑफ सिटीजन्स ऐंड इश्यू ऑफ नेशनल आइडेंटिटी कार्ड्स) के नियम 3 के उपनियम 4 के अनुसार यह तय किया गया है कि जनसंख्या रजिस्टर (PR) को तैयार और अपडेट किया जाए साथ ही असम के अलावा पूरे देश में घर-घर गणना के लिए फील्डवर्क किया जाए. इसके तहत 1 अप्रैल 2020 से 30 सितंबर 2020 के बीच स्थानीय रजिस्ट्रार के दायरे में रहने वाले सभी लोगों के बारे में जानकारी जुटाई जाएगी.
NRIC के नाम से नोटिफाइड है NRC
31 जुलाई, 2019 का ऑफिशियल गैजेट नोटिफिकेशन
के अनुसार असम में ‘सिटीजनशिप रूल्स 2003 (रजिस्ट्रेशन ऑफ सिटीजन्स ऐंड इश्यू ऑफ नेशनल आइडेंटिटी कार्ड्स) का नियम 3 ‘नेशनल रजिस्टर फॉर इंडियन सिटीजन्स (NRIC)’ की अवधारणा के बारे में है. वहीं इसका उप-नियम 4 ‘नेशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन सिटीजन्स की तैयारी’ की बात कहता है. इससे किसी का यह भ्रम दूर हो जाना चाहिए कि देश भर में एनआरसी लाने की घोषणा अभी तक नहीं हुई है. बस
अंतर यह है कि इसे NRIC कहा जा रहा है और इसमें असम शामिल नहीं है. NRC
अभी तक असम के लिए ही सीमित रहा है जो 1985 के असम समझौते के मुताबिक ही
लाया गया था.
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जनसंख्या रजिस्टर और NRIC का ये है कनेक्शन
गैजेट
नोटिफिकेशन में कहा गया है कि NRIC की तैयारी की दिशा में पहला कदम
‘पॉपुलेशन रजिस्टर’ होगा. 2003 रूल्स के नियम 3 का उप-नियम (5) कहता है,
‘भारतीय नागरिकों के स्थानीय रजिस्टर में जनसंख्या रजिस्टर से उपयुक्त
वेरिफिकेशन के बाद लोगों का विवरण शामिल होगा.
PR/NPR और NRC/NRIC के बीच जुड़ाव
गैजेट
नोटिफिकेशन में यह बात भी साफ है कि जनसंख्या रजिस्टर (PR) के लिए घर-घर
जाकर गणना ‘1 अप्रैल 2020 से 30 सितंबर, 2020’ तक की जाएगी. यह NRIC की
दिशा में पहला कदम होगा जैसा कि उप नियम (5) कहता है कि इसे जनसंख्या
रजिस्टर से ‘उपयुक्त वेरिफिकेशन’ के बाद तैयार किया जाएगा.
क्या है जनसंख्या रजिस्टर और NRIC?
सिटीजनशिप (रजिस्ट्रेशन ऑफ
सिटीजन्स ऐंड इश्यू ऑफ नेशनल आइडेंटिटी कार्ड्स) रूल्स 2003 में जनसंख्या
रजिस्टर को इस तरह से परिभाषित किया गया है: 'जनसंख्या रजिस्टर का मतलब यह
है इसमें किसी गांव या ग्रामीण इलाके या कस्बे या वार्ड या किसी वार्ड या
शहरी क्षेत्र के सीमांकित इलाके में रहने वाले लोगों का विवरण शामिल होगा.'
NRIC के बारे में इसमें कहा गया है: ' नेशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन
सिटीजन्स का मतलब है कि इस रजिस्टर में भारत और भारत के बाहर रहने वाले
भारतीय नागरिकों का विवरण होगा.' NRIC को चार हिस्सों में बांटा जाएगा:
(a) भारतीय नागरिकों का स्टेट रजिस्टर (b) भारतीय नागरिकों का डिस्ट्रिक्ट
रजिस्टर (c) भारतीय नागरिकों का सब-डिस्ट्रिक्ट रजिस्टर और (d) भारतीय
नागरिकों का स्थानीय रजिस्टर .
'इसमें वे विवरण होंगे जो केंद्र सरकार रजिस्ट्रार जनरल ऑफ सिटीजन्स रजिस्ट्रेशन की सलाह से निर्धारित करेगी. (नियम 3)
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जनसंख्या रजिस्टर को NRIC में कैसे बदला जाएगा?
नियम 4 का उपनियम
(3) कहता है कि भारतीय नागरिकों के स्थानीय रजिस्टर की तैयारी और इसमें
लोगों को शामिल करने के लिए जनसंख्या रजिस्टर में हर परिवार और व्यक्ति का
जो विवरण है उसको स्थानीय रजिस्ट्रार द्वारा सत्यापित और जांच किया जाएगा.
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कैसे होगी 'संदिग्ध नागरिकों' की पहचान और पुष्टि
2003 रूल्स के
नियम 4 के उपनियम (4) में यह बहुत साफ है कि इस वेरिफिकेशन और जांच
प्रक्रिया में क्या होगा: 'वेरिफिकेशन प्रक्रिया के तहत जिन लोगों की
नागरिकता संदिग्ध होगी, उनके विवरण को स्थानीय रजिस्ट्रार आगे की जांच के
लिए जनसंख्या रजिस्टर में उपयुक्त टिप्पणी के साथ देंगे. ऐसे लोगों और उनके
परिवार को वेरिफिकेशन की प्रक्रिया खत्म होने के तत्काल बाद एक निर्धारित
प्रो-फॉर्मा में दिया जाएगा.
मनमानेपन की गुंजाइश
इस तरह प्रक्रिया स्पष्ट है: 'संदिग्ध
नागरिकों' का नाम जनसंख्या रजिस्टर में आगे की जांच के लिए टिप्पणी के साथ
होगा और इसके बाद इसकी जानकारी उसके परिजनों को भी दी जाएगी.
लेकिन
यहीं मनमानेपन का रास्ता दिखता है. इसकी वजह यह है कि (a) यह साफ नहीं है
कि 'संदिग्ध नागरिक' मानने या पहचान करने का आधार क्या होगा, (b) किस तरह
का खास प्रो-फॉर्मा होगा, वह अभी तक सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आया है.
साफ है कि जब तक इस बारे में ब्योरा नहीं आता और छप नहीं जाता इस प्रक्रिया
को अपारदर्शी ही माना जाएगा.
2003 रूल्स का उद्देश्य NRIC
प्रोजेक्ट को लागू करने के लिए व्यावहारिक निर्देश और प्रक्रिया उपलब्ध
करना है. लेकिन किसी विशेष प्रक्रिया के उपलब्ध न होने से यह साफ है कि
इसमें मनमानेपन की गुंजाइश है जो स्थानीय अधिकारियों की झक और मनमौज पर
आधारित हो सकती है. हालांकि इसे और एनआरआईसी लाने के जुलाई 2019 के गैजेट
नोटिफिकेशन को कोलकाता हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है. यह मनमानापन और भी बढ़ सकता है, क्योंकि नियम 4 का उपनियम (5) कहता है कि
'संदिग्ध नागरिकों' को NRIC में शामिल करने या न करने के अंतिम निर्णय से
पहले उनकी सुनवाई सिटीजन रजिस्ट्रेशन के सब-डिस्ट्रिक्ट (तहसील या तालुका)
रजिस्ट्रार के यहां होगी, लेकिन इसमें यह साफ नहीं किया गया है कि इस
प्रक्रिया के पालन के लिए किस तरह के दस्तावेज की जरूरत होगी.
इसके
विपरीत असम में देखें तो दस्तावेज मांगने और वेरिफिकेशन की पूरी प्रक्रिया
काफी स्पष्ट और पारदर्शी थी, लेकिन इसके बावजूद वहां बड़ी संख्या में लोगों
को फॉरेनर्स ट्राइब्यूनल की शरण में जाना पड़ा है.
फोटो: दिल्ली के जंतर मंतर में हुए प्रोटेस्ट की तस्वीर
PR/NPR और NRIC का जनगणना से संबंध
जनगणना एकदम अलग प्रक्रिया है. NRIC
प्रक्रिया में अलग बात कही गई है इसके मुताबिक 'भारतीय नागरिकों के स्थानीय रजिस्टर
का प्रारूप तहसील या तालुका रजिस्ट्रार द्वारा प्रकाशित किया जाएगा, ताकि
उसके बारे में लोगों की किसी तरह की आपत्ति या इसमें शामिल करने के अनुरोध
को स्वीकार किया जाए... ' 2003 रूल्स के नियम 4 का उपनियम (6) (a).
जनगणना
का ब्योरा जैसे लोगों का नाम, उनका पता या अन्य ब्योरा प्रकाशित नहीं
किया जाता या किसी भी अन्य प्रक्रिया के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता. इसके
अलावा जनगणना एक अलग कानून (सेंसस एक्ट ऑफ 1948) के तहत किया जाता है.
दूसरी तरफ, PR/NPR और NRIC को 1955 के सिटीजनशिप (संशोधन) एक्ट (2003 का CAA) और 2003 रूल्स के तहत किया जा रहा है.
फोटो: देश के विभिन्न हिस्सों में नागरिकता संसोधन बिल का विरोध
PR/NPR और NRIC की शुरुआत किसने की
कहा जाता है कि इसे कांग्रेस ने शुरू किया, लेकिन हकीकत ये है कि इसे वाजपेयी सरकार में संशोधन के द्वारा शुरू किया गया. इस मिथक से जुड़ा प्रमुख सवाल यह है कि जनसंख्या रजिस्टर (PR) और NRIC को सिटीजनशिप एक्ट 1955 में कब शामिल किया गया?
इसका जवाब ये है कि साल
2003 में तत्कालीन एनडीए सरकार के दौरान सिटीजनशिप एक्ट 1955 में एक
सिटीजनशिप (संशोधन) एक्ट 2003 (CAA of 2003) लाया गया और इसके द्वारा (a)
'अवैध प्रवासी' और (b) भारतीय नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर (NRIC) इसमें
शामिल किया गया.
साल 2003 के CAA के खंड 2 में कहा गया है: 'अवैध प्रवासी' का मतलब ऐसे
भारतीय से है जो भारत में घुसा हो - 1. बिना वैध पासपोर्ट या यात्रा
दस्तावेज और अन्य किसी दस्तावेज के जो कि कानून के मुताबिक जरूरी हो 2.
कानून के मुताबिक वैध पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेज या अन्य दस्तावेज के साथ
तो आया हो, लेकिन निर्धारित अवधि से ज्यादा दिन तक रुक गया हो या रह रहा
हो.
दूसरी तरफ, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) की प्रक्रिया सबसे पहले साल
2010-11 में यूपीए सरकार के दौर में शुरू की गई थी. लेकिन वरिष्ठ सूत्र
बताते हैं कि इसे कभी भी NRIC की तैयारी तक आगे नहीं बढ़ाया गया, क्योंकि
यूपीए सरकार 'आधार' जैसे बड़े प्रोजेक्ट में लग गई. इसके बाद फिर 2015 में
NPR को अपडेट किया गया, लेकिन इस बार भी यह NRIC के स्तर तक नहीं पहुंचा.
फोटो: डिटेंशन कैंप
Image: Reuters
पिछले दरवाजे से NRIC
रोचक बात यह है कि न तो मुख्य कानून
'सिटीजनशिप एक्ट 1955' में जनसंख्या रजिस्टर का उल्लेख था और न हीं इसका
उल्लेख 2003 के संशोधन के बाद है. इसे 2003 रूल्स के द्वारा लाया गया था. पश्चिम
बंगाल के नागरिक अधिकार संगठन एसोसिएशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक
राइट्स (APDR) ने इस बात को उजागर किया था कि किस तरह से जनगणना 2021 के
बहाने पश्चिम बंगाल में पिछले दरवाजे से एनआरआईसी को लाने की कोशिश की जा
रही है. APDR के रंजीत सूर सवाल उठाते हैं कि सिर्फ 2003 रूल्स के सहारे इस
तरह के देशव्यापी कवायद का कानूनी आधार कितना मजबूत है. वह कहते हैं कि
उन्होंने कई वकीलों से बात की और सबने इस पर संदेह जारी किया है क्योंकि
मुख्य कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है.
इस
बात के उजागर होने के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने
राज्य में जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) का काम रोक दिया था. अब बिहार,
ओडिशा, पंजाब, तेलंगाना, केरल और दिल्ली सहित 10 राज्यों के मुख्यमंत्री ने
NPR और NRIC का विरोध किया है.
NPR, NRC और CAA का क्या है एक दूसरे से कनेक्शन
ये सभी एक-दूसरे से जुड़े हैं और इनसे 'संदिग्ध' मुसलमान बाहर हो सकते हैं. इस
बारे में हम गृहमंत्री के बयान को अगर नजरअंदाज भी कर दें तो भी 2003 के
CAA के द्वारा 'अवैध प्रवासी' और NRIC के बीच साफ लिंक स्थापित किया गया
है. CAA (of 2019) में नागरिकता हासिल कर सकने वाले 'प्रवासियों' की सूची
से मुसलमानों को छांट दिया गया है.
आजतक-इंडिया टुडे को वे दस्तावेज
हासिल हुए है जो जिलाधिकारियों और एडिशनल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (ADM)
को भेजे गए हैं. इस दस्तावेज में यह बताया गया है कि 'नेशनल पॉपुलेशन
रजिस्टर-2020 को तैयार करने के लिए लोगों से क्या जानकारी हासिल करनी है.
इसके
पेज नंबर 2, कॉलम 3 में कहा गया है, 'माता-पिता के जन्म का स्थान, यदि
भारत में है तो राज्य और जिले का नाम लिखे. यदि भारत से बाहर का है, तो देश
का नाम लिखें और जिले का कॉलम हाइफन (-) लगाकर खाली छोड़ें.
घातक संकेत: NPR-2020 में 'अवैध प्रवासियों' के पहचान की बात की गई है
यह इस बात का घातक संकेत है कि NPR-2020 को अवैध प्रवासियों के पहचान के लिए लाया गया है. एक बार जब यह हो जाएगा तो CAA (2019) के द्वारा सभी 'अवैध और संदिग्ध मुस्लिमों' को छांटकर बाहर कर दिया जाएगा और उन्हें देश भर में बने डिटेंशन सेंटर में भेज दिया जाएगा.
सच तो यह है कि पॉपुलेशन रजिस्टर के गैजेट नोटिफिकेशन छपने (31 जुलाई 2019) के 2 दिन पहले एक प्रमुख राष्ट्रीय अखबार ने यह खुलासा किया कि केंद्र सरकार ने सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों से यह कहा है कि वे अवैध प्रवासियों को रखने लायक कम से कम एक डिटेंशन सेंटर अपने राज्य में बनाएं.
तो जो लोग असम के एनआरसी टेस्ट या देश भर में चलने वाले NRIC टेस्ट में फेल होंगे उनके लिए कम से कम 12 डिटेंशन सेंटर तो तैयार हैं (असम में 10, नवी मुंबई में 1 और बंगलुरु ग्रामीण में 1).
कितने दस्तावेज चाहिए कोई स्पष्टता नहीं: 12, 14 या 15?
NPR-2020 में माता-पिता के जन्म स्थान की जो जानकारी मांगी गई है, वह 2003 रूल्स में नहीं है. 2003 रूल्स में 12 तरह की जानकारी मांगते हुए कहा गया है: 'इसमें (जनसंख्या रजिस्टर में) 12 तरह के विवरण होंगे: नाम, पिता का नाम, माता का नाम, लिंग, जन्म स्थान, जन्मतिथि, आवास का पता (स्थायी और अस्थायी), वैवाहिक स्थिति (यदि विवाहित हैं तो पति-पत्नी का नाम), शरीर पर पहचान का कोई चिह्न, नागरिक के रजिस्ट्रेशन की तिथि, रजिस्ट्रेशन का सीरियल नंबर और नियम 13 के तहत उपलब्ध राष्ट्रीय पहचान संख्या.
दूसरी तरफ, ऑफिस ऑफ रजिस्ट्रार जनरल ऐंड सेंसस कमिश्नर की वेबसाइट को अपडेट कर उसमें एनपीआर के बारे में जानकारी दी गई है. इसमें 'राष्ट्रीयता' जैसी 15 तरह की जानकारियां मांगी गई हैं, लेकिन इसमें भी कहीं माता-पिता के जन्म स्थान का ब्योरा देने की बात नहीं कही गई है.
NPR-2020 की प्रक्रिया शुरू हो गई है जो NRIC की ओर पहला कदम है
एनपीआर के शुरुआत के बारे में जानकारी अखबारों में व्यापक तौर पर छप चुकी है. 11 अक्टूबर 2019 की पीटीआई की एक रिपोर्ट में कहा गया है, 'आरजीआई ने देश के 1,200 गांवों, 40 कस्बों और शहरों में 5,218 गणना ब्लॉक के द्वारा एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है जिसमें लोगों के बारे में कई तरह के आंकड़े जुटाए जा रहे हैं. इस बारे में अंतिम गणना अप्रैल 2020 में शुरू होगी और सितंबर 2020 में खत्म होगी.
इसमें यह भी कहा गया है कि: 'नेशनल ट्रेनर्स की ट्रेनिंग 14 अक्टूबर, 2019
को शुरू होगी और राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों को ट्रेनिंग के शेड्यूल के
बारे में जानकारी दे दी गई है.' तो यह कहना सच नहीं है कि NPR या
NRIC/NRC की प्रक्रिया की घोषणा नहीं हुई है या यह शुरू नहीं हुई है. यह
प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. घर-घर जाकर वास्तविक गणना अप्रैल 2020 तक से
शुरू होगी.
तो कुल मिलाकर यह साफ है कि देश भर में NRIC (असम को
छोड़कर) लाने की प्रक्रिया NPR-2020 के साथ ही शुरू हो चुकी है. सीएए तो आ
ही चुका है. तो ये दोनों मिलकर 'संदिग्ध' या 'अवैध' मुसलमानों की छंटाई
करेंगे और उन्हें रखने के लिए डिटेंशन सेंटर तैयार हैं.
(बिहार और कोलकाता में हुए प्रदर्शनों की तस्वीर PTI से ली गई हैं )