कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशभर में लॉकडाउन का ऐलान किया है. जिसके बाद बड़े शहरों के गरीब प्रवासी मजदूरों पर मुश्किल आन पड़ी. काम न मिलने, पैसा न होने और मकान मालिकों द्वारा बेदखल किए जाने के बाद ये मजदूर भगवान भरोसे ही सड़क पर निकल गए. देखते ही देखते इनकी संख्या हजारों में पहुंच गई और दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर इनका रेला लग गया है.
कोरोना का खतरा लॉकडाउन से ही टाला जा सकता है. लेकिन इस रेले ने लॉकडाउन का ब्रेकडाउन कर दिया है. एक्सपर्ट आशंका जता रहे हैं कि प्रवासी मजदूर अगर इस हालत में घर पहुंचे तो वे अपने साथ अपने-अपने गांवों में घातक कोरोना भी पहुंचा देंगे.
आपको बता दें, भारत में ऐसा 26 साल पहले भी हो चुका है जब गुजरात के कई इलाकों में प्लेग फैल गया था. तभी भी हजारों की तादाद में मजदूरों का एक से दूसरे राज्य में पलायन हुआ था और यह घातक बीमारी फैलती ही चली गई.
प्लेग की महामारी 1994 में सूरत में फैली थी. इसने देखते ही देखते बड़े हिस्से को अपनी चपेट में ले लिया. लोग मरने लगे. उद्योग धंधे बंद करने पड़े और हजारों की संख्या में मजदूर बेरोजगार हो गए. पैसे की कमी और अपनी जान बचाने के लिए ये मजदूर सुदूर अपने मूल प्रांत-गांव लौटने को मजबूर हो गए.
उस समय सूरत ही नहीं अहमदाबाद, वडोदरा आदि जिलों में काम करने वाले मजदूरों ने पलायन शुरू कर दिया था.
मजदूर अपने साथ प्लेग की बीमारी भी ले गए. उस समय न तो मोबाइल फोन थे और न इंटरनेट. प्लेग की जानकारी देने लाउड स्पीकर के जरिए गली-गली घोषणाएं की जाती थीं.
जनता को अपने क्षेत्र को साफ रखने और अपने घरों से बाहर आने से बचने के लिए कहा गया लेकिन 3.5 लाख मजदूरों ने हाइवे पर भीड़ लगा दी. तत्कालीन सरकार को पलायन रोकने के लिए अर्धसैनिक बल का इस्तेमाल करना पड़ा था.
आज कोरोना के चलते देश के अलग-अलग हिस्सों में वैसा ही माहौल है, दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे की तस्वीर डराने वाली हैं. सिर्फ बस अड्डे पर ही भीड़ नहीं हैं. लोग सैकड़ों किलोमीटर की दूरी पैदल या रिक्शे से पूरी करने के लिए अपना बोरिया बिस्तर समेटे और परिवार को साथ लेकर निकल पड़े हैं.
गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात की है और उनसे इस वक्त मजदूरों का पलायन रोकने को कहा है.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने लोगों से अपील की है कि मजदूर दिल्ली से न जाएं, यहां उनके खाने-पीने- रहने का पूरा इंतजाम है.
साफ है कि संकट बढ़ा है. सरकार को अतिरिक्त प्रयास करने की जरूरत है ताकि जरूरतमंदों तक तुरंत मदद पहुंचाई जा सके. दूसरी ओर लोगों को भी धैर्य रखने की जरूरत है. कहीं ऐसा न हो कि एक संकट से बचने के लिए वे दूसरे संकट में फंस जाएं और अपने परिवार की जान भी जोखिम में डाल दें.