करीब 90 साल पहले की बात है, जब जापान की सेना ने चीन पर हमला कर दिया था. चीन के बड़े-बड़े हिस्सों पर कब्जा कर लिया. शहर जलाए गए थे. गांव उजाड़े गए थे. लाखों लोग मारे गए थे. अनगिनत महिलाओं-बच्चों पर अत्याचार हुए. इसे इतिहास में दूसरा चीन-जापान युद्ध (1937-1945) कहा जाता है. इस युद्ध में चीन को इतनी तबाही झेलनी पड़ी कि आज भी चीन और जापान के रिश्ते तनावपूर्ण हैं.
यह सब 1930 के दशक में शुरू हुआ, जब जापान तेजी से अपनी ताकत बढ़ा रहा था और चीन कमजोर था. मुख्य घटनाएं इस प्रकार हैं...
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सितंबर 1931: मुकदेन घटना (Mukden Incident)
जापान ने बहाना बनाया कि चीनी सैनिकों ने उनकी रेलवे लाइन पर हमला किया. यह झूठ था – जापान ने खुद ही विस्फोट करवाया. इसके बाद जापान ने मंचूरिया (चीन का उत्तर-पूर्वी हिस्सा) पर कब्जा कर लिया. 1932 में वहां एक नकली राज्य मंचुकुओ बना दिया. यह जापान का चीन पर पहला बड़ा कब्जा था.
1931 से 1937 तक: छोटे-छोटे हमले
जापान ने उत्तर चीन के इलाकों जैसे हेबेई और चहार पर कब्जा करना शुरू कर दिया. वे प्रभाव क्षेत्र बना रहे थे और चीन की कमजोरी का फायदा उठा रहे थे.
7 जुलाई 1937: लुगौच्याओ घटना (Marco Polo Bridge Incident)
बीजिंग के पास मार्को पोलो पुल पर जापानी सैनिक अभ्यास कर रहे थे. एक सैनिक गायब हो गया, जापान ने चीन पर आरोप लगाया और हमला शुरू कर दिया. यह दूसरा चीन-जापान युद्ध की आधिकारिक शुरुआत थी. चीन में इसे '7·7 घटना' या 'जापान-विरोधी युद्ध की शुरुआत' कहते हैं.
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इसके बाद जापान ने तेजी से हमले किए. अगस्त 1937 में शंघाई पर हमला हुआ. दिसंबर तक बीजिंग, तियानजिन जैसे शहर कब्जे में आ गए. 1938 तक उत्तर और मध्य चीन का बड़ा हिस्सा जापान के हाथ में था. 1940 तक चीन का आधा से ज्यादा इलाका कब्जे में था. 1944 में ऑपरेशन इचि-गो से और ज्यादा क्षेत्र ले लिया गया.
जब जापानी सेना नानकिंग (तब चीन की राजधानी) में घुसी, तो 6 हफ्तों तक भयानक अत्याचार हुए. इसे 'नानकिंग नरसंहार' या 'रेप ऑफ नानकिंग' कहते हैं...
चीन में इसे राष्ट्रीय त्रासदी माना जाता है. हर साल 13 दिसंबर को राष्ट्रीय शोक दिवस मनाया जाता है. चीनी इतिहास में इसे जापानी क्रूरता का प्रतीक बताया जाता है. हाल के सालों में चीनी फिल्में और किताबें इस पर बनी हैं, जो गुस्से को जिंदा रखती हैं. चीन का अनुमान है कि पूरे युद्ध में 1.5 से 3 करोड़ लोग मारे गए. वे कहते हैं कि जापान ने जानबूझकर तबाही मचाई.
जापान में इसे 'नानकिंग घटना' कहते हैं, न कि नरसंहार. कुछ जापानी नेता और इतिहासकार संख्या को कम बताते हैं या कहते हैं कि यह युद्ध का सामान्य हिस्सा था. 21वीं सदी में भी जापान में किताबें और बयान आते हैं जो इसे डिनाय करते हैं, जिससे चीन बहुत नाराज होता है. हालांकि, जापान की सरकार ने कभी-कभी माफी मांगी है, लेकिन पूर्ण रूप से स्वीकार नहीं किया.
चीन की दो मुख्य पार्टियां – च्यांग काई-शेक की नेशनलिस्ट (KMT) और माओ जेडोंग की कम्युनिस्ट – पहले आपस में लड़ रही थीं. लेकिन जापान के हमले से दोनों ने मिलकर संयुक्त मोर्चा बनाया. वे गुरिल्ला युद्ध लड़ते रहे, हालांकि हथियार कम थे. लाखों चीनी सैनिक शहीद हुए.
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1941 में जापान ने अमेरिका पर पर्ल हार्बर हमला किया, जिससे यह युद्ध दूसरे विश्व युद्ध का हिस्सा बन गया. 1945 में अमेरिका ने जापान पर परमाणु बम गिराए. 2 सितंबर 1945 को जापान ने सरेंडर कर दिया. चीन में 15 अगस्त को विजय दिवस मनाते हैं.
आज भी चीन-जापान रिश्ते इस वजह से तनावपूर्ण हैं. चीन स्कूलों में बच्चों को यह पढ़ाता है ताकि इतिहास न भूलें. जापान के कुछ नेता जब इसे कम करके बताते हैं, तो चीन विरोध करता है.
ऋचीक मिश्रा